अब शहीदों की चिताओं पर न मेले सजते हैं.

10 स्मार्ट गंगा शहर बनाने की भारत सरकार की योजना है. इन शहरों में सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट व जल निकासी का अभियान जनता जनार्दन की मदद से चलाया जाएगा. 13 अगस्त सन् 2016 को 10 स्मार्ट गंगा शहर बनाने की सूची घोषित की गई. इस सूची में बैरकपुर का भी नाम है. बैरकपुर 24 परगना जनपद के अंतर्गत् हुगली (गंगा) नदी के तट पर बसा पश्चिम बंगाल का एक प्रमुख शहर है. यहां ईस्ट इंडिया कम्पनी के समय से हीं अार्मी की छावनियां हैं. उन छावनियों में जवानों के रहने के लिए बैरक बने हुए हैं. इन बैरकों के नाम पर इस शहर का नाम बैरकपुर रखा गया . वैसे स्थानीय लोग इसे चानक कहते थे.
बैरक पुर से हीं प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का सूत्रपात हुआ था. उस समय के कारतूस में जन धारणा के अनुसार गाय और सूअर की चर्बी मिली होती थी, जिसे दांत से खींचना पड़ता था. यह कृत्य हिंदू मुसलमान दोनों के लिए असहनीय था. उत्तर प्रदेश के बलिया जनपद के निवासी मंगल पाण्डेय ने इसके विरोध में 29 मार्च सन् 1857 को गोली चलाकर दो अंग्रेज अफसरों को मार डाला. जमादार ईश्वरी प्रसाद ने हुक्म देने के बावजूद मंगल पाण्डेय को गिरफ्तार नहीं किया. कुछ सैनिक मंगल पाण्डेय को गिरफ्तार करने आगे बढ़े तो जमादार ईश्वरी प्रसाद ने उन्हें डांटकर पीछे कर दिया. इस प्रकार ईश्वरी प्रसाद को भी अंग्रेजों ने मंगल पाण्डेय के समान हीं दोषी माना. बाद में कुछ कृतघ्न सिपाहियों की मदद से इन दोनों रण बांकुरों पर अंग्रेजों ने काबू पाया. मुकदमा चला. दोनों को दोषी करार दिया गया.
उसी का शहर, वही मुद्दई , वही मुंसफ,
हमें यकीं था, हमारा कसूर निकलेगा.
सबसे पहले ईश्वरी प्रसाद को दिनांक 6 अप्रैल सन् 1857 को फांसी दी गयी. इसलिए ईश्वरी प्रसाद को स्वतंत्रता संग्राम के शहीदों में प्रथम शहीद का दर्जा मिला. मंगल पाण्डेय को ईश्वरी प्रसाद के फांसी के दो दिन बाद अर्थात् दिनांक 8 अप्रैल सन् 1857 को फांसी दी गयी . इन दोनों को फांसी देने के लिए स्थानीय जल्लादों ने मना कर दिया था. इसलिए अंग्रेजों ने कलकत्ता से विशेष तौर पर जल्लाद बुलाया था. 
सन् 2007 में ईश्वरी प्रसाद और मंगल पाण्डेय को फांसी देने के 150 साल बाद पश्चिम बंगाल सरकार ने आम सभाएं कीं, नारे लगाए और जगह जगह पोस्टर चिपकाए. इस तरह मना दी गयी इन शहीदों की शहादत की 150 वीं पुण्य तिथि, किन्तु खेद का विषय है कि आज भी स्वतंत्रता संग्राम के प्रथम शहीद ईश्वरी प्रसाद का बैरकपुर में एक भी स्टेचू या कोई स्मृति चिन्ह नहीं  है. मंगल पाण्डेय का एक स्टेचू , उनके नाम का एक स्मृति संग्रहालय और पार्क जरूर बना है,पर उनकी हालत काफी बदतर है. अाप नीचे दिये गये चित्र में देख सकते हैं कि किस कदर स्मृति भवन पर झाड़ झंखाड़ खड़े हैं, किस तरह भवन की दीवारें टूटी और दरवाजे नदारद हैं. आज तक इन शहीदों को फ्रीडम फाइटर का दर्जा भी नहीं मिला है. और तो अौर ,इन शहीदों की मजारों पर दो श्रद्धा सुमन चढ़ाने के लिए भी हमारे पास वक्त नहीं है.
अब शहीदों की मजारों पर न मेले सजते हैं,
है कहां फुरसत जरा भी लोगों को घर बार से.
              - ई एस डी ओझा

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