चैरो बंश की कहानी , किम्बदन्तियों की जुबानी .

No photo description available. अभी मैं जब गांव गया था तो चैरो बंश के अवशेष देखने गया था . यह अवशेष पेड़ों के झुरमुटों के बीच स्तिथ है . कई लोगों से पूछने पर जो कहानी सामने आई वह इस प्रकार है :-
         बिहार केे बिहियाँ इलाके के राजा की युद्ध में मृत्यु हो गई  थी. रानी अपनी एक नौकरानी के साथ भाग कर गंगा नदी के पार हल्दी कसबे के बलिया जिला( उत्तर प्रदेश )में आ गयीं . कारण, इस पार भी उनका राज्य था . गंगा किनारे रानी अपनी नौकरानी के साथ बैठी रो रहीं थीं . उधर से सन्यासी चक्रपाणि ओझा गुजरे . सन्यासी ने रानी को अपने आश्रम में रखा . रानी गर्भवती थीं . यह खबर जंगल में आग की तरह फ़ैल गयी . राजा का उत्तराधिकार शेष है -जान कर प्रजा खुश हुई . यह बात चैरों बंश के राजा के पास भी पहुँची . रानी अत्यंत  हीं रूपवती थीं . राजा ने रानी के पास खबर भिजवाई कि वह उसकी पत्नी होना स्वीकार करें अन्यथा अंजाम भुगतने के लिए तैयार रहें . रानी ने चक्र पाणि ओझा व उनके भाई शूलपाणि ओझा से ब्यापक  बिचार विमर्श किया . राजा चैरो को खबर भिजवाई गयी की रानी तैयार हैं , आप बारात लेकर जल्दी आ जाओ . बारात धूम धाम से पहुँची . बारात का स्वागत किया गया , लेकिन खाने में नशा मिलाया गया था .सारे बाराती बेसुध . रानी की सेना ने सारे चैरो बंश का अंत कर दिया .
                      चैरों बंश के अंत के बाद रानी को पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई . यही राज कुमार बड़े होकर हल्दी राज्य के राज कुमार बने . उन्होंने शूलपाणि ओझा को अपना मन्त्री बनाया . तब से दे श आजाद होने तक हल्दी के राजाओं ने ओझा पंडितों को काफी मान सम्मान दिया . हल्दी कस्बे मे आज भी यह कहावत प्रचलित है .:-"पहले ओझा , फिर राजा " .
            और चैरों वंश का आज नामोनिशान भी नहीं है . नीचे के चित्र में चैरों वंश का अवशेष पेड़ों के झुरमुटों के बीच पड़ा हुआ है  . पुरातत्ववेत्ता आते हैं . नमूने लेते हैं . फ़ोटो खिंचते हैं , चले जाते हैं . चैरों वंश की लम्पटता की कहानी यहीं रह जाती है . रात को कोई यहां नहीं ठहरता . सुना है किसी वकील के पास चैरों वंश की पूरी 40 एकड़ जमीन है , लेकिन चैरों निवास के इलाके को उसने भी छेड़ा नहीं है .
            इतिहास गवाह है कि जिस शासक ने लम्पटता दिखाई है ,उसका अंत हुआ है .
           "बुरे काम का बुरा नतीजा "
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