सुबह के होंठों पर रात की कहानियां हैं .
अंडर -14 का क्रिकेट मैच इंदौर में हो रहा था. सचिन और गांगुली रूम मेट थे. एक रात गांगुली ने देखा .अचानक सचिन उठे. कमरे का एक दो चक्कर लगाया. फिर सो गये. सुबह जब गांगुली ने इस घटना का जिक्र किया तो पता चला कि सचिन को नींद में चलने की आदत है. इस घटना के बाद से सचिन का गांगुली अतिरिक्त ख्याल रखने लगे. नींद में चलने की आदत 14% किशोरों को है. प्रत्येक 7 में से 1 किशोर इस बीमारी से ग्रसित है. लड़कियों की अपेक्षा लड़के इस बीमारी से ज्यादतर प्रभावित होते हैं.
उम्र बढ़ने के साथ यह बीमारी स्वतः हों ठीक हो जाती है. केवल 1% प्रतिशत ऐसे लोग हैं, जिनका पीछा यह बीमारी बुढ़ापे तक करती है. इस बीमारी का इलाज रोगी को सम्मोहित कर किया जाता है, जो एक लम्बी प्रक्रिया होती है .स्नायु तंत्र में दोष आ जाने पर यह बीमारी पनपती है. रोगी नींद में हीं उठकर चलने लगता है. उसकी आंखें खुलीं होती हैं, परन्तु चेहरा भावहीन बना रहता है. नींद में उठकर रोगी वह सभी काम कर सकता है, जो जागी हुई हालत में वह करता था. कुछ नींद में हीं उठकर विस्तर पर बैठ जाते हैं. नींद में हीं पैर हिलाने लगते हैं. हमारे कलकत्ता प्रवास के दौरान एक ऐसी महिला पड़ोस में रहती थीं , जो नींद में हीं उठकर गंगा स्नान के लिए चल पड़ती थीं. कई बार उनके पति उनको पकड़ कर वापस लाए थे.
नींद में चलने वाले व्यक्ति को यदि जगा दिया जाय तो वह झुंझला जाता है. उसे प्रकृतिस्थ होने में समय लगता है. नींद में चलने वाला व्यक्ति का एक हिस्सा जागृत रहता है, बाकी हिस्सा सुशुप्तावस्था में होता है. उस जागृत एक हिस्से की वजह से हीं आदमी विभिन्न कार्य कर पाता है. लेकिन ऐसे में उसे चोट लगने का खतरा भी रहता है. वह कमरे में रखी हुई किसी चीज से टकरा सकता है. यदि घर से बाहर निकल गया है तो किसी वाहन के चपेट में भी आ सकता है. दिनांक 16 मई 2016 को जमशेदपुर के 26 वर्षीय स्वरूप कुमार तिवारी रात को छत पर सोए थे. अचानक उन पर यह बीमारी तारी हुई. वे छत से गिरकर काल कवलित हो गये.
नींद में चलने वाले व्यक्ति को कभी भी अकेला न छोड़ा जाय. उसके साथ एक आदमी जरूर सोए. मेन दरवाजे को लाक कर रखा जाय ताकि वह बाहर सड़क पर न जा पाए. यह बीमारी उन उम्रदराज लोगों का साथ नहीं छोड़ती, जो अत्यधिक तनाव, चिंता या मिर्गी रोग के शिकार हैं .इधर शोध से एक बात और सामने आई है. क्रोमोसोम -20 इसका सबसे बड़ा कारक है. कई बार क्रोमोसोम -20 धारण करने वाले एक हीं परिवार के कई लोग इस बीमारी के चपेट में होते हैं. अतः उस हालत में यह बीमारी अनुवांशिक हो जाती है.
नींद में चलने वाले रोगी किसी खास समय पर उठकर चलने लगते हैं. यदि आपको वह समय पता चल जाय तो समझ लीजिए कि आपके हाथ कारू का खजाना लग गया है. आपको कुछ नहीं करना है. सिर्फ उस समय विशेष से 15 मिनट पहले रोगी को हर रोज जगा देना है. फिर यह बीमारी शनैः शनैः स्वतः हीं दूर हो जाएगी.
सबसे आश्चर्य की बात यह है कि नींद में चलने वाले व्यक्ति को अगले दिन कुछ याद नहीं रहता है. वहीं सुबह, वही दिनचर्या सब कुछ रूटीन वर्क की तरह चलने लगता है. रात की कहानी का गवाह केवल सुबह होती है.
वही महकता चमन, वही वीरानियां हैं.
सुबह के होंठों पर रात की कहानियां हैं.
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