कोई हंगामा करो, ऐसे गुजर होगी नहीं.
महिषासुर एक असुर था. उसने ब्रह्मा की घोर तपस्या की. ब्रह्मा प्रकट हुए, " वत्स! वर मांगों. महिषासुर ने अमर होने का बरदान मांगा. ब्रह्मा असमंजस में पड़ गये- "वत्स! आज तक मर्त्य लोक का कोई मानव अमर नहीं हुआ. अमर होने का वरदान मैं नहीं दे सकता. तुम कोई अन्य वर मांग लो ." महिषासुर हाथ जोड़कर बोला, "भगवन् ! तो फिर यह वरदान दें कि मैं सुर, असुर व मानव किसी के भी हाथ न मरूं. यदि मौत अवश्यम्भावी है तो एक नारी के हाथों मेरी मौत हो ."ब्रह्मा ने तथास्तु कहा और अपने लोक को गमन कर गये.
महिषासुर ने पाताल लोक, मर्त्य लोक और इन्द्रलोक पर अपनी विजय पताका लहराई. उसने देवताओं के राजा इन्द्र को पदच्युत कर स्वंय इन्दरासन पर बैठ गया. इन्द्र ने विष्णु व महेश से सहायता की याचना की. विष्णु व महेश भी महिषासुर से युद्ध में हार गये, तब विष्णु ने आदिशक्ति की आराधना के लिए सभी देवताओं से कहा. सबके शरीर से एक सम्मिलित प्रकाश पुंज निकला, जिससे एक नारी शक्ति का निर्माण हुआ. इस नारी का नाम दुर्गा पड़ा.सभी देवताओं ने दुर्गा को अपने अपने अस्त्र-शस्त्र से सुसज्जित किया . देव हिमवान ने सवारी के लिए दुर्गा को सिंह प्रदान किया.
देवी दुर्गा के साथ महिषासुर की भीषण लड़ाई हुई. यह लड़ाई 9 दिनों तक चली. दसवें दिन महिषासुर मारा गया. अच्छाई की बुराई पर जीत हुई. यह दिन भारत में विजय दशमी के तौर पर हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है. दुर्गा की प्रतिमा की नौ दिन पूजा अर्चना करने के बाद दसवें दिन किसी पवित्र नदी में उसे विसर्जित कर दिया जाता है. लोग नौ दिनों तक उपवास रखते हैं.
आगे अपरंच समाचार है कि मृत महिषासुर संसद के पिछले सत्र में फिर जीवित हो गया था. केन्द्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री स्मृति ईरानी ने जब 2013 में जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में महिषासुर का शहादत दिवस मनाने का सवाल उठाया और महिषासुर पर लिखे पर्चे को पढ़ा तो सदन में हंगामा हो गया. विपक्षी पार्टियाँ एकजुट हो गयीं. उनका कहना था कि इस विवादित पर्चे को सदन पटल पर नहीं रखना चाहिए था. इससे मां दुर्गा का अपमान हुआ है. स्मृति ईरानी से इस्तीफा मांगा जाने लगा.
भारतीय जनता पार्टी के सांसद उदितराज महिषासुर को दलित मानते हैं. उनका कहना है कि महिषासुर दलितों का पुर्वज था. उदित राज ने जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में 2013 के महिषासुर पर हुए कार्यक्रम में भाग लिया था. वैसे भारतीय जनता पार्टी ने उदित राज के इस बयान से किनारा कर लिया है.
इतिहासकारों का दावा है कि महिषासुर के नाम पर बसा है - मैसूर शहर. मैसूर के चामुण्डेश्वरी पहाड़ी पर महिषासुर की मूर्ति भी लगी हुई है. सम्राट अशोक के समय के दस्तावेजों से पता चलता है कि महिषासुर एक बौद्ध राजा था, जिसमें सारे अच्छे गुण थे. देश भर की सभी आदिवासी जातियां महिषासुर को अपना हीरो मानती हैं .उनका कहना है कि महिषा एक औरत को मारना नहीं चाहता था .इसलिए उसकी हार हुई. देवताओं ने गलत तरीके से एक औरत को आगे कर महिषासुर के साथ धोका किया.
महिषासुर को मानने वाली ये जातियां अपने नाभि, कान, नाक, जीभ व जहां जहां दुर्गा ने महिषासुर पर त्रिशूल चलाया था वहाँ वहाँ प्रतीक के तौर पर तेल लगाते हैं. आदिवासी विजयादशमी के दिन महिषासुर का मातम मनाते हैं. असुर महिषासुर की पूजा और उसकी मौत का मातम झारखण्ड, बिहार, पश्चिम बंगाल व मध्य प्रदेश के आदिवासी करते हैं.
मातम के तौर पर ये आदिवासी विजयदशमी के दिन नये कपड़े नहीं पहनते हैं. उस दिन वे दिन भर अपने घरों से नहीं निकलते हैं. पश्चिम बंगाल के पुरूलिया जिले के आदिवासी बच्चे महिषासुर के शहादत दिवस को शेर की मूर्ति जरूर खरीदतें हैं. उस दिन ये बच्चे शेर का सिर धड़ से अलग कर देते हैं. क्यों न करें. शेर दुर्गा का सवारी जो ठहरा. उनका यह भी कहना है कि महिषासुर को भैंस व मानव के संयोग से उत्पन्न बताना भी एक साजिश है.यह उसके चरित्र हनन का एक घिनौना प्रयास है. जब कि आदिवासियों का कहना है कि वह रम्भासुर का पुत्र था, जिसका डील डौल उत्तम प्रकृति का था. इसलिए उसका नाम महिषासुर रखा गया.
एक मुद्दत हो गई महिषासुर और मां दुर्गे की लड़ाई को. पता नहीं क्या सच? क्या झूठ? फिर आज हम क्यों लड़ रहे हैं ? महिषासुर को कोई वौद्ध, कोई दलित तो कोई असुर बताता है ? सच क्या है? अब वह अतीत के गर्भ में जा छुपा है. फिर इतना हंगामा क्यों ? केवल अपने अपने राजनीतिक फायदे के लिए हरेक आदमी चिल्लाए जा रहा है. महान् शायर दुष्यन्त कुमार का कहना है -
पक गई हैं आदतें, बातों से खत्म होगी नहीं ;
कोई हंगामा करो, ऐसे गुजर होगी नहीं.
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