अपनी मिट्टी से उखड़े हुए लोग ....
आज भारतीय दुनियाँ के लगभग 48 देशों में प्रवास कर रहे हैं, जिनकी संख्या 2 करोड़ के पार है. 11 देशों में 5 लाख लोगों से ज्यादा प्रवासियों की औसत जनसंख्या वहां का प्रतिनिधित्व कर रही है. इनका इन देशों की राजनीतिक व आर्थिक दशा व दिशा निर्धारण में महत्वपूर्ण योगदान है. वे विभिन्न देशों में रहते हुए, अलग अलग भाषाओं का प्रयोग करते हुए ; वहां के क्रिया कलापों में अपनी महती भूमिका निभा रहे हैं. भारतीय मजदूर, डाक्टर, वकील, प्रबंधक और इंजीनियर आदि प्रवासी के रूप में विदेशों में अपनी छाप छोड़ रहे हैं. केवल अमेरिका में हीं 38% डाक्टर भारतीय मूल के हैं .नासा के 36% कर्मी व 12 % वैज्ञानिक भारत वंशीय हैं. कनाडा में इन प्रवासियों के कारण हीं पंजाबी यहाँ की दूसरी भाषा मानी गई है.
कहा जाता था कि ब्रिटिश राज का सूरज कभी नहीं डूबता, आज हम यह कहने में फख्र महसूस कर रहे हैं कि भारत वंशियों का सूरज कभी नहीं डूबता . दुनियाँ इनके दिमाग का लोहा मान रही है. कई देशों में इनकी प्रति व्यक्ति आय वहाँ के मूल निवासियों से अच्छी है. दुनियां पर अपनी चौधराहट स्थापित करने की ललक लिए हुए अमेरिका आज भारतीय प्रवासियों के योगदान को अहम मानता है.
9 जनवरी सन् 1915 को गांधी जी दक्षिण अफ्रीका में अपने सत्य, अहिंसा का डंका बजाकर भारत लौटे थे. इसलिए सन् 2003 में दिनांक 9 जनवरी को हीं प्रवासी दिवस के रूप में मनाने के लिए नियत किया गया.आज भारत से गये प्रवासी हर देश में होली, दिवाली और ईद मना रहे हैं. वे हर पल भारत को याद करते हैं.
जो लोग भारत से पाकिस्तान चले गये हैं, वे आज वहां मुहाजिर के नाम से जाने जाते हैं .उन्हें दोयम दर्जे की नागरिकता मिली है. मशहूर गजलकार मुनव्वर राणा ने अपने गजल संग्रह "मुहाजिरनामा " में इनके दर्द को इन शब्दों में बयां किया है -
यकीं आता नहीं , लगता है कच्ची नींद में शायद,
हम अपना घर गली, अपना मोहल्ला छोड़ आए हैं.
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