सो नर मोहे सपनेहू नहीं भावे.

स्कन्द का मतलब होता है -विनाश. कार्तिकेय का जन्म हुआ था तारकासुर के विनाश के लिए. इसलिए कार्तिकेय का एक नाम स्कन्द भी है. शिव व कार्तिकेय की स्तुति है -स्कन्द पुराण में. स्कन्द पुराण में 81 हजार श्लोक हैं. यह क्रम संख्या में 13 वां और आकार में सबसे बड़ा पुराण है. सत्यनारायण ब्रत कथा इसी पुराण से निकलकर आज जन जन में लोकप्रिय हो गया है. किसी भी मांगलिक कार्य में सत्यनारायण की कथा जरूर होती है.
बुद्ध को भगवान् विष्णु का अवतार माना गया है इस पुराण में. काशी के मणिकर्णिका घाट का भी इस पुराण में वर्णन है. हिमालय से कन्याकुमारी और गुजरात से कामाख्या तक के सारे तीर्थों का वर्णन स्कन्द पुराण में मिल जाएगा. जितने तीर्थस्थलों का वर्णन इस पुराण में है,उसमें से कुछ का नामोनिशान मिट गया है, कुछ खंडहर में तब्दील हो गये हैं, पर जो मौजूद हैं उनका बड़ा हीं सटीक वर्णन स्कन्द पुराण में किया गया है.
यूं तो स्कन्द पुराण शैव सम्प्रदाय वालों का है, पर इसमें विष्णु को भी शिव के बराबर दर्जा दिया गया है. विष्णु को शिव का हीं रूप बताया गया है -
यथा शिवस्तथा विष्णुर्यथा विष्णुस्तथा शिव : ।
अंतरं शिव विष्णुश्च मनागपि न विद्दते ॥
(अर्थात् जिस प्रकार शिव हैं, उसी प्रकार विष्णु हैं और जैसे विष्णु हैं वैसे हीं शिव हैं. इन दोनों में तनिक भी अंतर नहीं है. )
स्कन्द पुराण का तुलसी के रामचरित मानस पर बहुत गहरा प्रभाव है. स्कंद पुराण से हीं प्रभावित हो गोस्वामी तुलसीदास ने लिखा है-
शिव द्रोही मम दास कहावे,
सो नर मोहें सपनेहू नहीं भावे.
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