नानी तेरी मोरनी को मोर ले गये ।

 नानी पर बहुत से मुहावरे और कहावतें कहीं जातीं हैं , लेकिन दादी पर मुझे एक भी मुहावरा या लोकोक्ति ढूंढे से भी न मिला । नानी याद आना भी एक मुहावरा है । हम नानी के साथ नहीं रहते हैं । दादी के साथ रहते हैं । इसलिए नानी की याद कभी कभी आती है । नानी की याद दिलाने के लिए विशेष कार्य करना पड़ता है । बेशक वह विशेष कार्य करना न पड़े । सिर्फ कहना हीं काफी है कि अगर मैंने अमुक कार्य कर दिया तो तेरी नानी याद आ जाएगी ।

नानी को हम दिन में कई बार मारने की पेशकश करते हैं । जैसे- अगर तुम्हें कोई काम करने को कहा जाय तो तुम्हारी नानी मरने लगती है । इसमें नानी के मारने की बात कहाँ से आ गयी ?  काम करने वाला काम नहीं करता है तो हम नानी को क्यों मारने लगते हैं ? यह बात हम नानी के ठीक पीठ पीछे क्यों करतें हैं ? उसके सामने क्यों नहीं  ?

ये बातें  " नानी के आगे ननिहाल की बातें " जैसीं हैं । नानी के बारे में हम कितना जानतें हैं ? हम तो साल में कुछ दिनों की छुट्टी बिताने के लिए नानी के गाँव जाते हैं । मेरा ख्याल है कि हम नानी से ज्यादा दादी को जानते हैं । फिर यह लोकोक्ति इस तरह से होनी चाहिए -" दादी के आगे ददिहाल की बातें " ।

 एक और लोकोक्ति है - " नानी कुंवारी मर गयी और नवासे का नौ नौ ब्याह " । यह लोकोक्ति बिल्कुल गलत है । जब नानी कुुंवारी मर गयी तो नवासा कहाँ से आ गया ? यह लोकोक्ति बिन सोचे बिन समझे गढ़ी गयी है । इस पर मेरा विरोध दर्ज किया जाय ।

यही नहीं नवासे से पोते का दर्जा सदैव ऊपर रखा गया है । पोते को ज्यादा वफादार साबित करने के लिए कहानी भी गढ़ ली गयी है । कहते हैं कि नानी अपने नवासे को गोद में और अपने पोते की अंगुली पकड़ कर ले जा रहीं थीं । नवासे को गोद में इसलिए ले रखा था कि वह कभी कभार हीं नानी से मिलने आ पाता था । उसे प्यार की ज्यादा जरुरत थी । तभी नवासे ने पास से गुजरते हुए कुत्ते से कहा था -

" कुत्ते मेरी नानी को काट ले ।"

तब पोता चुप नहीं रह पाया । उसने तुरंत कहा था - 

" खबरदार,  तुमने मेरी दादी के लिए दुबारा ऐसी बात कही तो तुम्हारी खैर नहीं होगी "।

मतलब कि जो गोद में था वह नानी से दुश्मनी निभा रहा था और जो जमीन पर था वह अपनी दादी का सबखाह बन रहा था । ऐसी कहानी गढ़कर दादी का दर्जा नानी से ऊपर किया गया है ।इस घटना की तस्दीक करने वाला मुझे आज तक कोई नहीं मिला है । इसलिए मैं इसे सही नहीं मानूंगा ।

नानी को चिढ़ाने में फिल्म वाले भी पीछे नहीं हैं । 1960 में एक फिल्म आई थी मासूम । इस फिल्म में बाल कलाकार रानू मुखर्जी ने एक गीत गाया था । इस गीत में नानी की मोरनी को मोर लेकर चले जाते हैं । आप पूरी गीत देखें और समझने का प्रयास करें कि किस तरह नानी का इस गीत में उपहास उड़ाया गया है -

नानी तेरी मोरनी को मोर ले गए
बाकी जो बचा था काले चोर ले गए
नानी तेरी मोरनी को...

खा के-पी के मोटे हो के चोर बैठे रेल में
चोरों वाला डब्बा कट के पहुँचा सीधा जेल में
नानी तेरी मोरनी को...

उन चोरों की खूब ख़बर ली मोटे थानेदार ने
मोरों को भी खूब नचाया जंगल की सरकार ने
नानी तेरी मोरनी को...

अच्छी नानी, प्यारी नानी, रूसा-रुसी छोड़ दे
जल्दी से एक पैसा दे दे, तू कंजूसी छोड़ दे
नानी तेरी मोरनी को...

 आपकी जानकारी के लिए बता दूँ कि रानू मुखर्जी सुप्रसिद्ध गीतकार हेमंत कुमार की बेटी हैं । उनकी माता श्री का नाम बेला मुखोपाध्याय है । इस गीत के संगीतकार हैं-  रोबिन बनर्जी । रानू मुखर्जी के भाई का नाम जयंत मुखर्जी है । इस गीत के गीतकार हैं शैलेन्द्र । मतलब कि इतने बड़े महारथियों की मौजूदगी में रानू मुखर्जी ने नानी का मजाक बनाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी है । 

यह गीत रानू मुखर्जी ने बाल कलाकार हनी ईरानी के लिए गाया था । ऐसा पहली बार हुआ था जब एक बाल गायक ने किसी बाल कलाकार के लिए गाया था । इसके पहले बाल कलाकारों के लिए बड़ेे गायक गाया करते थे ।

रानू मुखर्जी को नानी का शाप लग गया । उसके बाद से उन्होंने ढेर सारे गाने गाए,  लेकिन उनका कोई भी गाना  मकबूल नहीं हुआ । गूगल भी उनसे नाराज है । गूगल की सर्च में रानू मुखर्जी टाइप करने से रानी मुखर्जी का नाम आता है । नानी पर मजाक से गूगल भी दुःखी है ।

तब से रानू मुखर्जी को गायन से कोई सफलता नहीं मिली है । पहले ये अपने पिता के साथ संगीत निर्देशक बनीं थीं । पिता के मरणोपरांत अब रानू ने गजल का दामन थाम रखा है । सुनते हैं कि नानी पर एक और गाना बनाया गया है -

"नानी तेरी मोरनी ने चिट्ठी भेजा है  "

 




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