बच के रहना रे बाबा ! बच के रहना रे !
एक घास , जिसके पत्ते गाजर की तरह होते हैं. इसलिए इसे गाजर घास कहते हैं. इसका वाटनिकल नाम परिथिनियम है. इसे पानी की जरूरत नहीं होती. यही रेतीली इलाकों में भी बड़ी आसानी से उगता है. जब भयंकर सूखा होता है तब भी यह घास हरी भरी रहती है. सन् 1984 में एक शोध से पता चला कि गाजर घास से मिट्टी की उर्वरता कम होती है और 4% इससे फसल में कमी होती देखी गई. मनुष्यों में इससे त्वचा का संक्रमण, सांस की बीमारियां परिलक्षित हुई हैं. पशु इस घास को नहीं खाते . कई बार पशु दुसरी घासों के साथ इसे भ्रम में खा जाते हैं तो उन्हें पतले दस्त शुरू हो जाते हैं. यदि पशु इसे ज्यादा मात्रा में खा ले तो उसकी मौत भी हो सकती है. दुधारू पशु अगर इसे खा लें तो उनका दूध कड़वा हो जाता है.
मौत तो वैज्ञानिक डा. एहसास दोहरे की भी हो गयी थी. वे गुलाब की खेती पर शोध कर रहे थे. जिन गुलाबों का वे अध्ययन कर रहे थे, वे गाजर घास के मध्य स्थित थे. ज्यादा दिनों तक गाजर घास के सम्पर्क में रहने के कारण उन्हें अस्थमा हुआ, जिससे उनकी मौत हो गई. गाजर घास से हुए त्वचा संक्रमण (दाद, खाज, खुजली,एलर्जी और एक्जीमा) और सांस के रोग यथा - दमा, फेफड़ों में सूजन, तपेदिक आदि दवाओं से नियंत्रित किए जा सकते हैं ;पर इन रोगों को जड़ से मिटाना मुश्किल है. गाजर घास के फूल के पराग हवा से उड़कर सांस द्वारा फेफड़ों में घर बना लेते हैं, जहां से उनको निकालना नितान्त मुश्किल है. उसी प्रकार त्वचा से इन फूलों का पराग गहरे तक चिपक जाते हैं. खुजाने से ये और अन्दर पहुंच जाते हैं. समय पर ध्यान न देने पर त्वचा का कैंसर भी हो सकता है. आज एम्स में हर 450 त्वचा संक्रमित रोगियों में से 250 रोगी गाजर घास के संक्रमण के होते हैं.
भारत में गाजर घास के आगमन की शुरूआत अमेरिका से आयातित गेहूं की किस्म पी एल -480 से हुआ. चटक चांदनी नाम से मशहूर इस गाजर घास की पूरे विश्व में तकरीबन बीस प्रजातियां पाईं जाती हैं. यह अमेरिका, आस्ट्रेलिया, मैक्सिको, वेस्ट इंडीज, भारत, नेपाल, चीन और वियतनाम में पाया जाता है. इस घास का जीवन चक्र 3-4 माह का होता है. उसके बाद दूसरे पौधे उग आते हैं, जो अपना जीवन चक्र पूरा करते हैं. इस तरह से यह घास बारहो मास बनी रहती है. गाजर घास के एक पौधे से 1000-5000 तक पुष्प पराग निकलते हैं, जो सांस के माध्यम से फेफडों में पहुंच जाते हैं. इनके बीज भी हवा के माध्यम से एक जगह से दूसरी जगह जा कर अपनी वंश वृद्धि करते हैं.
गाजर घास को खत्म करने के लिए सबसे सही तरीका यह है कि इन पर फूल आने से पहले हीं इन्हें उखाड़ फेंका जाए ताकि उनसे आगे की वंश वृद्धि न हो. इन्हें उखाड़ने से पहले इन पर कीटनाशकों का छिड़काव कर लेना चाहिए. नाक को साफ कपड़े से ढक कर और हाथों में दास्ताने पहनकर हीं इन्हें समूल उखाड़ना चाहिए. इनकी वंश वृद्धि रक्तवीज की तरह फैलती है. खर पतवार विज्ञान अनुसंधान निदेशालय, जबलपुर के वैज्ञानिकों ने एक ऐसे कीट की खोज की है, जो केवल और केवल गाजर घास हीं खाता है. यह कीट 1-2 इंच लम्बा होता है. 15 दिन में हीं इनका प्रजनन पूरा हो जाता है. इस कीट को मेक्सीजन वीटल इन्सेक्ट कहा जाता है. यह कीट एक पौधे को तब तक नहीं छोड़ता है, जब तक उसका समूल नाश न हो जाए. अधिक जानकारी के लिए इच्छुक सज्जन उनसे सम्पर्क साध सकते हैं .
गाजर घास से नुकसान होने के साथ कुछ फायदे भी हैं. इससे कीट नाशक, जीवाणु नाशक, खर पतवार नाशक दवाइयाँ तैयार होती हैं. इसकी लुग्दी से कागज तैयार किए जाते हैं. परन्तु जो फायदे हैं वे नुकसान के मुकाबले कमतर हैं. तो फिर, देर किस बात की. आइए, गाजर घास मुक्त भारत के लिए कमर कसें. किसी खेत, खाली प्लाट, पार्क व छत पर जहां कहीं गाजर घास नजर आए उसे समूल उखाड़ फेंकें . तभी हम प्रकृति से भावनात्मक तादात्म्य स्थापित कर पाएंगें.
चलो चलें कुछ कोस.
घास पर पड़ी है ओस.
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