हिंदी दिवस पर 14 september विशेष. आज से यह जीवन उत्सर्ग.

कामायनी में जिस तरह एक के बाद एक घटनाएं घटित होती हैं, उसे देखते हुए इसे कविता में लिखा हुआ उपन्यास कह सकते हैं. हिंदी काव्य जगत के प्रमुख स्तम्भ जयशंकर प्रसाद द्वारा रचित यह ग्रंथ आधुनिक हिंदी साहित्य का सर्वश्रेष्ठ महाकाव्य है. कुछ लोग इसे छाया वाद का उपनिषद मानते हैं. इस काव्य ग्रंथ में त्याग, तपस्या व समर्पण की त्रिवेणी बही है.
कामायनी शैव सम्प्रदाय के प्रख्यात प्रत्यभिज्ञा दर्शन पर आधारित है.समूल सृष्टि समाप्त हो जाती है .चारों तरफ पानी हीं पानी है. ऐसे में मनु एक शिला पर बैठे प्रकृति का यह रौद्र रूप अन्यमनस्क हो देख रहे थे. तभी श्रद्धा का वहां आगमन होता है. वह मनु से पूछती है -
कौन तुम संसृति जल निधि तीर तरंगों से फेंकी मणि एक,
कर रहे प्रभा की धारा से निर्जन का चुपचाप अभिषेक.
श्रद्धा और मनु का परिचय होता है. वे दोनों पुनः सृष्टि रचना करने के लिए उद्दत होते हैं. श्रद्धा भावी संतान के लालन पालन की कल्पना में खोई हुई है. वह अनजाने में मनु के अस्तित्व से बेखबर हो जाती है. मां की ममता का अंदाज वे लोग नहीं लगा सकते, जो DINKS (Double income no kids) में आस्था रखते हैं. मनु भी श्रद्धा को नहीं समझ पाए. वे श्रद्धा के भावी पुत्र के प्रति प्रेम को अपनी अवमानना के रूप में देखते हैं और श्रद्धा को छोड़ इडा़ के पास चले जाते हैं.
श्रद्धा अपने पुत्र मानव के साथ लेकर मनु के पास पहुंचती है. अबकी बार मनु पाश्चाताप की अग्नि में जलने लगते हैं. मनु श्रद्धा और इडा़ दोनों को छोड़ एक बार फिर पलायन कर जाते हैं. नारी का दर्द नारी हीं समझती है, बेशक वह खुद की सौत हीं क्यों न हो? श्रद्धा और इड़ा एक दूसरे का सम्बल बनती हैं. श्रद्धा अपने पुत्र मानव को इड़ा के पास छोड़ एक बार फिर मनु की तलाश में निकलती है. उसकी तलाश पूरी होती है. मनु मिलते हैं.
अंग्रेजी के लेखक खुशवंत सिंह ने एक बार एक इंटरव्यू में कहा था कि उन्हें इस बात का सदैव मलाल रहेगा कि उन्होंने कामायनी का अंग्रेजी में अनूदित वरजन हीं पढ़ा. हिंदी में पढ़ते तो कुछ और बात होती. उनका कहना था कि वे हिंदी को किंतु, परंतु की हीं भाषा मानते रहे और हिंदी की जानकारी न होने के कारण  ऐसी उत्कृष्ट रचना पढ़ने से वे मरहूम रह गये. तुलसी कृत रामचरित मानस के बाद कामायनी को दूसरा अनुपम महाकाव्य माना गया है. डा. शिवकुमार शर्मा कामायनी को व्यक्तिवादी काव्य की चरम परिणिती मानते हैं.
जयशंकर प्रसाद की कामायनी हिंदी साहित्य का एक ऐसा गौरव ग्रंथ है ,जिस पर सबसे अधिक आलोचनात्मक लेख व पुस्तकें लिखीं गईं हैं .कई बार आलोचना अनर्गल भी हुई है .साम्यवादी विचारधारा से प्रभावित मुक्तिबोध ने कामायनी को साम्यवादी विचारों से प्रेरित बताया है. यदि प्रसाद को पता होता कि उन्हें साम्यवादी घोषित कर दिया जाएगा तो वे कामायनी लिखने से पहले सौ बार सोचते. महादेवी वर्मा ने ठीक हीं कहा है - वुद्धि अधिक्य से पीड़ित हमारे युग को प्रसाद का सबसे महत्वपूर्ण दान कामायनी है. वुद्धि अधिक्य से पीड़ित लोग मात्र आलोचना करने के लिए आलोचना करते हैं.
एक साहित्यिक गोष्ठी में पंडित नेहरू ने कहा था कि हिंदी में उत्कृष्ट रचनाओं का अभाव है. उस गोष्ठी में महाप्राण निराला भी थे. तत्क्षण हीं निराला ने नेहरू के पास एक नोट भिजवाया -' आप प्रसाद की कामायनी पढ़ें. आपकी शिकायत दूर हो जाएगी. '
कामायनी विशिष्ट शैली में रची 15 सर्गों की एक विशेष महाकाव्य है, जिसका हरेक सर्ग स्वतंत्र रूप से सम्मोहित करने में सक्षम है. कामायनी में प्रसाद जी ने प्रतीकात्मक पात्रों के द्वारा दर्शन शास्त्र का चित्रण बड़ी खूबसूरती से किया है. यह दर्शन श्रद्धा व मनु को आधार बनाकर मानवता के विजयी होने का संदेश देता है.
शक्ति के विद्युत्त कण जो व्यस्त.
विकल विखर हो निरूपाय.
समन्यव उनका करे समस्त,
विजयिनी मानवता हो जाय.
श्रद्धा के शालीन सौन्दर्य का वर्णन जो प्रसाद ने कामायनी में किया है, वह उन्हें कीट्स व बायरन जैसे विश्व प्रसिद्ध कवियों की सूची में शुमार करता है.
नील परिधान बीच सुकुमार खुल रहा मृदुल अधखुला अंग,
खिला हो ज्यों बिजली का फूल, मेघ वन बीच गुलाबी रंग.
नारी को श्रद्धा मानने वाले जयशंकर प्रसाद नारी को त्याग व समर्पण का पर्याय भी मानते हैं. कामायनी में श्रद्धा कहती है -
समर्पण लो सेवा का सार,
सजल संसृति की यह पतवार,
आज से यह जीवन उत्सर्ग,
इसी पद तल में विगत विकार.
कामायनी में जयशंकर प्रसाद ने प्रकृति से रागात्मक सम्बंध कायम किया है -
क्या तुम्हें देखकर आते यों मतवाली कोयल बोली थी.
उस नीरवता में अलसायी कलियों ने अांखें खोलीं थीं .
इस प्रकार हम देखते हैं कि भाषा और शैली की दृष्टिकोण से कामायनी एक अप्रतिम रचना है.यह विश्व का अद्वीतिय ग्रंथ है.
              -इं एस डी ओझा

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