प्रसिद्ध अभिनेता राजेन्द्र कुमार पुण्य तिथि .(12 July)
प्रसिद्ध अभिनेता राजेन्द्र कुमार का जन्म 20 जुलाई सन् 1929 को सियालकोट में हुआ था. सियालकोट आजकल पाकिस्तान में है. उनका पूरा नाम राजेन्द्र कुमार तुली था. अपने पिता द्वारा दी हुई घड़ी को बेचकर वे मुम्बई अपनी किस्मत आजमाने पहुंचे थे. शुरू में उन्हें दिलीप कुमार के साथ फिल्म में एक छोटा रोल मिला था. बाद में सन् 1957 में उन्हें महबूब खान की मदर इंडिया में नरगिस व सुनील दत्त के साथ काम करने का मौका मिला. इस फिल्म में न केवल उनके काम को सराहा गया, बल्कि इस फिल्म ने उन्हें स्थायी तौर पर फिल्मी दुनियाँ का बना दिया. दो साल बाद उन्हें 'गूंज उठी शहनाई ' में काम करने का मौका मिला. इसमें शहनाई वादन विस्मिला खां का था, परन्तु पर्दे पर शहनाई वादन का अभिनय राजेन्द्र कुमार ने इतनी शिद्दत से की कि लोगों को लगा कि असल शहनाई वादन राजेन्द्र कुमार ने हीं की है. विस्मिला खां ने शाट ओके होते हीं दौड़कर राजेन्द्र कुमार को गले लगा लिया.
उसके बाद राजेन्द्र कुमार ने पीछे मुड़कर नहीं देखा. दिल एक मंदिर, धूल का फूल, मेरे महबूब, आई मिलन की बेला, संगम, सूरज और आरजू आदि फिल्मों ने उन्हें फिल्मी दुनियां का जुबली कुमार बना दिया. एक बार उनकी एक साथ छः फिल्में सिल्वर जुबली हिट हुईं . फिल्म संगम में राजकपूर दिलीप कुमार को लेना चाहते थे. उन्होंने दिलीप कुमार से हीरो के दो रोलों में से कोई भी एक चुनने का आप्सन रखा था. दिलीप कुमार ने विनम्रता से इंकार कर दिया. उन दिनों लोग अक्सर तुलना करते थे कि राज कपूर और दिलीप कुमार में कौन बड़ा है? शायद इसीलिए दिलीप कुमार ने मना कर दिया होगा कि बेवजह फिर उनकी तुलना राजकपूर से होगी. राज कपूर उनके अजीज दोस्त थे. तुलना करने से दोनों के रिश्तों में खटास आती. अन्ततोगत्वा राजकपूर ने वह रोल राजेन्द्र कुमार को दे दिया. राजेन्द्र कुमार ने मनोयोग से उस रोल को निभाया. उन्हें संगम के लिए वेस्ट सपोर्टिंग एक्टर के लिए नामांकित किया गया.
राजेन्द्र कुमार, दिलीप कुमार की एक्टिंग से काफी प्रभावित थे. इसलिए उन पर फिल्म समीक्षकों ने दिलीप कुमार की नकल करने का आरोप मढ़ा. मेरे ख्याल में राजेन्द्र कुमार दिलीप कुमार की परछाईं थे और परछाईं तमाम उम्र साथ साथ चलती है. देवानन्द के बाद रोमांटिक हीरो का सेहरा उनके हीं सर बंधा. राजेन्द्र कुमार ट्रेजेडी की भी एक्टिंग ठीक ठाक कर लेते थे, परन्तु गानों में वे अति नाटकीय हो जाते थे. उन्हें भारत सरकार ने पद्मश्री से नवाजा था. उनका पद्मश्री पुरुस्कार भी विवादित हो गया. राजकपूर, दिलीप कुमार और देवानन्द -त्रिदेव के रहते हुए उन्हें पद्मश्री क्यों मिला ? यह बहस का मुद्दा बना .
सत्तर के दशक में राजेश खन्ना एक धूमकेतु बन फिल्मी आकाश में उभरे. राजेश खन्ना की फिल्में अब जुबली हिट होने लगी. राजेन्द्र कुमार नेपथ्य में चले गये. उनका समय प्रतिकूल चलने लगा. गंवार, ललकार, तांगे वाला, गांव हमारा शहर तुम्हारा और आन बान आदि फिल्में एक के बाद एक पिटनी शुरू हो गईं . उनकी अन्तिम फिल्म 'साजन बिन सुहागिन ' सन् 1978 में आई थी , जो कि सुपर डुपर हिट रही .
अपने बेटे के कैरियर के लिए उन्होंने 'लव स्टोरी ' व 'नाम ' फिल्में बनाईं. फिल्में खूब चलीं, पर बेटा कुमार गौरव स्थापित न हो सका. अलबत्ता , नाम में कुमार गौरव के साथ काम करने वाले संजय दत्त जरूर स्थापित हो गये . जिन्दगी भर कोई दवाई न खाने वाले, संयमित जीवन जीने वाले राजेन्द्र कुमार का अन्तिम जीवन कैंसर ग्रस्त हो गया. इसी बीमारी से उन्होंने दिनांक 12 जुलाई सन् 1999 को इस दुनियाँ को अलविदा कह दिया.
अपने हीं दिल की आग में शम्मा पिघल गई .
शम्म - ए - हयात मौत के सांचे में ढल गई .
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