कचौड़ी गली सून कईलs बलमू.

काशी एक प्राचीन नगरी रही है. सर्वकालीन प्राचीन ग्रंथ ऋग्वेद में इसका सर्वप्रथम् उल्लेख मिलता है. इसे आनंद बन, काशी, वाराणसी और अब बनारस कहा जाने लगा है. वैसे कागजों में अब भी वाराणसी हीं लिखा जाता है, पर लोगों की जुबान पर अंग्रेजों का दिया हुआ नाम चढ़ा हुआ है - बनारस. बनारस में सड़क पर आगे आगे भैंस और उसके पीछे पीछे कार चलती है .यह अद्भुत दृश्य जिसने देखा , उसका जन्म सफल और जिसने नहीं देखा उसके बारे में यही कहना पड़ेगा ,"हीरा जन्म अमोल था ,कौड़ी बदले जाय." बीच सड़क पर सांड़ महोदय बैठ गये तो कितना भी हार्न बजाएं ,वे टस से मस नहीं होते .बेशक आप नया मुहावरा गढ़ लीजिए ,"सांड़ के आगे हार्न बजाए, सांड़ करे पगुराय.",पर इससे सांड़ के मान सम्मान पर तनिक भी आंच नहीं आएगी .
इतना सब होते हुए भी बनारस सड़कों के लिए नहीं मशहूर है, बल्कि इसकी प्रसिद्धि की वजह इसकी गलियां हैं. इसकी गलियां एक भूलभूलैयां से कम नहीं .अनजान आदमी इनमें खो सकता है. चलते चलते अचानक गली खत्म हो जाती है .फिर लौटो. नये सिरे से उन गलियों की फिर यात्रा करो. इस भूल भूलैया में फिर चूके तो दुसरी गली में जा पहुंचे. जाना था आपको विश्वनाथ गली, पहुंच गये कचौड़ी गली. यह सब देख बनारसी भाई मुदित आह्लादित होते हैं. किसी कवि ने ठीक हीं कहा है-
भटक गली में हम अकुलानी.
बनारसी देखि मधुर मुसुकानी.
बनारस की गलियां तो कहीं कहीं इतनी तंग हैं कि एक साथ दो आदमी नहीं गुजर सकते. इन गलियों में भटकते हुए आपको कोई राह बताने वाला भी नहीं मिलेगा. अगर कोई मिलेगा भी तो वह भी आपकी तरह से भटका हुआ हीं होगा. कई बार आप किसी पुराने नक्काशी दार दरवाजे से होकर गुजरेंगे. लगेगा कि आप किसी के घर में घुस रहे हैं, पर जैसे हीं आप उस दरवाजे से बाहर निकलेंगे, गली आगे बढ़ती चली जायेगी. कहीं लगेगा कि गली खत्म होने वाली है, लेकिन पास आने पर पता चलेगा कि दाएं या बाएं से एक और गली गुजर रही है. बेहतर तो यही है कि आप एक गाइड कर लें ,जो कि आपको गली की भूलभूलैया से निजात दिलवाएगा.
बनारस की गलियों के नाम भी अजीब से हैं. कचौड़ी गली, खोवा गली, ठठेरी गली, घुंघरानी गली, भूतही गली, इमली गली आदि. इन गलियों में कचौड़ी गली बहुत प्रसिद्ध है . विश्वनाथ गली के ठीक पीछे यह गली है , जिसमें केवल कचौरियां हीं बनती हैं. सुबह सात बजे से रात के बारह बजे तक इन कचौरियॊं को खाने वालों का तांता लगा रहता है. कचौरी और जलेबी की युगलबन्दी बहुत जमती है .विदेशियों के लिए यह खास गली है. लोग अन्त्येष्टि करने के बाद कचौरी गली की दूकानों पर टूट पड़ते हैं. सही है.  जाने वाला तो चला गया. अब जो जिन्दा हैं, उन्हें क्षुधा पूर्ति का हक तो है. कचौड़ी गली का उल्लेख लोकगीत कजरी में भी हुआ है.
सेजरिया पे लोटे काला नाग,
कचौड़ी गली सून कईलs बलमू.
मिर्जापुर कईलs गुलजार,
कचौड़ी गली सून कईलsबलमू.
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