एक पाकिस्तानी का बलिदान.
पाकिस्तान की सरजमीं पर पैदा हुए सरदार सूरन सिंह ने अपने राजनीतिक कैरियर की शुरूआत इस्लाम पार्टी से की थी. उसके बाद वे सन् 2011 में इमरान खान की पार्टी तहरीक -ए-इंसाफ से जुड़ गये. वे पाकिस्तान गुरूद्वारा प्रबंधक कमेटी के दो बार अध्यक्ष चुने गये थे. उन्होंने पाकिस्तान में रहने वाले सिखों,हिन्दुओं, ईसाईयों के अधिकारों के लिए बहुत कुछ किया. पाकिस्तान के बहुसंख्यक समुदाय मुस्लिम भी उन्हें बहुत प्यार करते थे.
सरदार सूरन सिंह की पत्नी भारत में आकर रहना चाहती थीं, लेकिन सूरन सिंह पाकिस्तान में हीं रहकर अल्पसंख्यकों की आवाज बनना चाहते थे. पत्नी से उनका तालाक हो गया. पत्नी दोनों बच्चों के साथ भारत आ गई. पत्नी के भारत आने के बाद 2016 के अप्रैल माह में उनकी हत्या कर दी गई. सरदार सूरन सिंह की मौत ने पाकिस्तान की आबो हवा हीं बदल दी है. इस्लामिक विद्वानों ने अल्पसंख्यकों की आवाज बने सरदार सूरन सिंह को देश का शीर्ष नागरिक सम्मान "तमगा -ए- इम्तियाज "देने की मांग की है.
सरदार सूरन सिंह अल्प संख्यकों के लिए उम्मीद की किरन थे. वे इस क्षेत्र में काम करने वाले सबसे बड़े नेता थे. उनकी हत्या की निंदा बड़े पैमाने पर हो रही है. अब उनकी हत्या की जिम्मेदारी एक चरम पंथी संगठन ने ली है. सरदार सूरन सिंह को शत शत नमन !
जिन्हें चाह थी सीढ़ीयों की ,
वे छत पर पहुंच गये.
हमारी ख्वाहिश थी उड़ने की ,
हम आसमां पर आ गये.

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