लगता है सिंधु नदी पार चला गया प्लेग .

प्लेग महामारी ईशा के जमाने से है. यह बीमारी लीबिया,सीरिया, मिस्र से शुरू हो धीरे धीरे पूरे यूरोप में फैल गई थी. कुछ सदियों तक शान्त रहने के बाद प्लेग फिर सन् 1894 में हांगकांग में सर उठाया. इस बार यह बीमारी जापान, भारत, तुर्की होते हुए रूस तक जा पहुंची . सन् 1898 आते आते अरब, फारस, आस्ट्रिया , अफ्रीका, दक्षिणी अमेरिका और हवाई द्वीप तक प्लेग अपना पांव पसार  चुका था. सन् 1900 तक इसका तांडव इंगलैण्ड, आस्ट्रेलिया में भी होने लगा. 1894 से 1918 तक लगभग ढाई करोड़ लोगों ने इस बीमारी से जान गंवाई .
इंग्लैण्ड में प्लेग से डरकर 2/3 आबादी देश से बाहर चली गई थी. बचे लोगों में से तकरीबन 68 हजार लोग मारे गए . लंदन शहर वीरान हो गया. उसी दौरान लंदन में वृहत्तर अग्निकांड हुआ. पूरा लंदन शहर जलकर खाक हो गया. इसी के साथ हीं शायद प्लेग के जीवाणु भी खत्म हो गये. क्योंकि उसके बाद कभी लंदन में प्लेग का प्रकोप नहीं देखा गया.
प्लेग को ताऊन या ब्लैक डेथ कहकर भी पुकारा जाता है. मुख्य रूप से यह पास्चुरेला नामक जीवाणु से फैलता है. पास्चुरेला अपने वाहक पिस्सुओं के माध्यम से चूहों पर अक्रमण करता है . इन पिस्सुओं के काटने से चूहे मरने लगते. चूहों के मरने के बाद ये पिस्सू मनुष्यों पर आक्रमण करते. इसीलिए जब घरों में चूहे मरने लगते तो लोग घरों को छोड़कर मैदानों में चले जाते थे.इस बीमारी में तेज बुखार, सर्दी, खांसी व कभी कभी न्यूमोनिया तक हो जाता था. 1898 से लगातार 20 वर्षों तक प्लेग भारत में अपना क्रूर खेल खेलता रहा. बहुत लोग मरे. एक आदमी का दाह कर्म करके आते तभी घर का दूसरा सदस्य दाह कर्म के लिए तैयार रहता. लोग अपने प्रिय जनों की मृत्यु पर इतना रो चुके थे कि आसूं कम पड़ने लगे थे. लोगों के आंख के आंसू सूख गये थे.  प्लेग ने पूरे भारत को हिलाकर रख दिया था.
अभी फिर सन् 1994 में सूरत में प्लेग का प्रकोप शुरू हुआ था, पर शुक्र है कि हमारे पास सल्फरडाइजीन नाम की दवा है. प्लेग का टीका विकसित कर लिया गया है. इसलिए सूरत वाले प्लेग से हम बहादुरी से लड़े और उसे महामारी बनने से रोक दिया. पहले यूरोप में प्लेग फैलता था तो भारत के लोग कहा करते थे कि प्लेग सिंधु पार कर भारत में नहीं आ सकता. अब जब यह आ गया है तो इसके रोक थाम के इतने संसाधन हो गये हैं कि अब लगता है कि प्लेग सिंधु पारकर भारत से चला गया है.
मुश्किल चाहे लाख हो, लेकिन एक दिन तो हल होती है.
बीरान पड़ी जिन्दगी में भाई! एक दिन तॊ हलचल होती है.
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