तुझे मिली रोशनी, मुझको अंधेरा.

25 जुलाई सन् 1978 में प्रथम परखनली शिशु का जन्म हुआ था. उस शिशु का नाम था -लुई ब्राउन . इसके लिए राबर्ट एडवर्डस बधाई के पात्र हैं. सन् 2010 में उन्हें नोबल पुरूष्कार मिला. लुई ब्राउन के जन्म के तीन माह पहले कोलकाता के डा. सुभाष मुखोपाध्याय ने दुनियाँ के द्वितीय और भारत के प्रथम परखनली शिशु का डिम्ब निषेचित किया, जिसके परिणामस्वरूप 3 अक्टूबर सन् 1978 को दुर्गा उर्फ कनुप्रिया का जन्म हुआ. इस बच्ची का जन्म विवादित हो गया. पश्चिम बंगाल की सरकार ने इस विवाद को निपटाने के लिए एक समिति नियुक्त की. समिति ने उनसे कई बार पूछ ताछ की. समिति ने अन्ततोगत्वा उनके दावे को फर्जी करार दिया.
समिति के अनुशंसा पर पश्चिम बंगाल सरकार ने उनके दावे को अस्वीकृत कर दिया और यह मानने से इन्कार कर दिया कि उन्होंने कोई इतिहास रचा है. पश्चिम बंगाल सरकार की तर्ज पर केन्द्र सरकार ने भी उनके अंतराष्ट्रीय सम्मेलनों में भाग लेने पर रोक लगा दी . और तो और अखबारों में भी उनके विरुद्ध काफी कुछ छपा. डा. सुभाष मुखोपाध्याय को बड़ी मर्मांतक पीड़ा पहुंची. उन्होंने 19 जुलाई सन् 1981 को आत्म हत्या कर ली.
दुर्गा उर्फ कनुप्रिया के जनम के आठ साल बाद भारत में एक और परखनली शिशु हर्षा का जन्म हुआ. इस बार कोई विवाद नहीं हुआ. हर्षा को प्रथम भारतीय परखनली शिशु के रूप में मान्यता मिली. डा. इन्दिरा हिन्दुजा को प्रथम भारतीय परखनली शिशु पैदा कराने का श्रेय दिया गया. विश्व में तकरीबन 10% लोग वंध्याकरण से प्रभावित हैं. यह तकनीक उनके लिए रामबाण साबित हुई. आज पूरे विश्व में 40 लाख लोग इस तकनीक से वंध्याकरण से निजात पाने में सफल हुए हैं. भारत में तकरीबन 400 आई वी एफ ( In vitro fertilization) प्रयोगशालाएं हैं. सस्ता होने के कारण बहुत से विदेशी लोग भारत में आते हैं.
हर्षा के जन्म के बाद सन् 1986 में डा. सुभाष मुखोपाध्याय को एक ऐसे भारतीय चिकित्सक के रूप में मान्यता मिली, जिसने भारत की प्रयोगशाला में पहला निषेचन किया था. डा. राबर्ट एडवर्डस को नोबल पुरूष्कार, डा. इन्दिरा हिंदुजा को प्रथम भारतीय परख नली शिशु पैदा कराने का गौरव मिला, परन्तु डा. सुभाष मुखोपाध्याय को क्या मिला -सामाजिक बहिष्कार, तिरस्कार के बाद मौत. उन्हें यह कैसे पता चलेगा कि उनके अनुसंधान को अंतराष्ट्रीय मान्यता मिल चुकी है ?? सुप्रसिद्ध निर्माता ,निर्देशक तपन सिन्हा ने उन पर एक फिल्म बनाई थी -एक डाक्टर की मौत , जो उनके लिए सच्ची श्रद्धांजलि थी .उनके अपनों ने तो उन्हें पीड़ा के सिवा कुछ नहीं दिया .
गर , तूफां डुबो देता तो गम नहीं होता,
किनारे आकर डूबा हूं,किनारे बेवफा निकले.
                          -
Er S D Ojha
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