हमको दुश्मन की निगाह से न देखा कीजै.

मुहम्मद गोरी भारत को जीत कर जब वापस गया तो यहां से लगभग 5 लाख लोगों को गुलाम बनाकर अपने साथ ले गया था. गोरी की मौत के पश्चात् ये गुलाम आजाद कर दिए गए. आजाद होने के बाद ये लोग भारत न आ कर पश्चिम एशिया या मध्य पूर्व के रास्ते यूरोप की तरफ बढ़ गए . ये लोग बंजारे का जीवन जीते हुए रोमानिया, हंगरी, फ्रांस, जर्मनी, इटली,  बुल्गारिया और स्लोवाकिया में फैल गये . सबसे पहले ये लोग रोम पहुंचे, इसलिए इन्हें रोमा कहा गया. आज पूरे यूरोप में तकरीबन डेढ़ करोड़ रोमा जाति के लोग है. रोमा लोगों को सिंथी भी कहा जाता है. सिंथी सिंधी से बना है. सिन्धु नदी के किनारे से गये ये लोग सिंधी कहलाए. बाद में सिंधी का हीं अपभ्रंश हो सिंथी हो गया. ज्यादातर इन्हें रोमा हीं कहा जाता है. ,फ्रान्स में इन्हें 'मौनुष 'और स्पेन, पुर्तगाल में  'काले ' कहा जाता है.
रोमा जाति के लोग भारत से आए थे, इसका सत्यापन वैज्ञानिक विधि से भी हो चुका है. 2012 में यूरोप से प्रकाशित पत्रिका "current biology " में एक शोध में मान्फ्रेंड काइजर ने लिखा है कि रोमा लोग आज से 1500 साल पहले भारत में रहते थे. करीब 900 साल पहले 11वीं 12वीं सदी में यूरोप में फैलने लगे थे. इस शोध में डी एन ए ,भाषा, संस्कृति आदि फैक्टर शामिल किए गये थे. भारत से जाने के आज इतने सालों बाद भी इनकी भाषा में दांत, नाक, कान (कान्त) , दादा (पापू ), दादी (मामी)  ,राई  (राय साहब), मुंह (मुई ) , जीभ ( चीब) , दिल (जी ) आदि के लिए या तो वही शब्द हैं या उनसे मिलते जुलते शब्द हैं. इनकी रोमा भाषा में हिन्दी, संस्कृत के लगभग 800 शब्द हैं. भारत का "कत्थक " नृत्य रोमा लोगों के मार्फत् हीं स्पेन पहुंचा, जो आज "फ्लेमेंको "के नाम से वहां धूम मचा रहा है.
8 अप्रैल को हर साल रोमा दिवस मनाया जाता है. रोमा लोगों का अपना ध्वज है, जिसका ऊपर का हिस्सा नीला व नीचे का हिस्सा हरा होता है. बीच में अशोक चक्र, जो कि भारत से लिया गया है. रोमा लोग आज भी शादी अपने लोगों में हीं करते हैं. इस अनुवांशिक पवित्रता को बनाए रखने की वजह से यूरोप के लोग इनके साथ अछूतों जैसा व्यवहार करने लगे . फ्रान्स से कई बार इनको भगाया गया, जर्मनी में नाजियों ने रोमा लोगों पर यहूदियों की तरह हीं अत्याचार किया, इटली में भी कमोवेश यही हालत थे. सन् 1956 में जर्मनी के कोर्ट ने इनको अपराधिक प्रवृति का बताया, जो सन् 1963 तक वैध रहा. रोमा लोगों ने समानता के अधिकार के लिए लम्बी लड़ाई लड़ी है. सन्  1970 में रोमा लोगों ने समानता का अधिकार के लिए एक सम्मेलन किया था, जिसमें 25 देशों के रोमाओं ने भाग लिया था.
रोमा लोगों को पूरे योरोप में इतना बदनाम किया जा चुका है कि आज ये लोग अपमान व तिरस्कार से बचने के लिए अपनी वास्तविक पहचान बताने से बचते हैं. भारत व भारतीयों ने दक्षिण अफ्रीका को नस्लवाद से आजादी दिलाने में काफी मदद की थी, पर यह मदद रोमा लोगों को भारत से नहीं मिली. रोमा लोग यहूदियों, फिलीस्तिनीयों व कुर्दों की तरह एक अलग देश की मांग नहीं कर रहे हैं, बल्कि उनकी यह मांग है कि जो रोमा, जिस देश में है, उसे शांति से वहीं रहने दिया जाय.
अपने पूर्वजों की धरती भारत को हर रोमा याद  करता है, पर क्या भारत को उनकी याद आती है?  आज हम मारीशस ,फिजी, गुयाना में रह रहे भारतवंशियों पर गर्व करते हैं, पर रोमा लोगों पर हमारी भृकुटी बक्र क्यूं है?  क्यों रोमा लोगों का एक भी सम्मेलन उनके पूर्वजों की धरती भारत में नहीं की जाती?  जर्मनी के केन्द्रीय रोमा परिषद के पास रोमा लोगों से सम्बन्धित एक प्रदर्शनी है, जो यूरोप सहित कई दुसरे मुल्कों में दिखाया जा चुका है, सिवाय भारत के. रोमा लोगों के प्रति भारत की यह वेरूखी समझ से परे है.
हमको दुश्मन की निगाह से न देखा कीजै.
प्यार हीं प्यार हैं हम , हम पर भरोसा कीजै.
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