अफगानिस्तान -हिन्दू से मुस्लिम राष्ट्र बनने तक का सफर.
अफगानिस्तान में पहले आर्यों के कबीले थे. ये लोग वैदिक सभ्यता के अंतर्गत नियम व कानून के पाबंद थे. इनके राजा को धर्मपति कहा जाता था. इतिहास में विशेष तौर पर कल्लार, सामंतदेव, भीम, अष्टपाल, जयपाल और आनंदपाल आदि राजाओं का उल्लेख हुआ है. लगभग 350 साल तक इन राजाओं ने अरब आक्रांताओं को रोके रखा.किसी भी आक्रांता के लिए सिंधु नदी पार करना सम्भव नहीं हो सका.
हस्तिनापुर के राजा संवरण पर जब सुदास ने आक्रमण किया तो संवरण के सहायता के लिए अफगानी पस्थ क्षत्रिय आगे आए थे. यही पस्थ लोग कालांतर में पठान कहलाए । महाभारत काल में गांधार(आज का कांधार ) नरेश सुबल का जिक्र आता है, जिन्होंने मजबूर होकर अपनी पुत्री गांधारी का परिणय हस्तिनापुर के अंधे धृतराष्ट्र से किया था . सुबल खून खराबा नहीं चाहते थे, जब कि भीष्म पितामह अपने भतीजे धृतराष्ट्र की शादी के लिए किसी भी स्तर पर जा सकते थे. वैसे गांधारी की शादी पुरुषपुर(आज का पेशावर) के सुदर्शन राजकुमार से तय हुई थी. गांधारी ने पिता की इच्छा का सम्मान करते हुए धृतराष्ट्र को वरण किया. हांलाकि वह पुरुषपुर के राजकुमार को पसंद करती थी. महाभारत कालीन एक वायुयान का अवशेष भी यहां मिला है.
हिंदू धर्म के साथ साथ यहां वौद्ध धर्म भी अस्तित्व में आ गया था. वौद्ध धर्म की शुरूआत के दौर में उसकी महायान की शाखा का आरम्भ अफगानिस्तान से हीं हुआ था.अफगान का महाराज कनिष्क वौद्ध मतावलम्बी था. बावजूद इसके वौद्ध और हिन्दू मतावलम्बी आपस में मिल जुल कर रहे. हिन्दू धर्म ने महात्मा बुद्ध को अपना अवतार मान लिया था. महात्मा बुद्ध तकरीबन छः माह तक अफगानिस्तान की धरती पर विचरण किए थे.
यदि आप अफगानिस्तान को भूल गये तो भारत का इतिहास अधूरा रह जाएगा. कुछ सालों पहले तक यहां की हवाई कम्पनी का नाम "आर्याना" था. यहां के सबसे बड़ी होटलों की श्रृंखला को भी आर्याना हीं कहा जाता था. आज भी यहां के गांवों में आपको कनिष्क, वेद और आर्याना नाम के लोग मिल जाएंगे. अफगानिस्तान का नाम पहले आर्याना या आर्यानुम्र वीजू था. प्रसिद्ध व्याकरणाचार्य पाणिनी और गुरू गोरख प्रसाद की कर्म भूमि यहीं थी .
सन् 1019 में महमूद गजनवी के साथ हुई लड़ाई में त्रिलोचन पाल का हार जाना अफगान हिन्दू इतिहास का टर्निंग प्वाइंट बना. इतिहास पल्टी खा गया. वैदिक अफगानिस्तान अरब आक्रान्ताओं द्वारा मुस्लिम देश में तब्दील कर दिया गया.
आज के दौर में तालिबान आक्रांता शान्ति का मार्ग छोड़ क्रांति के मार्ग पर चल पड़े हैं. यहां की प्राचीन संस्कृति और प्राचीन धर्म के चिन्ह मिटा दिए गये हैं. महात्मा बुद्ध की बड़ी बड़ी मूर्तियां बारुद से उड़ा दी गयीं हैं .पूरा अफगानिस्तान तहस नहस कर दिया गया है.
तालिबान कुछ भी कर लें. पुराने चिन्हों को मटिया मेट कर दें, पर उस डी एन ए का क्या करेंगे जो आज भी उन्हें वैदिक आर्य हीं बता रहा है. आर्यना तो उनके खून में बसा है, उसे कैसे निकालेंगे.
जख्म होते हीं नहीं दिल से अलग ऐ"सीमाब ",
हो न हो इनमें कोई खून का रिश्ता होगा.
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