तुम्हारी दुनियां से जा रहे हैं, उठो हमारा सलाम ले लो.

आज विश्व में मौत के कारणों में से दसवां कारण है -आत्म हत्या. हर साल एक से दो करोड़ लोग आत्म हत्या हेतु प्रयास करते हैं, जिसमें मात्र दस लाख हीं सफल हो पाते हैं. इतना सहज नहीं होता आत्म हत्या करना. मानसिक स्तर पर बहुत संघर्ष करना पड़ता है . खुद को कितने ख्यालों ,शंकाओं और आशंकाओं से रूबरू करना पड़ता है. जेहन में मां, बेटी, भाई, बहन, पत्नी, पिता का ख्याल आता है. मौत से तो कोढ़ी भी डरता है. गालिब भी कह गये हैं -
मौत का एक दिन मुअइन हैं,
नींद रात भर नहीं आती.
क्यों एक आदमी लटक कर, आग की लपटों में घिरकर या किसी अन्य तरीके से अपनी इहलीला समाप्त कर देता है ? जो पीड़ा होती है, वह तो वही आदमी भोगता है. उस पीड़ा का अनुभव उसी आदमी तक हीं सीमित रहता है. हां,मरने के बाद दर्द का दरिया वह अपने परिजनों के लिए छोड़ जाता है, जिसमें वे उम्र भर डूबते उतराते हैं.
आत्म हत्या तनाव पूर्ण जीवन, घरेलू समस्याएं, मानसिक रोग आदि अनेक वजहों से किया जाता है. जिन लोगों में आत्म हत्या के बारे में सोचने(Suicidal fantasy)  की आदत होती है, वही ज्यादा आत्म हत्या करते हैं. एक शोध के अनुसार जिन लोगों में आत्म हत्या की प्रवृत्ति पाई जाती है, उनके खून में नमक का स्तर सामान्य से अधिक हो जाता है. यदि समय से इसकी पहचान हो जाती है तो आसन्न आत्महत्या के संकट से बचा जा सकता है. युवावस्था संक्रमण काल माना जाता है. युवाओं को नौकरी, रिश्ते, भविष्य, प्यार आदि के सोच में डिप्रेशन, एग्जाइटी, साइकोसिस, पर्सानालिटी डिसार्डर आदि मानसिक रोग पकड़ लेते हैं.क्या होता है नतीजा ?-आत्महत्या !!
भारत सहित अनेक देशों में आत्म हत्या को अपराध की श्रेणी में रखा गया है. प्राचीन भारत में भी आत्म हत्या को पाप माना जाता था.हिन्दू धर्म में तीन तरह की योनि  निर्धारित की गयी है. मनुष्य योनि, पशु योनि और तिर्यक योनि. तिर्यक योनि कीड़े मकोड़े की होती है. ऐसा माना जाता है कि तिर्यक योनि के बाद मनुष्य योनि में जन्म होता है.
महाभारत में एक दृष्टांत आता है. एक बार महर्षि वेदव्यास ने देखा कि एक कीड़ा अपने को रथ के पहिए के नीचे आने से बचाने के लिए भरपूर प्रयास कर रहा है. महर्षि को हंसी आ गई. उन्होंने कीड़े से पूछा कि जब तुम्हें पता है कि मरने के बाद तुम्हारी योनि मनुष्य की हो जाएगी, फिर भी तुम मौत से डर रहे हो?  कीड़े ने जवाब दिया कि मुझे मौत का डर नहीं है ,डर है कि कहीं मेरी मौत आत्महत्या की श्रेणी में न आ जाय .इसलिए मैं आत्महत्या से बचने के लिए प्रयास कर रहा हूं आत्महत्या एक पाप है . एक बार यह सिद्ध हो जाता है कि मैंने यह पाप किया है तो दुबारा मुझे तिर्यक योनि में आना पड़ेगा .
आधुनिक काल में भारत में आत्म हत्या करने वाले को छः माह की सजा का प्राविधान है .विश्व के अनेक देशों में आज आत्महत्या को अपराध की श्रेणी से हटाने पर विचार किया जा रहा है ,कारण आत्महत्या करने वाले व्यक्ति की मानसिक स्थिति ठीक नहीं रहती और वह इसे जानबूझकर नहीं करता .
आत्महत्या के लिए उकसाना या मजबूर करना भी एक दण्डनीय अपराध है. लेकिन इतिहास प्रसिद्ध अनारकली को आत्महत्या के लिए मजबूर करने पर भी अकबर का बालबांका नहीं हुआ. ठीक हीं कहा गया है - समरथ को कछु न दोष गुसाईं. अनारकली सलीम को छोड़कर चली गई.
खुदा निगाहबान हो तुम्हारा,
धड़कते दिल का पयाम ले लो.
तुम्हारी दुनियां से जा रहे हैं,
उठो हमारा सलाम ले लो.
No photo description available.

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

आजानुबाहु

औरत मार्च

बेचारे पेट का सवाल है