इस शहर के बादल तेरी जुल्फों की तरह हैं ...

टिटिलागढ़ उड़ीसा की राजधानी भुवनेश्वर से लगभग 400 km दूर बोलांगीर जिले का एक छोटा सा कस्बा है. गर्मी का मौसम आते हीं यह कस्बा टीबी चैलनों के लिए हेडलाइन व अखबारों के लिए सुर्खियों का केन्द्र बन जाता है. कारण है इस कस्बे का तापमान ग्रीष्म ऋतु में 45°c पार कर जाना. वैसे यहां के लिए यह एक सामान्य सी बात है. कई बार यह भारत का सबसे गर्म कस्बा बना है. इस बार यहां पारा अप्रैल में 48.5°c पहुंच गया था. लोगों का मानना है कि गर्मी का स्तर 50°c के पार चला जाता है, परन्तु सरकार बताती नहीं है, क्योंकि फौरी राहत कार्य के रूप में संसाधन उपलब्ध कराने होंगे और बिजली भी इस दौर की मुफ्त करनी होगी.
दस बजते हीं टिटिलागढ़ के बाजारों में सन्नाटा पसर जाता है. बच्चों की पढ़ाई केवल सुबह की शिफ्ट में होती है. टिटिलागढ़ के दक्षिण में कुमड़ा पहाड़ है. इस पहाड़ की चट्टानें ग्रेनाइट की बनीं हैं. सूरज की किरणें जब इन चट्टानों पर पड़ती हैं तो वे रिफ्लेक्ट हो टिटिलागढ़ को गर्म कर देती हैं. इसीलिए इस कस्बे का नाम तातल (गर्म) गढ़ पड़ा , जिसका बाद में अपभ्रंश टिटिलागढ़ हो गया. चारों तरफ पहाड़ियों से घिरा होने के कारण भी सूरज की किरणें इसी कस्बे पर केन्द्रित हो जाती हैं. इसके अतिरिक्त टिटिलागढ़ की धरती के नीचे भी चट्टानें हैं, जिसकी वजह से सूरज की किरणें धरती द्वारा अवशोषित नहीं हों पातीं. लिहाजा धरती की गर्मी भी ऊपर आ पुरे कस्बे में आग उगलतीं हैं.
टिटिलागढ़ में नीम, पीपल, बरगद व पाकड़ आदि के छायादार व मौसम को सर्द करने वाले पेड़ नहीं लगाए जा सकते. कारण, इन पेड़ों की जड़ें गहरी होती हैं. धरती के अंदर के चट्टानें अवरोध उत्त्पन्न करती हैं. लोग शाम ढले अपने घरों से बाहर निकलते हैं. जरूरी काम निपटाते हैं. रात को पाखाल भात खाकर गहरी नींद सो जाते हैं. पाखाल भात खाने से पेट ठंडा रहता है, जिससे नींद अच्छी आती है. पाखाल भात खाने से पेट हीं नहीं पूरा बदन ठंडा रहता है. रात को भात को पानी में भींगो दिया जाता है. भात जितना बासी होगा उतना हीं उसकी तासीर ठंडी होती जाएगी. इस भात को प्याज, हरी मिर्च व सब्जी के साथ खाया जाता है. पाखाल भात को बंगाल में पंता भात कहते हैं . इसके सेवन से पेट सम्बन्धी बिमारियां नहीं होतीं.
सर्दियों में ठंडक कम पड़ती है. ठिठुरती सर्दी क्या होती है ? यहां के लोगों को पता नहीं . सर्दियों में ठिठुरती सर्दी का खिताब भारत के मैदानी भाग अमृतसर व कपूरथला ले जाते हैं,जहां पारा 0°c से भी नीचे चला जाता है. उस समय टिटिलागढ़ के लोग तापमान के इस कदर गिरने की खबर अखबार में पढ़ और टीबी पर  देख आश्चर्यचकित होते हैं. सच है, राम जी की माया, कहीं धूप कहीं छाया.
अब जुलाई का महीना चल रहा है. टिटिलागढ़ के मौसम ने करवट ली है. तपतपाती जमीन को बारिश की ठंडी फुहारें मिलीं हैं. लेकिन जब सूरज निकलता है तो पानी के वाष्पन के दौर में तगड़ी उमस होती है, जो आसमान से टपके, खजूर पर अटके वाली बात होती है. बादल भी कभी कभी आंख मिचौनी खेलते हैं. आते हैं और चले जाते हैं. इस दर्द को शायर ने इस कदर उकेरा है -
इस शहर के बादल तेरी जुल्फों की तरह हैं,
ये आग लगाते हैं , पर बुझाने नहीं आते.
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Er S D Ojha
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