मिथुन -एक गऊ प्रजाति का जानवर.
भारतीय उपमहाद्वीप मिथुन बहुल क्षेत्र है. इसे गोरी गाय, बोदा, गवली भी कहते हैं. यह एक स्तनपायी शाकाहारी जीव है और अरुणांचल, वर्मा, मलाया के पहाड़ी इलाकों में बहुतायत में पाया जाता है. पहले श्रीलंका में भी मिथुन पाए जाते थे ,परन्तु किसी संक्रामक रोग की वजह से अब ये नहीं पाए जाते . मिथुन अपनी आकृति की वजह से वैसे तो खूंखार नजर आता है ,पर वास्तव में यह निहायत हीं डरपोक व शरीफ किस्म का जानवर है. अरूणांचल में मैंने खुद इस जानवर को डरकर भागते हुए देखा है. तकरीबन हर अजनबी से यह डरता है. स्थानीय लोगों के अनुसार एकांकी जीवन जी रहे नर मिथुन कभी कभार हिंसक भी हो जाते हैं .
नर और मादा मिथुन दोनों के सिंघ होते हैं. कंधे मांसल मजबूत और ऊपर की तरफ उठे होते हैं .कंधे से दुम तक मिथुन की पीठ एक ढलान लिए होती है, जो गाय या बैल में नहीं होती . मिथुन का रंग बदलता रहता है. शिशु नवजात का रंग सुनहला पीला होता है. जब शिशु बड़ा होता है तो यह रंग हल्का पीला हो जाता है. जवान मिथुन भूरा और प्रौढ मिथुऩ काला होता है. प्रौढ़ का सिर खाकी और घुटनों से खुर तक का रंग सफेद होता है. मादा मिथुन प्रसव के लिए किसी एकान्त जगह पर चली जाती है. 9/10 माह में वह एक या दो बच्चे जनती है. मादा मिथुन शिशु के साथ तब तक रहती है, जब तक कि वह बड़ा नहीं हो जाता. यदि किसी कारण से मादा मिथुन को यह एहसास हो जाता है कि शिशु जिंदा नहीं रह पायेगा तो वह उसका त्याग कर देती है. शिशु के बड़े होने या त्याज्य हो जाने के बाद वह समूह में लौट आती है.
बड़े हो जाने के बाद नर मिथुन अन्य नरों के साथ बीहड़ जंगलों में आहार हेतु चला जाता है. ये नर तभी लौटते हैं, जब मैथुन ऋतु आती है. नर आपस में वर्चस्व की लड़ाई लड़ते हैं. जो जीत जाता है, वह बाकी नरों को भगा देता है. जो जीता वहीं सिकंदर. जीत दर्ज किया हुआ नर मिथुन सभी मादाओं के साथ रहने लगता है. बाद में वह नर नियत ऋतु के समाप्त हो जाने के बाद सभी मादाओं को छोड़कर चला जाता है. मिथुन ज्यादातर जंगलों में रहता है. कभी वह मैदानी इलाके में आता भी है तो किसानों के खेतों में नहीं जाता,जिससे कृषि का नुकसान नहीं होता. अलबत्ता मैदानी इलाके में आने से इसका जरुर नुकसान हो जाता है. पालतू पशुओं द्वारा चरे गये घास को खाकर इसके मुंह में संक्रमण हो जाता है.
अरुणांचल में जिसके पास जितना मिथुन होता है, वह उतना हीं रईस माना जाता है. मिथुन दहेज में दिये जाते हैं. मिथुन को पहले पाला जाता है. उसमें नमक खाने की आदत डाली जाती है. फिर उसके गले में घंटी बांधकर बीहड़ों में छोड़ दिया जाता है. नमक का स्वाद जुबां पर चढ़ने के कारण मिथुन बार बार अपने मालिक के पास आता है और नमक खाने के बाद लौट जाता है. यहीं पर मिथुन धोखा खा जाता है. उसे किसी उत्सव वाले दिन पकड़ कर मार दिया जाता है ,. उसका मांस चावल के साथ बड़े चाव से खाया जाता है. जानवरों के विश्वास को धोखा मनुष्य अनादि काल से देता आ रहा है और मेरे ख्याल से आगे भी ऐसे हीं आसार हैं.
झूठी सच्ची आस पर जीना,
कब तक आखिर ,आखिर कब तक?
मय की जगह खून-ए-दिल पीना,
कब तक आखिर ,आखिर कब तक?
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