नादिरशाह -एक आतातायी, एक तानाशाह.

नादिर कोली बेग का जन्म सन् 1668 में ईरान के खोरासन गांव में हुआ था. इसके पिता का साया बचपन में हीं उठ गया था. उसे उज्बेकों ने मां के साथ गुलाम बना लिया था, जहां से नादिर कोली किसी तरह बचकर निकल भागा. उज्बेकों की कैद से आजाद हो वह अफ्शार कबीले में शामिल हो गया. अपनी योग्यता के बल पर वह इस कबीले का सरदार बन गया.
उस दौरान ईरान पर साफवियों का अधिकार था. नादिर कोली बेग ईरानी सेना में भर्ती हो गया. कुछ हीं दिनों में यह तरक्की करता हुआ ईरानी सेना का सेनापति बन गया. उसने सेनापति बनते हीं उस्मानी व रुसी साम्राज्य से लोहा लेते हुए उन्हें ईरान से बाहर किया. ईरान का साफवी शाह तहामाश्प बहुत खुश हुआ और उसे कई पदवी और मनसब से नवाजा. सेना व जनता में नादिर कुली बेग की तूती बोलने लगी. उसने एक दिन तहामाश्प को सत्ता से स्वेच्छा से हटने और अपनी जगह पर अपने पुत्र अब्बास को ईरान का शाह बनाने का सुझाव दिया,जिसे तहामाश्प ने अविलम्ब मान लिया. अब्बास को शाह बनाने के पीछे नादिर कुली की कुटिल कूटनीतिक चाल थी, जो कि कुछ दिनों बाद पता चली.
कूटनीतिक चाल सफल हुई.नादिर कुली बेग ने सन् 1736 में अपने प्रमुख विश्वास पात्र सिपाहसलारों और प्रान्त प्रमुखों के समक्ष अपने को शाह घोषित कर दिया. अब उसका नाम नादिर कुली बेग की जगह नादिर शाह हो गया. उसने अपने अन्नदाता तहामाश्प व अब्बास को नजरबन्द कर दिया. ईरान का शाह बनते हीं नादिर शाह अफगानों से भिड़ा और उन पर अपना अधिकार कर लिया.
अब नादिर शाह की नजर भारत पर थी. उसने भारत पर आक्रमण के लिए बहाना यह बनाया कि मुगलों ने अफगान भगोड़ों को अपने यहां शरण दे रखी है. उस समय दिल्ली पर मोहम्मद शाह का शासन था. वह तबियत से बहुत रंगीन मिजाज था. इसलिए उसे मोहम्मद शाह रंगीला कहते थे. मोहम्मद शाह ने नादिर शाह को बहुत हल्के में लिया और रंगीनियों में डूबा रहा. नादिर शाह आसानी से जीत गया. हांलाकि उसके पास मुगलों से कम सेना थी, पर उसका तोप खाना बड़ा हीं असरदार था, जिसकी बदौलत उसकी जीत हुई. नादिर शाह ने वापस जाने की कीमत 2 करोड़ मांगी, जिसे मोहम्मद शाह ने सहर्ष मान लिया. नादिर शाह ने बाद में 2 करोड़ की रकम बढ़ाकर 20 करोड़ कर दी. यह रकम उन दिनों बहुत बड़ी रकम होती थी. मुगल खजाना खाली था. तभी यह अफवाह फैल गई कि नादिर शाह की मौत हो गई. दिल्ली वासी नादिर शाह की सेना को मारने लगे. नादिर शाह को बैठे बिठाए बहाना मिल गया. उसने भयंकर नरसंहार शुरू कर दिया. बाइस हजार स्त्री पुरूष मौत के घाट उतार दिए गये. कहां वह वापस जाने के लिए 20 करोड़ मांग रहा था, अब उसे लूट से 70 करोड़ मिले.
जाते समय उसने मोहम्मद शाह के हरम की सुन्दर स्त्रियों के साथ साथ मोहम्मद शाह की बेटी शाहनाज बानू को भी साथ ले गया. शाहनाज बानू का निकाह उसने अपने बेटे नसरूल्ला खां से कराया. नादिर शाह ने भारत से एक हजार हाथी, सात हजार घोड़े, दस हजार ऊंट, सौ खोजे, एक सौ तीस लेखक, दो सौ संगतराश, एक सौ राज और दो सौ बढ़ई अपने साथ ले गया. नादिर शाह को लूट से इतनी अकूत सम्पति मिली कि उसे अपनी प्रजा पर तीन साल तक कर लगाने की जरूरत नहीं महसूस हुई.
ईरान पहुंचकर नादिर शाह को पता चला कि उसके बेटे रजा कुली ने अपदस्थ और नजरबन्द शाह तहामाश्प व उसके बेटे अब्बास को मौत के घाट उतार दिया है. नादिर शाह को डर हुआ कि कहीं रजा कुली उसे भी षड्यंत्र के तहत न मार डाले. इसलिए उसने उसे अंधा करवा दिया. भारत से आने के बाद नादिर शाह ने दागोस्तान पर आक्रमण कर दिया, जिसमें उसकी बुरी तरह से हार हुई. इस हार को वह पचा नहीं पाया. वह तन और मन से बीमार रहने लगा. उसे अपने पुत्र को अंधा करने का गम सताने लगा. उसने उन सभी सरदारों का सर कलम करवा दिया, जिन लोगों ने रजा कुली को अंधा होते हुए देखा था. नादिर का कहना था कि इन सरदारों ने यह क्यों नहीं कहा था कि रजा कुली के बदले हमें अंधा कर दो.
पहले नादिर शाह अपने विरोधियों के लिए काल था, पर अपने अनुचरों, सैनिकों व रिश्तेदारों के प्रति उदार था. दागोस्तान की हार के बाद उसने जनता को भारी करों से लाद दिया. अपने रिश्तेदारों से भी धन की मांग करने लगा. जनता त्रस्त हो गई. 19 जून सन् 1747 में उसके अपने हीं अंगरक्षकों ने उसकी हत्या कर दी.
फारस का नेपोलियन कहा जाने वाला नादिर शाह का अंत इस कदर कारूणिक होगा, किसी ने सोचा भी नहीं था. हर आदमी में अच्छाई व बुराई होती है. नादिर शाह भी एक आदमी था. नजीर अकबराबादी के लफ्जों में यूं समझ लीजिए -
अच्छा भी आदमी हीं करता है ए "नजीर ",
और सब में जो बुरा है वो भी आदमी हीं है.
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