हिच अहसासी नदरम ( मुझे कुछ भी महसूस नहीं हो रहा)
मोहम्मद रजा पहलवी के पलायन के बाद अयातुल्ला रोहिल्ला खुमैनी वापस ईरान आ गए थे. वे 16 साल तक इराक और फ्रान्स में निर्वासित जिन्दगी जी रहे थे. वे निर्वासित रहकर ईरान के शाह पहलवी के खिलाफ जनमत तैयार कर रहे थे. 1फरवरी सन् 1979 को फ्रान्स से अयातुल्ला खुमैनी का विमान उड़ा. उस विमान में 100 पत्रकार थे. पत्रकार इसलिए बिठा रखे थे कि ईरान के प्रधान मंत्री शाहपुर बख्तियार कहीं उस विमान पर हमला न कर दें. अंतराष्ट्रीय नियमों के तहत पत्रकारों को ले जा रहे विमान पर हमला नहीं किया जाता. विमान के उड़ते हीं अयातुल्ला खुमैनी ऊपरी हिस्से में चले गए . वहां वजू किया. नमाज पढ़ा. थोड़ी दही खाई. फर्श पर तोशक विछा सो गए .
विमान जब ईरान पहुंचने वाला था तो पत्रकारों ने खुमैनी से पूछा, " आप को वतन वापसी से कैसा महसूस हो रहा है. ?" दुभाषिए की मदद से उन्हें इसका मतलब बताया गया. खुमैनी ने कहा, " हिच अहसासी नदरम. " (मुझे कुछ भी महसूस नहीं हो रहा.) खुमैनी को यह पता नहीं था कि वे ईरान के सबसे बड़े धार्मिक नेता बनने जा रहे हैं.
ईरान के आकाश पर विमान तकरीबन 20 मिनट तक उड़ता रहा. सबकी सांसें थमी हुई थीं. आखिर विमान उतरा. तेहरान हवाई अड्डे पर 30 लाख लोगों की भीड़ अयातुल्ला रोहिल्ला खुमैनी के स्वागत के लिए तैयार खड़ी थी. उनकी गाड़ी एक एक इंच कर आगे बढ़ रही थी. पूरी सड़क भीड़ से अटी पड़ी थी. हारकर खुमैनी को हेलीकाप्टर से उनके निवास स्थान तक ले जाया गया.
छः महीने के अंदर अयातुल्ला खुमैनी ने अपने सारे विरोधियों को नेस्तनाबूद कर दिया. ईरान के प्रधान मंत्री शाहपुर बख्तियार ने इस्तीफा दे दिया .आर्मी खुमैनी के साथ हो गई थी.
अयातुल्ला खुमैनी के परदादा बाराबंकी के कंतूर गांव के थे. एक बार सन् 1790 में वे ईरान और इराक तीर्थ यात्रा पर गये और फिर वापस नहीं लौटे. वे वहीं ईरान के खुमैन गांव में बस गये. तब से यह परिवार खुमैनी कहलाने लगा. तत्कालीन भारत सरकार में विदेश मंत्री अटल बिहारी बाजपेयी को जब इस बात का इल्म हुआ तो उन्होंने तुरंत एक सद्भावना प्रतिनिधि मंडल ईरान भेजने की तैयारी कर ली. केंद्रीय मंत्री अशोक मेहता के नेतृत्व में कंतूर गांव के खुमैनी परिवार के रिश्तेदार और शिया धर्म गुरू आगा रुही अबाकी, ईरान में भारत के भूतपूर्व राजदूत बद्दरुद्दीन तैयब जी और अन्य ईरान मामले के जानकार अयातुल्ला खुमैनी से मिलने पहुंचे. भारत सरकार खुमैनी के इस भारत सम्बंध को भुनाना चाहती थी.
जैसे हीं यह शिष्टमंडल ईरान के धर्म गुरू खुमैनी के दरवाजे पर पहुंचा तो उसे दरवाजे पर हीं रोक दिया गया. केवल खुमैनी के रिश्तेदार आगा रुही अबाकी को अंदर आने दिया गया. अयातुल्ला खुमैनी ने जो अबाकी की क्लास लगाई कि उनकी आंखों में आंसू आ गये. खुमैनी को यह मुगालता था कि आगा रुही आबाकी ने हीं भारत सरकार को उकसाया था यह शिष्टमंडल भेजने के लिए. वे नहीं चाहते थे कि उनका भारत से जैविक सम्बन्ध जग जाहिर हो. खुमैनी चाहते थे कि ईरान वासी उन्हें ईरान का हीं समझें. भारत से जैविक सम्बन्धित सूचना लीक होने पर उनकी लोकप्रियता कम हो सकती थी. सद्भावना प्रतिनिधि मंडल बैरंग वापस आ गया. साथ गये पत्रकारों में से किसी ने आगारुही अबाकी से यह नहीं पूछा कि आपको कैसा महसूस हो रहा है. अगर यह पूछा होता तो क्या अबाकी यह कहने की स्थिति में थे ?
हिच अहसासी नदरम.
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