आप क्यूं हमारे कातिल हैं ...
बिहार में घोपड़ासें (नील गायें) मारी गईं .एक दिन में 250 . उनको मारने के लिए हैदराबाद से तीन शार्प शूटर्स मंगाए गए .नील गायें अनबोलता हैं. उन्हें पता नहीं कि उन्हें क्यों मारा जा रहा है? आपको पता है कि आप उन्हें क्यों मार रहे हो ? क्योंकि आप को पता है कि आप अकर्मण्य हो. आप नील गायों को भगाने के श्रमसाध्य काम से जी चुराते हैं. इसलिए आपने शार्ट कट विधि अपनाई है. न रहेगा बांस, न बजेगी बांसुरी. किसी की जान लेने का हक हमें नहीं है, उसे अपनी स्वाभाविक मौत मरने का हक भगवान ने दिया है. हम ईश्वरीय कानून को नहीं मान रहे. अपनी अकर्मण्यता को छिपाने का अच्छा बहाना है. प्रेमचन्द का हल्कू अकर्मण्य तो है, पर हत्यारा नहीं. पूस की रात कहानी में वह नीलगायों द्वारा फसल बरबाद करने पर कहता है चलो अगली बार फसल की रखवाली नहीं करनी पड़ेगी.
मेनका गांधी व प्रकाश जावेड़कर दो केन्द्रीय मंत्रियों में नील गायों के मारे जाने पर जुबानी जंग छिड़ गई है .यहां पर हम यह विवेचना नहीं करेंगे कि कौन मंत्री सही है, कौन गलत ?,पर यह विवेचना जरूर करेंगे कि इसे अनावश्यक उपद्रवी पशु मान कर क्यों मारा जा रहा है? नील गाय को जीवन मिला है. जीवन उसका तब बचेगा जब उसे भोजन मिलेगा.यदि वह आपकी फसल बरबाद कर रहा है तो अपने जीवन के लिए. उसकी आपसे कोई व्यक्तिगत दुश्मनी नहीं है. वह यह भी नहीं जानता कि वह आपका अहित कर रहा है. लेकिन आप दोनों चीजें जानते हैं. आप यह जानते हैं कि वह आपकी फसल बरबाद कर रहा है. साथ हीं आप यह भी जान रहे हैं कि उसे मारकर आप उसका सर्वनाश कर रहे हैं.
मुगल बादशाह जहांगीर ने नील गायों की हत्या करने पर पाबन्दी लगा दी थी. उस समय भी तो फसलें बरबाद होती होंगी .आम जनता ने क्या किया होगा? जनता ने रखवाली के लिए खेतों में मचान लगाएं होंगे. कुत्ता पाला होगा, जो भौंक भौंक कर नील गायों के नाक में दम कर दिया होगा. वैसे नील गायों द्वारा उत्पात मचाने का असली कारण हमारे द्वारा उनके आवास को उजाड़ देना है. आम तौर पर नीलगाय कम घने जंगलों में रहती हैं. घने जंगलों में रहने पर शेर बाघ द्वारा आक्रमण किए जाने का अंदेशा रहता है. इसलिए ये परती खेतों में ,जहां छोटी छोटी झाड़ियां होती थीं और वहां से दूर दूर तक नजर आता था, रहना पसंद करती थीं . ये आपस में पीठ से पीठ मिलाकर बैठती थीं. नजर चारों दिशाओं में रहती थी. किसी भी दिशा में यदि किसी नील गाय को कुछ शक सुबहा होता था,वह आवाज लगाती थी. पीठ आपस में जुड़े रहने के कारण सब नीलगायें उस नीलगाय के हिलन को महसूस करती थीं. सारी की सारी नीलगायें भाग खड़ी होती थीं. उन परती खेतों में हीं उनके खाने पीने का सामान होता था. बेर के फल और उनके पत्ते नीलगायें बड़े चाव से खाती थीं. उन्हें फसल वाले खेत में जाना गवारा नहीं था. आज हमने परती पराठ सारे खेत खत्म कर दिए. उनका घर उजड़ गया. फिर वे जाए कहां? आपके खेतों में तो हीं जाएंगी. फसले खाएंगी. खेत उजाड़ेंगी . फिर आप उन्हें मारोगे.
उसी का शहर, वही मुद्दई ,वही मुंसफ ;
हमें यकीं था, हमारा कसूर निकलेगा.
आज भी नीलगायें पीठ से पीठ सटाकर बैठती हैं. आज भी उन्हें खतरे का एहसास होता है. ,पर आज उन्हें भागने का मौका नहीं मिलता . शार्प सूटर उनका काम तमाम कर देते हैं. ऐसे अकारण उनको सूली पर चढ़ाना किसी भी पशु प्रेमी को गवारा नहीं होगा, जब कि इन्हें विना मारे हीं इनके आतंक से छुटकारा मिल सकता था. आप खेतों के चारों तरफ कंटीली बाड़ लगा सकते हैं. बांस की फट्टियां या चमकीली बैंड लगाई जा सकती हैं. खेतों के मेड़ों पर करौंदा, तुलसी, जिरेनियम, मेंथा, एलेमन घास, सिंट्रोनेला और पामरोजा रोपित कर हम फसलों की सुरक्षा कर सकते हैं. और कुछ नहीं तो खेतों में पुतला तो खड़ा कर सकते हैं, जिससे रात को नील गायें डर जाती हैं. खेतों में नहीं घुसतीं. दिन रात खेतों की रखवाली करके भी इस समस्या से निजात मिल सकती है. एक हर्बल घोल होता है, जिसका छिड़काव करने से लगभग 20/25 दिन नीलगायें उस खेत की तरफ रूख नहीं करतीं. यह हर्बल घोल 4 लीटर मट्ठे में 1/2 किलो छिला हुआ लहसुन को पीसकर तैयार किया जाता है. इसमें 1/2 किलो बालू मिलाकर 15 लीटर पानी से यह घोल बन जाता है.
नीलगायों को पालकर भी हम इस समस्या से निजात पा सकते हैं. नीलगायों के शावकों को पकड़ हम उन्हें पालतू बना सकते हैं. इन पालतू नीलगायों से दुग्ध उत्पादन का एक अच्छा विकल्प तैयार हो सकता है. नीलगाय का दूध मीठा,पर तासीर इसका गर्म होता है. गर्म तासीर को सौंफ व शहद से ठंडा किया जा सकता है. इस दूध का उपयोग गुर्दे की बिमारियों में रामबाण का काम करता है. नीलगाय डेयरी परियोजना की दरकार राष्ट्रीय स्तर पर है. इनके गोबर से जैविक खाद मिलेगा. यदि ऐसा हो गया तो हमारी निर्भरता गाय, भैंसों पर कम हो जाएगी. श्वेत क्रांति में भारत का वर्चस्व बढ़ेगा. नील गायों की समस्या रूस में भी थी. उन्होंने इन्हें पालतू बना इनका उपयोग दुग्ध उत्पादन में किया . नीलगायों की खासियत होती है कि शावक किसी भी मादा का दूध पी सकता है. मादाएं हर बच्चे पर अपना प्यार लुटाती हैं. गाय, भैंस के मामले में ऐसा नहीं है. यदि इनका शावक मर जाता है तो ये दुसरे शावकों को अपने पास फटकने नहीं देतीं और दूध देना बंद कर देती हैं. अतः जब नीलगायों की डेयरी फार्म खोला जाएगा तो मादा हर शावक की मां होगी और दूध बन्द करने का सवाल हीं नहीं उठेगा.
सरकार से अनुरोध है कि नीलगायों को वह मारना बंद करे और अन्य बैकल्पिक व्यवस्थाओं पर गौर करे.
आप क्यूं हमारे कातिल हैं,
हम गर्दिस में हैं, हम पर रहम करो.
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