हम खाक नशीं तुम रोशन आरा ..
रोशन आरा का जन्म 3 सितम्बर सन् 1617 को हुआ था . शाहजहाँ ने अपनी इस द्वितीय पुत्री को उत्तरी दिल्ली में 55 एकड़ भूमि बतौर गिफ्ट दी थी. रोशन आरा ने लाल किले की गहमा गहमी से दूर यहां पर एक बाग लगवाया था. रोशन आरा बाग नाम से मशहूर यह बाग आज वर्तमान सब्जी मंडी के पास अपने दुर्दिन के आंसू रो रहा है. इस बाग का मुख्य दरवाजा सड़ गया है. उस पर की गई नक्कास्सियां गिर रहीं हैं. गेट के पास से कई किमी दूरी तक कूड़े का अम्बार लगा हुआ है. इस बाग से पुरातत्व विभाग की वेरूखी बदस्तूर जारी है. अंग्रेजों ने इस बाग में स्थित रोशन आरा के महल में एक क्लब खोला था, जिसे रोशन आरा क्लब कहते हैं. आज भी इसके लोग मेम्बर हैं, पर वो रौनक नहीं, जो अंग्रेजों के समय में था. बाग उजड़ गया है. इसके फव्वारों में पानी नदारद है. पता नहीं चलता कि पानी की पाइप लाइन किधर से आई है और किधर गई है ? टनों मिट्टी व कचरे के ढेर जगह जगह इस बाग में पड़े हैं. कभी इस बाग की खूबसूरती व रोशन आरा के आलीशान भवन से चिढ़कर उसकी बड़ी बहन जहाँ आरा ने कहा था -
हम खाक नशीं, तुम रोशन आरा,
तुम मुझसे क्या बात करोगे ?
रोशन आरा व जहां आरा की आपसी रंजिश काफी पुरानी थी. जहाँ आरा अपने भाई दारा शिकोह की तरफदारी करती थी. बादशाह शाहजहां भी दारा शिकोह पर जान छिड़कता था. वह दारा शिकोह को दिल्ली की गद्दी पर बिठाना चाहता था. वहीं रोशन आरा औरंगजेब की हिमायती थी. वह राज भवन की हर गतिविधि की खबर औरंगजेब के पास पहुंचाती थी. जब शाहजहाँ दारा शिकोह का राज्याभिषेक की तैयारी कर रहा था, उस समय औरंगजेब दक्कन में था. रोशन आरा की सूचना पर हीं उसने शाहजहाँ से विद्रोह कर दिया. दारा शिकोह औरंगजेब से हुई लड़ाई में हार गया. रोशन आरा दारा शिकोह को काफिर समझती थी. उसी के कहने पर औरंगजेब ने दारा की हत्या करवाई और पिता शाहजहाँ को आगरा किले में कैद करवाया. और तो और, रोशन आरा की निर्दयता उस समय अपने चरम पर पहुंच गई ,जब उसने दारा शिकोह का सिर कलम करवा कर उसे सोने की परत चढ़े वस्त्र में बड़ी नफासत से लपेट शाहजहाँ को भिजवाया. साथ में एक रुक्का (संदेश) भी था, जिसमें लिखा था -औरंगजेब व रोशन आरा की तरफ से एक भेंट. भेंट देख शाहजहाँ अपने पलंग से गिर पड़ा और बेहोश हो गया. वह कई दिनों तक बदहवास रहा. जहां आरा ने बमुश्किल उसे सम्भाला. जहां आरा शाहजहाँ के साथ जीवन पर्यन्त बनी रही.
रोशन आरा को औरंगजेब ने प्रथम महिला का खिताब दिया, जब कि बड़ी होने के कारण यह खिताब जहां आरा को मिलना चाहिए था. रोशन आरा का प्रशासन में दखल बहुत बढ़ गया . औरंगजेब उसकी हर बात मानता था. वह दरबारियों में बेगम साहिबा के नाम से मशहूर थी. शिवाजी को कैद करने की सलाह रोशन आरा ने हीं औरंगजेब को दिया था. सन् 1664 में औरंगजेब बीमार पड़ा. बचने की कोई उम्मीद नहीं थी. रोशन आरा ने इस मौके का भरपूर फायदा उठाया. उसने षड़यंत्र के तहत राजकीय मुद्रिका पर कब्जा जमा लिया. कायदे से तो औरंगजेब के बड़े बेटे शाह आलम को राज गद्दी मिलती, पर रोशन आरा ने औरंगजेब के छः वर्षीय पुत्र आजमशाह को औरंगजेब का उत्तराधिकारी घोषित कर दिया. इसके पीछे रोशन आरा की मंशा थी कि जब तक आजम शाह बालिग नहीं होता तब तक उसे शासन करने को मिलेगा. उसे धन से अत्यधिक लोभ हो गया था. उसने भ्रष्टाचार के माध्यम से ढेर सारा धन एकत्र कर लिया था. रोशन आरा का दुर्योग था कि औरंगजेब ठीक हो गया. उसने ठीक होने के साथ हीं रोशन आरा के लिए गये सारे फैसले बदल दिए. रोशन आरा को उसके बाग वाले महल में जाने के लिए मजबूर कर दिया.
अब गुमनामी के अंधेरे में रोशन आरा जीने के लिए मजबूर हो गई . हालांकि उसके पास दिल बहलाने के लिए सैकड़ों दासियां थीं, पर जिसे हुकुमत का स्वाद लग गया हो, वह इस निर्जन में कैसे रहेगा ? वह उदास व निपट अकेली रह गई . इसी तन्हाई में 11सितम्बर सन् 1671 को मात्र 54 वर्ष की उम्र में रोशन आरा का इंतकाल हो गया. उसे उसके बाग में हीं दफना दिया गया. अपने अंजाम से पहले कहानी खत्म हो गई.
कभी मंजर बदलने पर किस्सा चल नहीं पाता,
कहानी खत्म होती है, कभी अंजाम से पहले.
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