पेस मेकर

 जिस तरह से धमनियों में अवरोध होता है , उसी तरह से दिल में भी अवरोध उत्पन्न होता है । दिल के अवरोध के कारण चक्कर आते हैं । घबराहट होती है । मेरे एक मित्र को इन्हीं लक्षणों के कारण उनकी छाती में पेसमेकर लगाया गया है । कोरोना के कारण हमें पता नहीं चल पाया । बहुत दिनों बाद पता चला तो हम मास्क लगा कर उनसे मिलने गये थे । उनकी छाती में कालर बोन के नीचे एक छोटा सा उठान नजर आ रहा था ।

पेसमेकर एक मशीन होता है , जिसके दो भाग होते हैं । पहला भाग तो वह मशीन होता है , जो दिल की धड़कनों को नियंत्रित करता है । दूसरा भाग वह लीड ( तार ) होती है जो मशीन को दिल से जोड़ती है । इसके लिए मरीज को लोकल एनेस्थीसिया दी जाती है । मरीज पूरे होशोहवास में रहता है । डाक्टर मरीज से बातें करता रहता है और अपना काम भी करता जाता है ।

मरीज के कालर बोन के ठीक नीचे चीरा लगाकर डाक्टर चर्बी के साथ मशीन को फिट करता है । फिर दिल को जाने वाली नस को पंचर करके उसमें लीड डालता है । लीड को वह तब तक घुमाता रहता है जब तक वह उस नस  के माध्यम से दिल के यथोचित स्थान तक पहुँच नहीं जाता । इस क्रिया में आधे घंटे से लेकर दो तीन घंटे भी लग सकते हैं । डाक्टर पेसमेकर के लीड के गुच्छे को भी चमड़ी के नीचे चर्बी के साथ सिलकर टांके लगा देता है ।

पेसमेकर बैटरी से चलता है । इसकी बैटरी हर दस साल बाद बदलवानी पड़ती है । पेसमेकर एक ट्रांसफार्मर की तरह काम करता है । जिस तरह से ट्रांसफार्मर लो वोल्टेज  को ज्यादा करता है और अधिक वोल्टेज को कम करता है ; उसी तरह से पेसमेकर भी हृदय की कम धड़कन को अधिक और अधिक धड़कन को धीमी गति प्रदान करता है । यह ट्रांसफार्मर की तरह हीं स्टेप अप व स्टेप डाऊन का काम करता है ।

पेसमेकर लगाने में जोखिम भी होता है । कई बार डाक्टर गलत नस को पंचर कर देता है । कई बार चीरा फेफड़े के नीचे हो जाता है , जिससे खून फेफड़ों में जाने लगता है । ऐसे हालात को काबू करने में डाक्टर सिद्धहस्त होते हैं । वे शीघ्र हीं हालात पर काबू पा लेते हैं ।  इस आपरेशन के बाद मरीज को हाॅस्पिटल में चार से पाँच दिन तक रखा जाता है , फिर उन्हें छुट्टी दे दी जाती है ।

महीने भर बाद डाक्टर पेसमेकर प्रोग्रामिंग करते हैं । हर साल भर के बाद पेसमेकर की जाँच करानी चाहिए । चाहे तकलीफ हो या न हो । पेसमेकर लगाया हुआ मरीज एम आर आई नहीं करा सकता । मरीज को काफी एक्टिव रहना पड़ता है । घूमना फिरना उसके नियमित दिनचर्या का अंग होना चाहिए । हल्की फुल्की कसरतें भी मरीज के लिए मुफीद होतीं हैं ।

आज पूरे विश्व में तकरीबन 7 लाख मरीज हर साल पेसमेकर लगवा रहे हैं । 40 लाख से ज्यादा लोग इसी पेसमेकर के कारण हीं जिंदा हैं । पेसमेकर अब टेबलेट के रुप में भी आ चुका हैं,  जो मूल पेसमेकर के दसवें हिस्से के बराबर है । इसे लगाने से चमड़ी के नीचे इंफेक्सन का खतरा नहीं होता है । पेसमेकर हृदय रोगियों के लिए वरदान बनकर दुनियां में आया है । इसमें उत्तरोत्तर सुधार होता जा रहा है । मानव की उम्र लम्बी होती जा रही है । 

  



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