कौड़ी के तीन, हुए थे कभी इदी अमीन.

यूगांडा के तानाशाह इदी अमीन ने कभी भी अपनी जीवनी लिखने की रूचि अपने जीवन काल में नहीं दिखाई. लिहाजा हमारे पास आज उनकी कोई प्रमाणिक जीवनी उपलब्ध नहीं है. उनके जन्मकाल के विषय में हीं अनेक अटकलें हैं. सन् 1920 से सन् 1928 तक कभी भी आप उनका जन्म हुआ मान सकते हैं. पिता ने बचपन में हीं मां बेटे का परित्याग कर दिया था. इसकी परवरिस नाना के घर हुई .इदी की मां एक पारम्परिक हकीम थी. हकीम के पेशे से जो कमाई होती थी, उससे मां बेटे के स्कूल का फीस हीं जुटा पाती थी. मां की हालत को देखते हुए इदी ने स्कूल की पढ़ाई छोड़ दी.
स्कूल छोड़ इदी अमीन ने कई छोटे मोटे काम किए, पर उसका मन कहीं नहीं रमा. थक हारकर वह सेना में भर्ती हो गया. सेना में पहुंच वह एक उम्दा किस्म का एथलीट , बाक्सिंग चैम्पियन और उत्तम कोटि का तैराक बन गया . सन् 1959 से सन् 1963 तक वह स्पोर्ट कोटे से वारंट अधिकारी, लेफ्टिनेंट, कैप्टन बनता हुआ मेजर रैंक तक जा पहुंचा. उस दौरान यूगांडा के प्रधान मंत्री मिल्टन ओबेटे के सुरक्षा में इदी अमीन तैनात था. धीरे धीरे वह ओबेटे का विश्वासपात्र बन गया. प्रधान मंत्री मिल्टन ओबेटे ने उसे प्रोन्नति देकर कर्नल रैंक तक पहुंचा दिया. इसी बीच ओबेटे पर हाथी दांत व सोने की तस्करी के आरोप लगे. यूगांडा की संसद ने जांच विठाई. जांच से बचने के लिए ओबेटे ने सन् 1966 में  पूर्व राष्ट्रपति को आर्मी की मदद से अपदस्थ कर स्वंय कार्यकारी राष्ट्रपति बन गए.
सन् 1971 में जब मिल्टन ओबेटे विदेशी दौरे पर थे, तब इदी अमीन ने उनका तख्ता पलट कर दिया. इदी अमीन ने अपना नाम अमीन दादा रख लिया. वे राष्ट्रपति के साथ साथ स्वंय भू आर्मी कमान्डर बन गए . रेडियो, टीवी पर इदी अमीन का अधिकार हो गया. इदी अमीन ने तख्ता पलट को सही बताया. उनका कहना था कि यह इसलिए आवश्यक हो गया था कि भ्रष्टाचार अपने चरम पर पहुंच गया था. साथ हीं उन्होंने जोर देकर कहा कि वे जल्द हीं देश में लोकतांत्रिक प्रणाली लागू करेंगे. कहते हैं कि एक बार जिसे सत्ता का नशा लग जाता है, वह कभी भी सत्ता छोड़ना नहीं चाहता. वही बात इदी अमीन पर भी लागू हुई.
इदी अमीन ने सन् 1971 से 1979 तक लगातार 8 साल तक सत्ता सुख भोगा. इस बीच उन्होंने ओबेटे के लगभग 5 लाख लोगों को मरवा दिया. आर्मी के खुद कमान्डर इन चीफ बन बैठे. बाद में अपने लिए फील्ड मार्शल का एक नया पद सृजित करवा लिया. एशियाई लोगों को यूगांडा छोड़ने के लिए मजबूर कर दिया. बहुत से भारतीय यूगांडा छोड़कर भारत आ गए. एशियाई लोगों की प्रापर्टी, व्यापार पर इदी अमीन के चहेतों का कब्जा हो गया. व्यापार की समझ न रखने की वजह से यूगांडाईयों ने देश की अर्थ व्यवस्था को ध्वस्त कर दिया. सामुहिक कत्लेआम होने की वजह से आर्मी में बगावत के सुर प्रखर होने लगे. इदी अमीन ने तंजानिया को जीतने का असफल प्रयास किया, जिससे रही सही अर्थ व्यवस्था भी चौपट हो गई . अब इदी का यूगांडा में रहना दूभर हो गया.
इदी अमीन पहले लीबिया और बाद में सउदी अरब में राजनीतिक शरण लेने के लिए मजबूर हुए.  छः बीवियों और 9 बच्चों के बाप इदी अमीन नरभक्षी भी थे. पलायन के बाद उनके फ्रीज से नर मुण्ड और नर मांस मिले थे.
इदी अमीन का अंत बड़ा दुःखद रहा.वे किडनी की बीमारी से तड़पते हुए, जुझते हुए मरे. यदि वे अत्याचारी तानाशाह न होते तो अपने देश व अपनों के बीच उनकी स्वाभाविक मौत होती, लेकिन -
जाके प्रभु दारूण दुःख दीन्हां,
ताके मति आगे हर लिन्हां.
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