नसीब हुआ न वतन की मिट्टी.

बहादुर शाह जफर सन् 1837 से 1857 तक दिल्ली प्रदेश पर शासन किए थे. 1857 के गदर में अंग्रेजों ने उन्हें कैद कर लिया .उन पर राज द्रोह का मुकदमा चला. दोषी पाए जाने पर उन्हें 1858 में रंगून जेल भेजा गया. वे अपने साथ इस देश की मिट्टी भी ले गये थे. बहादुर शाह जफर के साथ पत्नी जीनत महल, पुत्र जवां बख्त और एक सेवादार भेजे गये थे.
रंगून में बहादुर शाह जफर के साथ बहुत बुरा वर्ताव होता था. उनकी नुमाइश की जाती थी. पर्यटक जेल में उन्हें देखने आते. जफर को खड़े होकर दर्शकों को कोर्निश करनी पड़ती .दर्शक उनके साथ बेरहमी से छेड़ छाड़ करते .उनकी दाढ़ी तक खींचते. अपमान सहते सहते सन् 1862 में उनकी मृत्यु हो गई.
बहादुर शाह जफर की दो पीढ़ियां रंगून में रहीं .वंशानुक्रम इस प्रकार रहा -
               बहादुरशाह जफर
                           ।
                      जवां बख्त
                            ।
                      जमशेद बख्त
                             ।
               मिर्जा मोहम्मद बेदार बख्त.
देश आजाद होने पर मिर्जा मोहम्मद बेदार बख्त कलकत्ता में आकर बस गये. शादी की. बच्चे हुए. 1980 में उनका इंतकाल हो गया. आज उनकी विधवा सुल्ताना बेगम अपने बच्चों के साथ शिवपुर हावड़ा (कलकत्ता) में रह रहीं हैं. सुल्ताना बेगम की मांग है कि बहादुर शाह जफर की कब्र रंगून से मंगवाई जाय और उसे जफर महल में दफनाया जाय.
अपने जीवन काल में हीं बहादुर शाह जफर लिख कर गये थे -
इतना बदनसीब है जफर,
दफ्न के लिए.
दो गज जमीं न मिली,
कू-ए-यार में.
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