भैंस की चरवाही

 बचपन में हमने भैंस की चरवाही बहुत की है । हमारे घर में भैंस तो थी नहीं । इसलिए हमने अपने सहपाठियों की भैंस चराकर अपनी इस इच्छा की पूर्ति की है । भैंस की पीठ पर सवारी करने का अपना एक अलग सुख है । भैंस भी बिना चीं चापड़ किए हमें अपने पीठ पर बिठाए रखती है । दरअसल भैंस अपना शरीर हाथी की तरह हिला नहीं सकती , इसलिए उस पर सवारी करने वालों की मौज रहती है । बाबा रामदेव को हाथी की पीठ पर योगा न करके भैंस की पीठ पर करनी चाहिए थी ।

आज से दो तीन साल पहले यह खबर छपी थी कि नोएडा और ग्रेटर नोएडा के गाँवों में भैंस चराने वालों को तकरीबन 25, 000/-वेतन मिल रहा है । ये भैंस चराने वाले पूर्वी उत्तर प्रदेश व बिहार के गाँवों से आए लोग हैं । ये लोग पंजाब हरियाणा में फसल काटने आते हैं । उन्हीं में से कुछ लोग इस पेशे में आ गये।

एक एक चरवाहों के पास तकरीबन 50 भैंसें होती हैं । हर भैंस की 500/- के करीब चरवाही मिल जाती है । भैंस वालों को भी मौज हो रही है । उनकी एक भैंस से 15 से 20 हजार की इनकम होती है । उसमें से केवल 500/- दे भी दिया तो उनका क्या गया ? कुछ भी नहीं । 500/- तो "ऊंट के मुँह में जीरा " के समान लगता है । भैंस की चरवाही से बेफिक्र हो किसान अपनी खेती पर ध्यान देते हैं ।

कहने का मतलब कि भैंस की चरवाही घाटे का सौदा कत्थक भी नहीं है । यहाँ  "हींग लगे न फिटकिरी रंग बने चोखा" वाली कहावत चरितार्थ हो रही है । व्यापारियों को इस क्षेत्र में आगे आना चाहिए । उन्हें अविलम्ब भैंस चरवाही सर्विस सेंटर खोलना चाहिए । चरवाहों का पुलिस वेरिफिकेशन,  मेडिकल फिटनेस करवाना पड़ेगा । अपना ई मेल आई डी , फोन नम्बर आदि सोशल मीडिया पर रोड करना पड़ेगा । यदि एक चरवाहे से 50 रुपए भी मिलता है तो 100 चरवाहों से 50, 000 /- मिल जाएगा । यह काम बड़े पैमाने पर होगा तो लाखों रुपयों का इजाफा होगा ।

भैंस चराने से शादी भी होती है । शेख चिल्ली की शादी भी इसी काम  को करने के दौरान हुई थी । शेख चिल्ली को भैंस चराने से रोका गया था । कहा गया कि पहले शादी करो फिर भैंस की चरवाही करो । दरअसल दो युवक जो पहले से शादी शुदा थे उनको यह पसंद नहीं आया कि एक कुंआरा उनके साथ भैंस चरवाही करे ।

भैंस चरवाही महिवाल ने भी किया था । वही महिवाल जो एक व्यापारी था । उसका नाम इज्जत बेग था । इज्जत बेग सोहनी के प्यार में इतना पागल हुआ कि वह उसके यहाँ भैंस चराने लगा । पंजाब में भैंस को माहिया और भैंस  चराने वाले को महिवाल  कहते हैं । इज्जत बेग भी महिवाल कहलाया । 

कहते हैं कि इश्क और मुश्क छुपाए नहीं छुपता । सोहनी महिवाल के इश्क की खबर भी जमाने को लग गयी । महिवाल को नौकरी से निकाल दिया गया । महिवाल नदी के पार आ गया। सोहनी रोज घड़े की मदद से नदी पार कर महिवाल से मिलने आने लगी । दिन भर महिवाल के साथ रहती शाम को घर लौट जाती । 

एक दिन नदी पार करते समय घड़ा फूट गया । घड़ा कच्चा था । सोहनी डूब गयी । महिवाल इस किनारे सोहनी का इंतजार करता रह गया । बहुत देर बाद सोहनी आई , लेकिन लाश के रुप में । सोहनी के साथ महिवाल भी नदी में डूब मरा । दूसरे दिन मछुआरों के जाल में दोनों की लाश मिली । दोनों एक दूजे की बाहों में बंधे थे । महिवाल का भैंस चराना काम नहीं  आया था ।  


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