तनु परिहरि रघुवर बिरहैं राउ गयउ सुरधाम.

इच्छाकु वंश के 38 वें राजा अज हुए थे. उनके पिता रघु ने उन्हें राज पाट सौंप  सन्यास ग्रहण कर लिया था. राजा अज का विवाह इंदुमति से हुआ था, जो कि एक अप्सरा थी. किसी शाप के कारण उसका जन्म मनुष्य योनि में हुआ था. एक दिन राजा अज और रानी इन्दुमति उद्दान में जल क्रीड़ा कर रहे थे. तभी नारद भगवान आकाश मार्ग से गुजरे. नारद की बीड़ा से एक फूल टूट कर रानी इन्दुमति पर गिरा. रानी अविलम्ब शाप मुक्त हो गईं. वे पुनः अप्सरा बन स्वर्ग लोक चलीं गईं .
रानी की मुक्ति से महाराज अज को बहुत दुःख हुआ.सरयू व जाह्नवी के संगम पर जा कर उन्होंने अन्न जल त्याग दिया. कुछ हीं दिनों बाद उनका देहावसान हो गया. सरयू जाह्नवी का यह संगम स्थल कालांतर में तीर्थ स्थान बना . कालिदास ने रघुवंशम् में लिखा है -
तीर्थे तोयव्यतिकरभवे जाह्नुकन्यारव्वो,
देहत्यागादमाराणनालेखयमासद्द सद्दः ।
आज वही जगह चेरान नाम से प्रसिद्ध है.
राजा के गुजर जाने के बाद कुलगुरू वशिष्ठ ने राजा और रानी के एक मात्र पुत्र की परवरिश की जिम्मेदारी आचार्य मरूदनव को सौंपी. कामधेनु की पुत्री नन्दिनी का दूध पी बालक का दैहिक विकास होने लगा. कुछ बड़े होने पर आचार्य मरुदनव ने राजकुमार को अस्त्र शस्त्र की शिक्षा देनी शुरू कर दी. महामंत्री सुमंत्र राज काज का संचालन करते रहे.
जब राजकुमार का वय अठारह साल का हुआ तो उनका विधिवत् राज्याभिषेक किया गया. राजकुमार हर क्षेत्र में प्रवीण थे. वे कौशलपुर के परम् प्रतापी राजा हुए. वे रथ संचालन विद्दा मेे भी पारंगत थे .दसों दिशाओं में वे रथ संचालन कर लेते थे. इसलिए उनका नाम दशरथ रखा गया, जिन्होंने अपने जीवन काल में शनि देव का मान मर्दन किया था. शब्दभेदी वाण चलाने में उन्हें महारत हासिल थी .मृग के भ्रम में उन्होंने शब्दभेदी वाण चला श्रवण कुमार को मार दिया था .
राजा दशरथ की तीन रानियां थीं .कौशल्या , कैकेयी और सुमित्रा .पुत्रेष्ठि अनुष्ठान से इनके चार पुत्र हुए -राम ,भरत ,लक्ष्मण और शत्रुघ्न.वे राम का राज्याभिषेक करना चाहते थे, पर कैकेयी के दिए गये वचनों से बद्ध हो राम को चौदह साल का वनवास जाना पड़ा. राम ने रावण जैसे आतातायी का संहार किया .राम के वियोग में महाराज दशरथ की मृत्यु हो गई.
राम राम कहि राम कहि राम राम कहि राम ।
तनु परिहरि रघुवर बिरहैं राउ गयउ सुरधाम।।
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