भूत प्रेत, टोना टोटका का राज आज भी कायम.
उत्तर प्रदेश का एक जिला सोनभद्र, जिसे ऊर्जा नगरी का दर्जा प्राप्त है, का मारकुन्डी गांव एक आदिवासी बहुल गांव है. यह क्षेत्र मलेरिया ग्रसित है. यहां मलेरिया से अक्सर मौतें होती रहती हैं. मूलभूत स्वास्थ्य सेवाओं के अभाव एंव अशिक्षा के कारण लोग आज भी भूत प्रेत और टोने टोटके के चक्कर में पड़े रहते हैं. इसी गांव में बसती है नन्दा. पेशे से उसका पति दरजी है, पर जाति का लुहार है. नन्दा अपना एक बेटा खो चुकी है.
नन्दा का बेटा स्कूल से अभी आया हीं था कि गांव के बाबू साहेब का सन्देशा आया कि यूकिलिप्टिस का पेड़ काटना है. बेटे ने खाना भी नहीं खाया था कि उसे पेड़ काटने के लिए जाना पड़ा .पेड़ कट कर हाई टेन्सन वायर पर गिरा. बेटे की मौत हो गई. नन्दा पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा. अब पूरे गाँव में मुहां मुहीं बात फैल गई कि नन्दा ने गांव के लोगों से बदला लेने के लिए अपने बेटे को भूत बना दिया है.
अब गांव में जब भी कोई बीमार पड़ता है तो लोग नन्दा के पति को प्रताड़ित करते हैं .वे कहते हैं कि वह अपनी पत्नी को इस बात के लिए राजी कराए कि वह अपने बेटे के भूत को उतार ले. नन्दा क्या करे? क्या न करे? कुछ नहीं सूझता उसे . पति बेचारा भी चुप रहता है. ,,हद तब हो गई जब भीखन जायसवाल के मृत्यु होने पर उसका लड़का शक्ति आकर नन्दा को बाल से पकड़ लिया और अपने पिता की मौत का हिसाब मांगने लगा. लोहार बस्ती के लोगों ने किसी तरह नन्दा को छुड़ाया.
आज नन्दा अपने पति, विधवा बहू व एक विकलांग बेटेे के साथ गांव में हीं निर्वासित जिन्दगी जी रही है. उसके नाम के साथ डायन का विशेषण जुड़ गया है.
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें