हूं तो मुगलानी, हिन्दुआनी बन के रहूंगी मैं.
अकबर की पत्नी जोधाबाई को सब जानते हैं. उन पर फिल्में मुगल-ए-आजम और जोधा अकबर बन चुकी हैं. इतिहास भी उनके प्रति उदार रहा है. अकबर को महिमामंडित करने के लिए जोधाबाई का सहारा लिया गया है. अकबर को धर्म निरपेक्ष साबित करने के लिए इतिहासकार यह बताते हुए नहीं थकते कि किस तरह से शाही महल में जोधाबाई कृष्ण जन्माष्टमी मनाती थीं ,लेकिन यह कोई नहीं बताता कि अकबर की हीं एक ऐसी पत्नी हुई हैं, जो मुसलमान होते हुए भी कृष्ण की दीवानी थीं . ताज बीबी मीरा की तरह कृष्ण की भक्ति में लीन हो अपना सुध बुध खो बैठती थीं. उन्होंने कृष्ण प्रेम में पगे कविताएँ, छन्द और धमार रचे, जो आज भी पुष्टिमार्गीय मन्दिरों में गाए जाते हैं.
काबा शरीफ की यात्रा पर निकली ताज बीबी ब्रज भूमि में विश्राम हेतु रूकी थीं . सुबह मन्दिर में बजते घंटे, घड़ियाल से उनकी नींद उचट गई. पूछने पर पता चला कि पास के कृष्ण मन्दिर में आरती हो रही है. ताज बीबी नहा धोकर मन्दिर में दर्शन के लिए पहुंच गईं .पुजारियों ने ताज बीबी को मुसलमान होने के कारण मन्दिर में प्रवेश नहीं करने दिया. वह मन्दिर की सीढीयों पर बैठ भजन करने लगीं. कहते हैं कि स्वयं भगवान् कृष्ण ने उन्हें सीढीयों पर आ कर दर्शन दिए,कारण भगवान् हिन्दू मुसलमान नहीं मानते .सच्ची श्रद्धा व लगन के सामने वे नतमस्तक हो जाते हैं.
जात पात पूछे नहीं कोई,
हरि के भजे सो हरि के होई.
बाद के दिनों में ताज बीबी गोस्वामी विट्ठल नाथ जी की शिष्या बन गई थीं. मरने के बाद उन्हें ब्रज भूमि के रमन रेती से लगभग 2 km दूरी पर समाधि दे दी गई. पुष्टि मार्गीय साधु सन्तों को मृत्यु के उपरान्त समाधि दी जाती है. आज ताज बीबी की समाधि वीरान पड़ी है. कृष्ण भक्त इस महिला को हिन्दू मुसलमान कोई भी अपना नहीं मानता. फिर उनकी समाधि पर साफ सफाई कौन करेगा? कौन दीपक जलाएगा?
ताज बीबी की एक कविता से पता चलता है कि उन्होंने किस कदर हिन्दू धर्म को अंगीकार कर लिया था -
देव पूजा ठानी मैं, नमाज हूं भूलानी ;
तज कलमा कुरान, सारे गुनन गहूंगी मैं.
नन्द के कुमार कुर्बान तेरी सूरत पर,
हूं तो मुगलानी, हिन्दूआनी बन रहूंगी मैं.
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