संयुक्त परिवार का मुखिया

 पहले के संयुक्त परिवार में काका चाचा ताऊ सबका परिवार होता था । कई पीढ़ियों से इनका एकीकरण चला आ रहा होता था । ये परिवार त्याग व एकजुट संघर्ष पर चलते थे । सबसे यथाशक्य प्रतिदान लिया जाता था । यदि कोई प्रतिदान देने में सक्षम नहीं है तो उससे प्रतिदान नहीं लिया जाता था । उल्टे उसकी मदद की जाती थी ।

परिवार का एक मुखिया होता था । इस मुखिया की हर कोई बात मानता था । वह परिवार का सुप्रीमो होता था । उसका कहा पत्थर की लकीर होती थी । वैसे हमारे यहाँ मुखिया को लतमरुआ कहा जाता था । मुखिया की तुलना घर के चौखट से होती थी । चौखट का मतलब दहलीज । दहलीज पर पाँव रखकर सभी आते जाते हैं । वह सभी के लात सहन करता है ।इसलिए परिवार के मुखिया को लतमरुआ कहा जाता है । 

परिवार के मुखिया में गजब की सहन शक्ति होती थी । वह सबकी सुनता था । सब उसको सुनाते थे । वह सबके सुख सुविधा का ख्याल रखता था । उसके भरोसे आप अपने बच्चों को छोड़कर कहीं भी चलें जाएँ,  वह आपके बच्चों के पढ़ाई लिखाई,  खाने पीने व कपड़े लत्ते से लेकर उनकी हर सुख सुविधा का ख्याल रखता था । परिवार का मुखिया परिवार के बच्चों को मिल बाँट कर खाने और मिल बहोरकर रहने की प्रेरणा देता था । उनमें अनुशासन का बीजारोपण करता था।

मुखिया के कारण हीं बच्चे आत्मकेंद्रित नहीं होते थे । परिवार  में सहिष्णुता और त्याग की भावना पनपती । परिवार के मुखिया में गजब का धैर्य व सहनशीलता होती थी । इसी के बल पर वे परिवार की गाड़ी खींच रहे थे । आज भी कुछेक परिवारों की गाड़ी खींची जा रही है ।

मेरे गाँव से करीबन दो मील की दूरी पर स्थित  एक गाँव में ऐसा हीं संयुक्त परिवार था । इस परिवार में गालिबन डेढ़ सौ तक लोग थे । कुछेक परिवार दूसरे शहरों में नौकरी पर थे तो कुछेक गाँव में कृषि पर आश्रित थे । जब कभी कोई काज परोजन होता सभी परिवार इकठ्ठा हो जाता । दो चार दिनों तक परिवार का माहौल खुशगवार रहता । उसके बाद नौकरी पेशा नौकरी पर और कृषि आश्रित लोग घर पर होते थे । इस संयुक्त परिवार के मुखिया की बहुत चलती थी । उनके कहे अनुसार सभी अपने हिस्से का प्रतिदान दिया करते थे ।

जब इस परिवार के मुखिया मरने लगे तो पूरा परिवार बुलवा लिया गया । परिवार के मुखिया ने कहा था - 

" आज मैं एक भरा पूरा संयुक्त परिवार छोड़े जा रहा हूँ । इसमें मेरा परिवार भी था , लेकिन वह इस संयुक्त परिवार में दूध में चीनी की तरह घुल मिल गया था । मुझे अपना परिवार कहीं भी अलग से नजर नहीं आया । इसीलिए मुझे अपने परिवार की अलग से देख भाल करने की कभी आवश्यकता नहीं पड़ी "।

अब सांझा चूल्हे की परिकल्पना असम्भव है , क्योंकि अब मुखिया पहले जैसे नहीं रहे ।


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