बाअदब बामुलाहिजा होशियार खेसारी दाल फिर आपकी थाली में आ रही है .....

खेसारी दाल को बंगाल ,उत्तर प्रदेश व बिहार में लतरी व खेसारी महराष्ट्र में लाख लखौड़ी और अंग्रेजी में ग्रास पी कहा जाता है. सन् 1907 में रींवा के महाराज ने इस दाल के उत्पादन पर अपने यहां रोक लगा दी थी. कारण, इसमें मौजूद टाक्सिक तत्व शरीर के नीचले हिस्से को बेकार कर देते हैं. केवल जानवरों के चारे के रूप में इसके इस्तेमाल करने की छूट थी. परन्तु जानवरों के ऊपर इसके कुप्रभाव को देखते हुए महाराज ने पूरी तरह से इस पर बैन लगा दिया था.
देश आजाद होने के बाद सन् 1961 में पश्चिम बंगाल को छोड़ सभी राज्यों ने खेसारी के उत्पादन में प्रतिबन्ध लगा दिया,परन्तु किसान चोरी छिपे इसका उत्पादन करते रहे. सन् 1970 में पूरे भारत में खेसारी के उत्पादन पर सख्ती से बैन लागू किया गया.खेसारी फसलों को खेत में हीं जलाया जाने लगा. खेसारी उत्पादन करने वाले किसानों के बैल जब्त किए जाने लगे.
जैसा कि ऊपर के पैरा में मैंने लिखा है कि खेसारी दाल खाने से शरीर का निचला हिस्सा बेकार हो जाता है. खुद मैंने अपने गांव के लोगों को खेसारी दाल खा कर लंगड़ बनते हुए देखा है. इसके सेवन से लैथरिज्म नामक डिसार्डर पैदा हो जाता है, जिससे पैर के निचले हिस्से में अपंगता आ जाती है. ऐसा खेसारी दाल में मौजूद डी -अमीनो प्रो पियोनिक एसिड की वजह से होता है. यह दाल बिल्कुल अरहर की तरह देखने में लगती है, इसलिए मुनाफाखोर इसे अरहर की दाल में मिलाकर बेचते थे.  अरहर की दाल की कीमत आज 200/- के पार है. जब खेसारी और अरहर मिलाकर मुनाफाखोर बेचेंगे तो उसकी कीमत 100 से 150/- तक हो जाएगी. ग्राहक सस्ती दाल लेगा और मुनाफाखोरों की मुफ्त  चांदी कटेगी .उसी तरह से चने के वेसन में खेसारी का वेसन भी मिलाकर बेचा जाता था.
खेसारी दाल की तीन नई किस्में आईं हैं - रतन, प्रतीक, महातियारा. Indian council for medical research का दावा है कि इन नई किस्मों में टाक्सिक तत्व बहुत कम हैं .इस वजह से खेसारी दाल के उत्पादन पर लगी रोक हटाने की तैयारी की जा रही है. चूंकि यह मामला आम जनता के सेहत से जुड़ा है.इसलिए Food safety and standard authority of India को सोच समझ के निर्णय लेना चाहिए. बिना डाक्टरों की सलाह के इसे आम जनता की थाली में लाने से पहले सौ बार सोचना चाहिए. यदि दस किलो खेसारी दाल में 6-8 ग्राम भी टाक्सिक तत्व पाए जाते हैं तो उसका असर बहुत समय में धीरे धीरे अवश्य पड़ेगा.
राम विलास पासवान का स्टेटमेण्ट आया है कि वे पंद्रह सालों से इस दाल को खाते आ रहे हैं, उन्हें तो कुछ नहीं हुआ. जब खेसारी पर पिछले पचास सालों से बैन है तो उन्हें यह दाल खाने को कहां से मिल गई? और कम्पोस्ट फूड खाने वाले कब से खेसारी दाल खाने लगे? मूल बात यह है कि सरकार दालों की उत्पादकता बढ़ाने और उनकी कीमतों पर अंकुश लगाने में नाकामयाब हुई है. इस असफलता को ढकने के लिए सरकार खेसारी पर से बैन हटाना चाहती है ताकि कीमतें कम होने पर वह अपनी पीठ थपथपाए और मुनाफाखोर एक बार फिर से बम्पर मुनाफा कमाएं.
ये कैसा ख्वाब आंखों को दिखा गया कोई.
दिल खोल कर रोया है और हंसा है कोई.
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