दाम अक्सर ऊंचे होते हैं ख्वाहिशों के.

अंटार्कटिका को पहले टेरा आस्ट्रेलिस कहा जाता था. सन् 1820 से पहले कई मिथक और अटकलें हावी थीं. उनमें से एक मिथक यह था कि टेरा अास्ट्रेलिस एक विशाल महाद्वीप है, जो एशिया, यूरोप और अफ्रीका जैसे महाद्वीपों के संतुलन के लिए बना है. सन् 1820 के एक रूसी अभियान से इस द्वीप का परिचय पूरी दुनियाँ से हुआ. रूसी अभियान कर्ता थे - मिखाइल पेट्राविच लाजारेव और फेबियन गाटलिएब वान वेलिंगशोसेन. इस द्वीप का नाम टेरा आस्ट्रेलिस की जगह अंटार्कटिका रखा गया, जिसका मतलब होता है-उत्तर के विपरीत. इसी अंटार्कटिका में दक्षिणी ध्रुव अंतर्निहित है.उत्तर के विपरीत दक्षिण हीं होगा । इसलिए इस द्वीप में दक्षिणी ध्रुव का होना इसके अंटार्कटिका नाम को सार्थक करता है.
अंटार्कटिका चारों तरफ से दक्षिण महासागर से घिरा हुआ है. इसका क्षेत्रफल 140 लाख वर्गमीटर है. यह एशिया, अफ्रीका, उत्तरी अमेरिका और दक्षिणी अमेरिका के बाद विश्व का पांचवां सबसे बड़ा द्वीप है.अंटार्कटिका का 98% भाग बर्फ से ढका हुआ है. यहां वर्षा मात्र 8 इंच हीं होती है,वह भी तटीय इलाकों में. यहां का कोई स्थाई निवासी नहीं है. खाली विभिन्न देशों के अनुसंधान कर्ता हीं इस पूरे महाद्वीप पर फैले हुए हैं, जिनकी संख्या घटती बढ़ती रहती है. यह संख्या अनुमानतः1000 से 5000 के बीच होती है. अंटार्कटिका पर पेड़ पौधे नहीं होते. शीतानुकूलित कुछ वनस्पतियां हीं गर्मियों में उगा करती हैं. जीवों में सफेद भालू, पेंगुइन, पिस्सू और सील होते हैं. यहां सर्दियों का तापमान -80°c के पार चला जाता है, जबकि गर्मियों में - 5°c से -10 °c के आस पास रहता है.
सन् 1959 में 12 देशों ने अंटार्कटिका संधि पर हस्ताक्षर किए हैं. अब यह संख्या बढ़कर 46 हो गयी है.यह संधि अंटार्कटिका पर सैन्य और खनिज गतिविधियों को प्रतिबंधित करने के लिए वैज्ञानिक अनुसंधानों का समर्थन करती है. कई देशों के वैज्ञानिक इस महाद्वीप पर अनुसंधान करने में लगे हुए हैं.
9 जनवरी सन् 1982 में अंटार्कटिका पर पहला भारत का बेस कैम्प स्थापित किया गया. कुछ प्रयोग किए और दल वापस आ गया. इसी साल दूसरा अभियान दल भेजा गया. सन् 1983 में तीसरा अभियान दल पहुंचा. इस अभियान दल ने भारत का पहला स्टेशन अंटार्कटिका पर बनाया. यह स्टेशन गल्ती से बर्फ पर बन गया था, जो शनैः शनैः बर्फ में दब गया. सन् 1988 में फिर स्टेशन बनाया गया. अबकी बार चट्टान पर बना, जो अब तक कायम है.
भारत की दो टीमें काम करने लगीं, जिनका कार्यकाल छः माह का होता था. गर्मी और जाड़े की अलग अलग टीमें बनाई जाने लगीं. इन टीमों में वैज्ञानिकों के साथ साथ  पत्रकार, फोटोग्राफर, मनोवैज्ञानिक और समाज शास्त्री भी होते हैं. अब लोग स्वेच्छा से 16 -16 माह भी रहने लगे हैं. यहां तक कि महिलाएं भी इस क्षेत्र में आगे आने लगीं हैं. घर परिवार से दूर . ये लोग रह लेते हैं. क्यों और कैसे ? एक अदद खुशी के लिए. एक अदद खुशी के सहारे.
दाम अक्सर ऊंचे होते हैं ख्वाहिशों के,
मगर खुशियां हरगिज मंहगी नहीं होती.
              - ई एस डी ओझा

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