कोदों सावां जुरतो भरि पेट ..
मोटा अनाज भारत से कब का चला गया होता यदि पशु पक्षियों के चारे के रूप में इसका इस्तेमाल शेष नहीं रह जाता. जब गेहूं धान का स्वाद जुबां पर चढ़ा हो तो कोई मोटा अनाज क्यों खाने लगा? मोटा अनाज का हमारी थाली से पलायन की एक वजह सरकार का गेहूं और चावल सस्ते दर पे मुहैय्या कराना भी है. जिस दर पर मोटा अनाज मिलता है,उसी दर पर आपको जब चावल व गेहूं मिलने लगे तो जाहिर सी बात है कि आप गेहूं /चावल हीं खाएंगे .
दूसरी बात यह है कि मोटे अनाजों के सरकारी खरीद, भंडारण व वितरण की कोई व्यवस्था नहीं है, इसलिए किसान बेहद मजबूरी में अनिच्छा से इन्हें बोते हैं. किसान नेता व संगठन धान, गेहूं, गन्ना के समर्थन मूल्य बढ़ाने के लिए आंदोलन तो करते हैं,पर वे भूलकर भी मोटे अनाज के लिए कुछ नहीं कहते.किसान तो वही बोयेगा, जो विकेगा. वेशक कृषि पंडित और पोषण विशेषज्ञ मोटे अनाज का समर्थन करते रहें.
मोटे अनाजों की विशेषता है कि ये कम पानी में भी अच्छी पैदावार देते हैं. इनके साथ सबसे अच्छी बात यह होती है कि इनके पैदावार के लिए कीटनाशकों की जरूरत नहीं होती. ये कीटनाशक दवाएं आदमी की सेहत पर हमेशा प्रतिकूल प्रभाव डालती हैं. मोटे अनाज प्रोटीन से भरपूर तो होते हीं हैं -साथ हीं इनमें रेशे भी होते हैं, जो अपरिमित पानी सोखने की क्षमता रखते हैं. इन रेशों की वजह से आंतों की सफाई हो जाती है.सांवा, कोदो, मड़ुआ, बाजरा, मक्का आदि में खनिज तत्व भरपूर होते हैं, जिससे कुपोषण की समस्या नहीं होती.
बाजरे में आयरन की मात्रा अधिक होती है तो मक्की में प्रोटीन . इसलिए इन मोटे अनाजों को रोज अदल बदल कर खाया जाय तो किसी भी तत्व की कमी शरीर को कभी नहीं होगी. आज नूडल्स से कारोबारी बाजार अटा पड़ा है, जब कि कभी यह केवल चाइनीज फूड हीं होता था. नूडल्स मैदे का बना होता है, जो आंतों में चिपक जाता है, जिससे आंतों में घाव की सम्भावना होती है. यदि यही नूडल्स मोटे अनाजों का बनाया जाने लगे तो किसी तरह की बीमारी की आशंका नहीं रहेगी और मोटे अनाजों की खपत भी बढ़ेगी.
मात्र गेहूं /धान की फसल हीं बोने से मिट्टी की उर्वरक क्षमता कम हो जाती है. इन फसलों के लिए पानी की अधिक जरूरत होती है.अधिक पानी के लिए मानसून पर निर्भर नहीं रहा जा सकता. पानी के लिए ज्यादा से ज्यादा ट्यूब वेल की आवश्यकता होगी. ज्यादा ट्यूब वेल से जल का स्तर नीचे जाएगा. इसलिए कभी गेहूं /धान तो कभी मोटा अनाज बोने का चक्र शुरू करना चाहिए. फसल की यह विविधता कृषि क्षेत्र में क्रान्ति ला देगी. अभी गेहूं /धान लगातार बोने की वजह से कृषि ठहर गई है. कृषि की इस हालत की वजह से किसान कर्ज में डूब गया है. आए दिन किसान मर रहे हैं, आत्महत्या को मजबूर हो रहे हैं.
एक खुश करने वाली खबर यह है कि विगत कुछ सालों में मोटा अनाज का कारोबार बढ़ा है. अनियमित जीवन शैली से जुड़ी बीमारियां जैसे जैसे बढ़ रही हैं, वैसे वैसे मल्टी ग्रेन, लो कोलोस्ट्राल, आर्गेनिक फूड की मांग बढ़ती जा रही है. यह बढ़ता हुआ कारोबार सांवा, कोदो, मड़ुआ, टांगुन आदि मोटे अनाजों के लिए बड़ी उम्मीद ले कर आया है. गेहूं व धान की नई किस्में इन मोटे अनाजों के जीन से तैयार की जा रही हैं. गेहूं /चावल को जेनेटकली माडिफाइड करने की यह तरकीब यदि सफल हो जाती है तो स्वाद के साथ साथ पोषण भी आपको मिलेगा.
फूड सेक्यूरिटी बिल में भी नये प्रगतिशील उपाय किए गये हैं. इनमें सबसे अहम है मोटे अनाजों का वितरण. इससे मोटे अनाजों की पैदावार में बढ़ोत्तरी होगी. मोटे अनाज यदि आपको अपनी आवश्यक्तानुसार मिल जाए तो आपको घी, दूध व दही की भी जरूरत नहीं होगी. इस बात को बहुत पहले नरोत्तम कवि ने जान लिया था, तभी तो उन्होंने यह बात सुदामा की पत्नी से कहलवाया है-
कोदों सांवा जो जुरतो भर पेट,
न चाहत हौं दधि, दूध, मिठौती.
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