ऊंचहीं मंड़वा छवईह ए बावा ....
गुंजासो कृपालपुर, बलिया की बेटी थीं. वे ससुराल से एक बार रूठ कर आईं तो कृपालपुर का हीं होकर रह गईं .दुबारा अपने ससुराल नहीं गईं. ले दे कर एक भाई था, जो निहायत हीं गरीब था. पुरानी कथाओं का नायक था, जिसमें कहा जाता था कि एगो बाबाजी (ब्राह्मण) थे. दिन भर मांगे तो सवा सेर. एक घरी मांगे तो भी सवा सेर. गुंजासों का भाई भी भिक्षाटन करता था. कृपालपुर गांव उपाध्याय ब्राह्मणों का गांव है. कुछ पाण्डेय लोग भी हैं. गुंजासों का भाई भी पाण्डेय बिरादरी से था. नाम से उसे कोइ नहीं जानता था. सब उसे पाड़े कहा करते थे.
रात के अंधेरे में ससुराल से भागकर गुजासों भाई के घर पहुंचीं थीं .घर के पिछवाड़े बैठकर रो रहीं थीं. भाई ने पिछुती का दरवाजा खोला. बहन को पहचान उसने दरवाजा फिर बन्द कर दिया. मंगनी में चिखनी, बिलरिया मांगें आधा. खुद तो किसी तरह से गुजर बसर कर रहा था, अब ये मलामत कहां से आ टपकी ? तब तक गांव के कई गण्यमान लोग पहुंच गये थे. उन्होंने बमुश्किल दरवाजा खुलवाया. गुजासों उस घर में घुसीं और इस कदर घुसीं कि मौत हीं उन्हें उस घर से बाहर निकाल पाई.
पाड़े विधुर थे. उनका एक बौड़म बेटा था. अब बहन भी साथ रहने लगी. भिक्षाटन से जो मिलता, उसे पाड़े लाकर बहन के अागे धर देते. अब बाप बेटा को बना बनाया भोजन मिलने लगा. पाड़े अफीम खाते थे. जिस दिन अफीम नहीं मिलती , उस दिन वे चिल्ला चिल्ला कर रोना शुरू कर देते .पूरे गांव को पता चल जाता कि आज पाड़े को अफीम नहीं मिली है. बहन लाख चुप कराती, वे चुप नहीं होते. जब बात हद से बढ़ जाती तो मेरे नाना लाठी से उनका खपरैल पीटने लगते. खपरैल टूटती . मरम्मत का खर्चा बढ़ता .खर्चा पाड़े कहां से लाते ? पाड़े चुप हो जाते.
गुजांसो को गांव की लड़कियां फुआ कहतीं. गुजांसो फुआ तुनकमिजाज थीं. उनकी तुनकमिजाजी से लड़कियों का मनोरंजन होता था. लड़कियां बात बे बात उन्हें छेड़तीं और बदले में उन्हें गालियों की सौगात मिलती. वे केवल मेरी नानी से खुश रहती थीं ,जिन्हें वे काकी कहतीं. मेरी मां भी और लड़कियों की तरह उन्हें नहीं छेड़ती थी. इसलिए वे उसे बबुनी (बच्ची) कहती थीं. एक बार वे नानी से मिलने आईं. वहां पहले से गांव की एक और लड़की बैठी थी. गुजांसो फुआ को देख उसने टुनुक (छेड़ने के लिए कुछ कह दिया) दिया. गुजांसो फुआ नाराज हो गईं .उनकी नाराजगी से सबको बरबस हंसी आ जाती थी. मां भी हंसी नहीं रोक पाई. उसने मुंह घुमाकर हंस दिया. गुजांसो फुआ ने देख लिया. गुस्से में बोल उठीं, 'अच्छा तो बबुनी भी हंस रहीं हैं? ' वे गुस्से में वहाँ से चल पड़ीं. नानी को भी हंसी आ रही थी. मुंह अांचल से छुपाकर वे गुजांसो को जाने से रोकने लगीं-सुनो गुजांसो, रुको गुजांसो. मुंह छिपा लेने से चेहरे की भावनाएं नहीं छुप सकती. नानी की आंखें हंस रहीं थीं. गुजांसो ने ताड़ लिया -काकी आप भी हंस रही हो?नाराज , हैरान गुजांसो चलीं गईं . कई दिनों तक वे नानी से मिलने नहीं आईं .
गुजांसो गांव की शादी ब्याह में गीत गाकर नेग के रूप में कुछ रुपए उगाह लेती थीं. वे अच्छा गाती थीं. इसलिए संझा, पराती, सोहर, जेवनार, जनेऊ, तिलक के गीत गवाने के लिए लोग उन्हें पहले बोलाहट (निमंत्रण) देते. कभी भूलवश किसी ने उन्हें नहीं बुलाया तो गुजांसो का गाली पुराण शुरू हो जाता. पता चलने पर उस घर की बड़ी बूढ़ी को आना पड़ता. गुजांसो उसे देख शुरू हो जातीं - तोर पूत मरो, तोर भथार मरो (तेरा बेटा मर जाय, तेरा पति मर जाय) . उस बड़ी बूढ़ी को माफी मांगते मांगते बेदम हो जाना पड़ता -'ए गुजांसो इसमें मेरी गल्ती नहीं है. मैंने हजामिन (नाईंन) से आपको बुलाने के लिए कहा था. वह कहना भूल गई होगी. ' काफी मान मनौवल के बाद गुजांसो जातीं . उनका राग बड़ा हीं टनकार था. उनकी अावाज दस गीत गवनी औरतों में अलग से पहचान में आ जाती -
ऊंचहीं मंड़वा छवईह ए बाबा, नवैं न कंत हमार.
(हे पिता मंड़वा बहुत ऊंचा छाना (बनाना) ताकि मेरे होने वाले कंत (पति) को सिर न झुकाना पड़े)
पाड़े और गुजांसो अब इस दुनिया में नहीं रहे. बौड़म बेटे की शादी हो गई थी . बच्चे भी हुए थे. उसे कहीं दूर के निःसंतान रिश्तेदार ने अपना वारिश मान लिया था. भगवान देता है तो छप्पर फाड़ के देता है. वह रातों रात धनवान हो गया. वह अब अपने रिश्तेदार के यहां हीं रहने लगा है.जहां पाड़े का घर था. वहां अब सपाट मैदान है. उस मिट्टी में गुजांसो के बोल दफन हो गए हैं -
ऊंचहीं मड़वा छवईह ए बाबा ..
-ई एस डी ओझा
रात के अंधेरे में ससुराल से भागकर गुजासों भाई के घर पहुंचीं थीं .घर के पिछवाड़े बैठकर रो रहीं थीं. भाई ने पिछुती का दरवाजा खोला. बहन को पहचान उसने दरवाजा फिर बन्द कर दिया. मंगनी में चिखनी, बिलरिया मांगें आधा. खुद तो किसी तरह से गुजर बसर कर रहा था, अब ये मलामत कहां से आ टपकी ? तब तक गांव के कई गण्यमान लोग पहुंच गये थे. उन्होंने बमुश्किल दरवाजा खुलवाया. गुजासों उस घर में घुसीं और इस कदर घुसीं कि मौत हीं उन्हें उस घर से बाहर निकाल पाई.
पाड़े विधुर थे. उनका एक बौड़म बेटा था. अब बहन भी साथ रहने लगी. भिक्षाटन से जो मिलता, उसे पाड़े लाकर बहन के अागे धर देते. अब बाप बेटा को बना बनाया भोजन मिलने लगा. पाड़े अफीम खाते थे. जिस दिन अफीम नहीं मिलती , उस दिन वे चिल्ला चिल्ला कर रोना शुरू कर देते .पूरे गांव को पता चल जाता कि आज पाड़े को अफीम नहीं मिली है. बहन लाख चुप कराती, वे चुप नहीं होते. जब बात हद से बढ़ जाती तो मेरे नाना लाठी से उनका खपरैल पीटने लगते. खपरैल टूटती . मरम्मत का खर्चा बढ़ता .खर्चा पाड़े कहां से लाते ? पाड़े चुप हो जाते.
गुजांसो को गांव की लड़कियां फुआ कहतीं. गुजांसो फुआ तुनकमिजाज थीं. उनकी तुनकमिजाजी से लड़कियों का मनोरंजन होता था. लड़कियां बात बे बात उन्हें छेड़तीं और बदले में उन्हें गालियों की सौगात मिलती. वे केवल मेरी नानी से खुश रहती थीं ,जिन्हें वे काकी कहतीं. मेरी मां भी और लड़कियों की तरह उन्हें नहीं छेड़ती थी. इसलिए वे उसे बबुनी (बच्ची) कहती थीं. एक बार वे नानी से मिलने आईं. वहां पहले से गांव की एक और लड़की बैठी थी. गुजांसो फुआ को देख उसने टुनुक (छेड़ने के लिए कुछ कह दिया) दिया. गुजांसो फुआ नाराज हो गईं .उनकी नाराजगी से सबको बरबस हंसी आ जाती थी. मां भी हंसी नहीं रोक पाई. उसने मुंह घुमाकर हंस दिया. गुजांसो फुआ ने देख लिया. गुस्से में बोल उठीं, 'अच्छा तो बबुनी भी हंस रहीं हैं? ' वे गुस्से में वहाँ से चल पड़ीं. नानी को भी हंसी आ रही थी. मुंह अांचल से छुपाकर वे गुजांसो को जाने से रोकने लगीं-सुनो गुजांसो, रुको गुजांसो. मुंह छिपा लेने से चेहरे की भावनाएं नहीं छुप सकती. नानी की आंखें हंस रहीं थीं. गुजांसो ने ताड़ लिया -काकी आप भी हंस रही हो?नाराज , हैरान गुजांसो चलीं गईं . कई दिनों तक वे नानी से मिलने नहीं आईं .
गुजांसो गांव की शादी ब्याह में गीत गाकर नेग के रूप में कुछ रुपए उगाह लेती थीं. वे अच्छा गाती थीं. इसलिए संझा, पराती, सोहर, जेवनार, जनेऊ, तिलक के गीत गवाने के लिए लोग उन्हें पहले बोलाहट (निमंत्रण) देते. कभी भूलवश किसी ने उन्हें नहीं बुलाया तो गुजांसो का गाली पुराण शुरू हो जाता. पता चलने पर उस घर की बड़ी बूढ़ी को आना पड़ता. गुजांसो उसे देख शुरू हो जातीं - तोर पूत मरो, तोर भथार मरो (तेरा बेटा मर जाय, तेरा पति मर जाय) . उस बड़ी बूढ़ी को माफी मांगते मांगते बेदम हो जाना पड़ता -'ए गुजांसो इसमें मेरी गल्ती नहीं है. मैंने हजामिन (नाईंन) से आपको बुलाने के लिए कहा था. वह कहना भूल गई होगी. ' काफी मान मनौवल के बाद गुजांसो जातीं . उनका राग बड़ा हीं टनकार था. उनकी अावाज दस गीत गवनी औरतों में अलग से पहचान में आ जाती -
ऊंचहीं मंड़वा छवईह ए बाबा, नवैं न कंत हमार.
(हे पिता मंड़वा बहुत ऊंचा छाना (बनाना) ताकि मेरे होने वाले कंत (पति) को सिर न झुकाना पड़े)
पाड़े और गुजांसो अब इस दुनिया में नहीं रहे. बौड़म बेटे की शादी हो गई थी . बच्चे भी हुए थे. उसे कहीं दूर के निःसंतान रिश्तेदार ने अपना वारिश मान लिया था. भगवान देता है तो छप्पर फाड़ के देता है. वह रातों रात धनवान हो गया. वह अब अपने रिश्तेदार के यहां हीं रहने लगा है.जहां पाड़े का घर था. वहां अब सपाट मैदान है. उस मिट्टी में गुजांसो के बोल दफन हो गए हैं -
ऊंचहीं मड़वा छवईह ए बाबा ..
-ई एस डी ओझा
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