आया लोहड़ी का त्यौहार ।
लोहड़ी वस्तुतः पंजाब व हरियाणा का त्यौहार है , लेकिन यह दिल्ली, जम्मू कश्मीर और हिमाचल में भी मनाया जाता है । आजकल यह पश्चिमी उत्तर प्रदेश, बंगाल और उड़ीसा में भी मनाया जाने लगा है । यह मकर संक्रांति की पूर्व संध्या को मनाया जाता है । रात को खुले में आग जलाई जाती है । लोग आग के चारों ओर घेरा बनाकर नाचते हैं । खुशी मनाते हैं । रेवड़ी, गजक और मूंगफली खाते हैं । कुछ अग्नि देवता को भी खिलाते हैं । इस दिन के बाद से सूर्य मकर राशि में प्रवेश कर जाता है । सूर्य दक्षियाण से उत्तरायण में आता है । आज का दिन पौष मास का अंतिम दिन होता है ।
लोहड़ी तीन अक्षरों से बना है । ल+ ओहा + ड़ी । ल से लकड़ी । ओहा से सूखे उपले ( गोहा ) । ड़ी से रेवड़ी । यह दिन शीत के जाने और बसंत के आने का द्योतक है । आज के हीं दिन सती अपने पिता दक्ष प्रजापति के अग्नि कुण्ड में अपने प्राणों की आहुति दी थी । दक्ष ने अपने दामाद शिव व पार्वती को अपने यज्ञ में नहीं बुलाया था । फिर भी पार्वती शिव के मना करने के बावजूद यज्ञ में शामिल हुईं थीं । वहाँ उन्होंने शिव का अपमान देखा । यज्ञ में शिव का भाग न निकालने पर सती ने क्षुब्ध हो यज्ञ कुण्ड में कूद गयीं थीं ।
आज का दिन सती के बलिदान को याद करने का भी दिन है । यह त्यौहार सती के प्रायश्चित का दिन भी है । लोहड़ी के दिन लड़कियों को खुश रखा जाता है । उनके ससुराल में कपड़ा, मिठाई व फल भेजा जाता है । इसे लोहड़ी भेजना कहा जाता है । इस तरह से मायके वाले बेटी को सौगात भेजकर सती को खुश करते हैं । किसी तरह के अनिष्ट की आशंका को निर्मूल करते हैं ।
इसी तरह का सौगात पूर्वांचल में भी भेजा जाता है । इसे खिचड़ी भेजना कहते हैं । खिचड़ी के सौगात में बेटी के घर तिलवा भेजा जाता है । साथ में कपड़े भी । ऐसा कर पूर्वांचली लोग सती से क्षमा याचना करते हैं । सबको क्षमा मिल गयी , लेकिन यक्ष को क्षमा नहीं मिली । वे बेचारे भी बेटियों को सीरनी सौगात तो भेजते हैं , पर वे शापित हैं । उनके वंशज राजसी ठाठ छोड़ मिट्टी के वर्तन बनाते हैं । फिर भी प्रजापति कहलाते हैं । जब प्रजा हीं नहीं रही तो वे किसके पति है ?
पोंगल का त्यौहार भी लोहड़ी व मकर संक्रांति के आस पास हीं मनाया जाता है । राजा बाली को विष्णु ने वामन रुप धारण कर छल से पाताल लोक भेज दिया था । कहते हैं कि राजा बाली पोंगल के दिन पृथ्वी पर वापस आते हैं । अपनी प्रजा जनों का हाल चाल लेकर फिर वापस पाताल लोक चले जाते हैं । पोंगल की सीरनी भी बेटियों को भेजी जाती है ।
लोहड़ी से एक महीने पहले लड़के लड़कियाँ लोगों से उपले व लकड़ियां मांगना शुरू कर देते हैं । मांगने का तरीका भी शानदार होता है । वे कहते हैं-
दे नी माई पाथी तेरा पूत चढ़ेगा हाथी ।
अब कौन माँ अपने पूत को हाथी पर चढ़ाना नहीं चाहेगी । हाथी चढ़ने का मतलब ऊंचा ओहदा मिलना होता है । ऐसे में माई पाथी (उपला) जरुर देगी ।
लोहड़ी का दूसरा नाम " मोहमाई " या " महामाई " भी है । लोहड़ी से कुछ दिन पहले बच्चे दूकानदारों से महामाई के नाम पर चंदा लेते हैं । इस पैसे से रेवड़ी, गजक और मूंगफली खरीदते हैं । कुछ खाते हैं और कुछ बांटते हैं ।
लोहड़ी का विवाह भी होता है । कुछेक बच्चे शरारतन अपनी लोहड़ी की आग दूसरे की लोहड़ी में डाल देते हैं । यह उनकी लोहड़ी का दूसरी लोहड़ी से विवाह होना माना जाता है । ऐसे में क्लेश हो जाता है । मार पीट की नौबत आ जाती है । ऐसा केवल शहरों में हीं होता है । बुजुर्ग इन झगड़ों को निपटाने का काम करते हैं ।
लोहड़ी के आग के सामने बैठकर दुला भट्टी की कहानी भी कही सुनी जाती है । दुला भट्टी बादशाह अकबर का समकालीन था । उस दौर में लड़कियों की खरीद बेच होती थी । दुला भट्टी ने इसी लोहड़ी के दिन कुछ लड़कियों का उद्धर किया था । दुला भट्टी की याद में भी लोहड़ी मनाई जाती है ।
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