इक कहानी की तरह याद है मुझे.

फिजी द्वीप समूह की खोज 17वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध व 18वीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध में डच लोगों ने की थी. बाद में, सन् 1874 में ब्रिटेन ने इस द्वीप को अपने अधिकार में लेकर इसे अपना एक उपनिवेश बनाया. ब्रिटिश लोगों ने भारतीय मजदूरों की तकरीबन 61हजार की की पहली खेप पांच साला एग्रीमेंट पर यहां लाकर बसाया था. ये मजदूर गन्ने की खेती के लिए यहां लाए गये थे. चूंकि ये एग्रीमेंट के तहत लाए गये थे, इसलिए इन्हें गिरमिटिया (एग्रीमेंट का विगड़ा रुप) मजदूर कहा गया. मारीशस में भारतीय मजदूरों की गन्ने की खेती में अच्छा योगदान था, इसलिए यहां भी भारतीय मजदूरों को हीं प्राथमिकता दी गई.
फिजी के मूल निवासी थे कवीची. कवीची लोगों का मुख्य पेशा समुद्र से मछली पकड़ना, जंगली फल मूल का व्यवसाय करना था. वे गन्ने की खेती जैसे श्रमसाध्य कामों से दूर रहते थे. भारतीय मजदूरों के साथ इनका मेल जोल दोस्ताना रहा. वे यह जानकर बहुत खुश हुए कि राम की धरती भारत से से ये मजदूर आएं हैं. आज भी इनका कहना है कि राम रावण युद्ध में इन लोगों ने राम का साथ दिया था.
300 द्वीपों वाले फिजी द्वीप समूह का मुख्य द्वीप वीती है, जिसे पड़ोसी द्वीप टोंगा के निवासी 'फिसी ' कहते थे. बाद में ब्रिटिश सेना के अधिकारी कैप्टन कुक ने इस पूरे द्वीप समूह का नाम 'फिजी द्वीप समूह ' रख दिया. सन् 1970 में विजयादशमी के दिन ब्रिटेन ने फिजी वासियों को आजादी दे दी. अंग्रेज चले गये, पर भारत वंशी मजदूर यहीं रह गये. उन्हें मताधिकार का अधिकार प्राप्त हो गया. आज व्यापार, व्यवसाय व शिक्षा के क्षेत्र में ये अग्रड़ी भूमिका निभा रहे हैं, परन्तु सामाजिक व राजनीतिक माहौल मूल निवासियों के पक्ष में है. सेना में इनका वर्चस्व है. यही कारण है कि आजादी के बाद से यहां पर चार बार तख्ता पलट हो चुका है. सन् 1997 के तख्ता पलट में भारतीय मूल के महेन्द्र चौधरी की सरकार थी. बार बार के तख्ता पलट की वजह से परेशान हो भारतीय फिजी छोड़ने लगे हैं. कभी भारतीय यहाँ बहुमत में होते थे, अब मेलानेशियन्स का बहुमत हो गया है. भारतीयों की वहुसंख्यक आबादी फिजी में इस आशा से अब भी टिकी हुई है कि कभी तो दिन अच्छे होंगे. कभी तो दिन बहुरेंगे.
फिजी द्वीप समूह में अंग्रेजी, फिजीयन और हिन्दी बोली जाती है. संसद में भी इन्हीं तीन भाषाओं का बोलबाला है. भोजपुरी अवधी मिश्रित यहां की हिंदी भाषा है. कद्दू को कोंहडा़, पूड़ी को सोहारी, पैर को गोड़ और सब्जी को तरकारी कहा जाता है. इसी तरह से फिजीयन भाषा के शब्द भी हिन्दी में इस तरह घुल मिल गये हैं कि भारत से गये व्यक्ति को भी फिजी हिंदी समझने के लिए दुभासिए की मदद लेनी पड़ सकती है. यहां के राष्ट्रीय कवि पण्डित कमला प्रसाद मिश्र, हिंदी सेवी स्व. विवेकानन्द शर्मा, प्रोफेसर सत्येन्द्र नंदन आदि विद्वानों का फिजीयन हिंदी के विकास में अहम योगदान रहा है. हिंदी भारत वंशियों के लिए अस्मिता व संस्कृति की भाषा है. अखबार, टी बी अादि में हिंदी का चलन खूब बढ़ा है. यहां के विश्वविद्दालयों में हिंदीं पढ़ाई जाती है. फिजियन मूल आदिम जन जाति के लोग भी हिंदी सिनेमा देखते हैं. हिंदी गाने सुनते हैं.
गांव गांव में यहां रामायण की मंडलियां हैं. रामलीला का मंचन हर साल दशहरा पर्व पर होता है. अदालतों में हिंदुअों को गीता की जगह रामायण की कसम खिलाई जाती है. अाग व चाकू पर चलने की रोमांचकारी उत्सव यहां होते हैं. मन्नत मांगने के लिए आप मंदिर, मस्जिद, चर्च हर जगह माथा टेक सकते हैं. भारत में राजा भरथरी, सारंगा सदावृज,  किस्सा तोता मैना, सिंहासन बतीसी और सोरठी वृजभार आदि पुस्तकें भले हीं अब उपलब्ध न हो, पर फिजी में हर फुटपाथ पर मौजूद है. हम इन भारत वंशियों को भूल गये हैं, पर ये हमारी याद को अब भी संजोए हुए हैं.
एक किस्से की तरह वह मुझे भूल गया,
इक कहानी की तरह वह याद है मुझे.😊
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