एक कयामत हुई बेदार खुदा खैर करे.

सन् 1993 में सूडान में भीषण अकाल पड़ा था. लाखों लोग काल कवलित हुए थे. संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा राहत कार्य जोरों पर था.संकट की इस घड़ी में मीडिया भी इस अकाल की रिपोर्टिंग जी जान से कर रही थी. इन्हीं में से केविन कार्टर फोटोग्राफर भी थे. एक दिन केविन कार्टर को एक छोटी लड़की मिली, जो राहत शिविरों की तरफ जा रही थी. भूख से बेहाल वह बच्ची मात्र हड्डियों का ढांचा भर रह गई थी. बच्ची थक कर जमीन पर लुढकी सी हो गई. एक गिद्ध तभी कहीं से वहां आ गया.
केविन कार्टर के लिए यह एक अच्छा पोज था. कार्टर चाहते थे कि गिद्ध अपना पंख खोले या उस बच्ची पर हमला करे तो वे फोटो क्लिक करें. जब कुछ नहीं हुआ तो केविन कार्टर ने उसी पोज में फोटो ले लिया. वह फोटो बहुत मशहूर हुआ. उस फोटो के लिए केविन कार्टर को पुलित्जर अवार्ड मिला, जो कि नोबेल और आस्कर के बराबर का पुरूष्कार था.
फोटोग्राफर केविन कार्टर की इस बात की आलोचना भी बहुत हुई कि उन्होंने भूख से बेहाल उस बच्ची के लिए कुछ नहीं किया. कम से कम उनको उस बच्ची को उठाकर राहत शिविर तक हीं पहुंचा देना चाहिए था. लोग उस बच्ची के बारे में जानने के लिए लालायित थे कि आखिर बच्ची बची या नहीं ? केविन कार्टर उस बच्ची के बावत कुछ भी पता नहीं था. उन्होंने फोटो खींचा और अपने कर्तब्य का इतिश्री मान लिया. एक मरते बच्चे के लिए उनकी सम्वेदनशीलता महज एक फोटो से ज्यादा कुछ नहीं था ।
भीषण आलोचना के बाद केविन कार्टर का जमीर जागा. उन्हें भयंकर पाश्चाताप हुआ. एक दिन उन्होंने आत्महत्या कर ली. केविन कार्टर का जमीर तो जाग गया ,पर भारतीय मीडिया का जमीर कब जागेगा ,जो कि असम्वेदनशीलता के इसी रोग से पीड़ित है .नेपाल में आए भूकम्प के बाद भारतीय मीडिया का भी  असम्वेदनशील व्यवहार सामने आया था. लोग खुले मैदानों में रात काट रहे हैं. उनसे यह पूछा गया कि आप लोग कैसा महसूस कर रहे हैं ? आश्चर्य की बात है! ऐसे में क्या कोई अच्छा महसूस कर सकता है? उसी तरह जंतर मंतर पर एक आदमी पेड़ से लटक रहा है और मीडिया उसका लाइव कवरेज दिखा रहा है.  तो ऐसी असम्वेदनशील व्यवहार को आप क्या कहेंगे?
एक कयामत हुई बेदार, खुदा खैर करे!
No photo description available.

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

आजानुबाहु

औरत मार्च

बेचारे पेट का सवाल है