एक मुद्दत से मैंने खुद को आईने में नहीं देखा.
दाढ़ी रखने वाले बुद्धिजीवी कहे जाते हैं. कभी कभी इन्हें मवाली भी कहा जाता है, जो कि व्यक्ति के व्यक्तित्व पर निर्भर करता है. यदि कोई दाढ़ी के साथ चिंतन मनन की बातें करते हैं तो वह बुद्धिजीवी और यदि टपोरी बातें करता है तो वह मवाली कहा जाता है.दाढ़ी हर चेहरे पर नहीं फबती. इसके लिए कुछ चेहरा विशेष होता है. कुछ चेहरे सफाचट चाकलेटी हीं अच्छे लगते हैं.
दाढ़ी मूंछ महिलाओं को देना चाहिए था, कारण, इन्हें सजने संवरने का बहुत शौक होता है. वे रोज दाढ़ी मूंछें साफ करतीं. गाढ़ा मेकअप करतीं. पता हीं नहीं चलता कि यहां कभी खेती आबाद थी. हर दिन उनका यही सिलसिला होता. हम मर्द रोज रोज के झंझट से फारिग हो जाते . लेकिन होता वही है जो मंजूर -ए-खुदा होता है. हमें किसी का श्राप है, जिससे कि हमें दाढ़ी मिली है. रोज नहीं तो एक दो दिन बाद चेहरे के ये अवांछित बाल हटाने हीं पड़ते हैं. दीपक को भी श्राप है . इसीलिए यह ताउम्र जलता रहता है.
किसी पतंगे की बद दुआ है,
ये उम्र भर को जला करेगा.
फिल्मों में अक्सर दाढ़ी खलनायक हीं रखते हैं और नायक क्लीन शेव. अनुपम खेर का सिर गंजा है, पर गालों की खेती लहलहाती है. वे शेव करते हैं. सिर के जो थोड़े से साइड के बाल हैं, उस पर भी वे उस्तरा फिरवा देते हैं ताकि बीरानी एक जैसी नजर आए .अमिताभ बच्चन ने बुढ़ौती में अब जाकर फ्रेंच कट दाढ़ी रखी है. अनिल कपूर ने किसी किसी फिल्म में हल्की दाढ़ी रखी है.
हर रोज दाढ़ी बनाना मुझे पसंद नहीं था, पर जब से आई टी बी पी में भर्ती हुआ, तब से मैं बिला नागा दाढ़ी बनाने लगा. यहां तक कि रविवार को भी. क्या पता कब कोई आफिसर टकर जाए और इज्जत का फलूदा बना दे. छुट्टी जाने पर भी रोज दाढ़ी बनाता था. घर वाले शनिवार, मंगल वार को दाढ़ी बनाने को रोकते तो उस दिन छुपकर दाढ़ी बना लेता . अब रिटायर होकर फिर से मस्तमौला हो गया हूं. अब एक दो दिन छोड़ के दाढ़ी बनाता हूं. हालात इरादा बदलने पर मजबूर कर देते हैं. इरादा बदलने पर एक शेर अर्ज है -
सोचा था रेशमी रूमाल बन, तुम्हारे करीब रहूंगा.
लेकिन जब से तुम्हें सर्दी हुई, इरादा बदल दिया.
प्राचीन काल में लोग सीप, पत्थर, शार्क के दांत व तांबे के टुकड़े से दाढ़ी बनाते थे, जो कि श्रमसाध्य के साथ कष्टकारक भी था. 18 ,19 वीं सदी में दाढ़ी बनाने के लिए छुरे का आविष्कार किया गया, जिससे दाढ़ी बनाना अत्यंत आसान हो गया. ये छुरे धारदार होते थे, जिनसे कभी कभार त्वचा कट जाती थी. इसलिए अनाड़ी आदमी दाढ़ी बनाने से घबराते थे. खिलाड़ी आदमी हीं उस्तरे से दाढ़ी बनाते थे. बाकी नाई से बनवाते थे.
सन् 1901 में जिल्लट नाम के आदमी ने एक ऐसा रेजर बनाया, जिसमें दो ब्लेड होते थे, जिससे दाढ़ी बहुत साफ्ट बनती थी. अब रेजर में तीन ब्लेड होने लगे हैं. इस रेजर का नाम इसके आविष्कारकर्ता के नाम पर जिल्लट रखा गया है. इस रेजर की खासियत थी - यूज एण्ड थ्रो. इस ब्लेड ने दुनियां भर में अपनी धाक मचा दी. सन् 1931 में इलेक्ट्रिक रेजर आया . यह जिल्लट रेजर का विकल्प नहीं बना. इससे दाढ़ी के बाल बहुधा छूट जाते थे.
दाढ़ी कटे नहीं, इसलिए चेहरे को फेस वाश से अच्छी तरह धो लेना चाहिए. हल्के गर्म पानी से चेहरे पर शेविंग क्रीम लगाएं. झाग बनाएं. जब दाढ़ी के बाल साफ्ट हो जाएं तो रेजर चलाएं. रेजर गाल पर सरपट दौडेगा. दाढ़ी साफ्ट बनेगी . चेहरा खिल उठेगा. वर्ना चेहरे की त्वचा कट छिल जाएगी . हमने गांव में बिना मुलायम किए दाढ़ी बनवाते लोगों को देखा है. हज्जाम का उस्तरा बड़ी बेरहमी से चलता है और लोग बैठे बैठे अचानक जमीन छोड़ने लगते हैं. जिस दिशा में बाल उगते हैं, उनके विपरीत रेजर न चलाएं. लापरवाही से बाल हटाने से वायरल संक्रमण हो जाता है. चेहरे पर छोटी छोटी फुन्सियों का राज हो जाता है. आप एक हफ्ते तक दाढ़ी नहीं बना सकते.
दाढ़ी के बाल प्रोटीन और प्रोटीन से मिलते जुलते पदार्थों से मिलकर बने हैं. इसमें सल्फर भी होता है. एक स्वस्थ चेहरे पर तकरीबन 25000 बाल होते हैं, जो 24 घंटे में 1/2 mm बढ़ता है. दाढ़ी बनाना भी एक तपस्या है. दत्त चित्त हो दाढ़ी बनाइए. फालतू की बात मन में न लाएं. हड़बड़ी में दाढ़ी बनाएंगे तो त्वचा कट सकती है.
दाढ़ी बनाने के बाद खराब ब्लेड को कूड़े में खुले तौर पर न फेंकें. इससे कूड़े में गत्ते, प्लास्टिक, लोहा आदि खोजने वाले हाथ घायल हो सकते हैं. कुत्ते और गाय अक्सर कूड़े में मुंह मारा करते हैं. उनके थुथुन खून से लबरेज हो सकते हैं. बेहतर तो यही है कि बेकार रेजर को जमीन के अंदर गाड़ दें.
चलते चलते एक नेक सलाह . जब भी आपको अपनी दाढ़ी का हाल जानना हो और पास में आइना न हो तो किसी नाजनींन से पूछ लीजिए -
तू घड़ी भर के लिए मेरी नजरों के सामने आ,
एक मुद्दत से मैंनें खुद को आइने में नहीं देखा.
इं एस डी ओझा
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