अंतराष्ट्रीय महिला दिवस पर विशेष.

नारी तुम केवल श्रद्धा हो ....
आज 08 मार्च सन् 2016 को पूरे विश्व में अंतराष्ट्रीय महिला दिवस मनाया जा रहा है. सम्पूर्ण विश्व की महिलाएं जात पात, भाषा, राजनीतिक व सांस्कृतिक भेदभाव को भुलाकर इस दिन को मनाती हैं. इस दिवस की स्थापना 08 मार्च सन् 1910 को हुई थी. हर वर्ष एक थीम दी जाती है. सन् 2015 की थीम थी -सशक्त महिला, सशक्त मानवता. सही है. नारी सशक्त तो मानवता सशक्त .
मेरे ख्याल से ब्रह्मा के बाद महिला का हीं सृष्टि रचना में अहम् रोल है. महिला एक जननी है .बच्चों का पालन करती है. सृष्टि की रचना हेतु वह प्रसव पीड़ा झेलती है. इस पीड़ा के संसार में कई बार उसकी मौत तक हो जाती हैं. कन्या भ्रूण की हत्या तो आम हो गयी है. जब कन्या भ्रूण की हत्या हम गर्भ में हीं कर देंगे तो बेटा कहां से लाएंगे. बेटी पैदा होगी तभी सृष्टि चलेगी. आज हरियाणा में बेटियों का अकाल पड़ गया है. लोग बंगाल, उड़ीसा, असम से लड़कियां ला अपने बेटों की शादी कर रहे हैं.
करीब एक दशक से संसद में आरक्षण बिल धूल चाट रहा है. किसी  भी पार्टी का उसे पास कराने में दिलचस्पी नहीं है. मर्दों द्वारा यह संचालित समाज डर रहा है कि 1/3 भाग महिलाओं के लिए आरक्षित हो जाने पर उनकी भागीदारी कम हो जाएगी. इसीलिए यह बिल आज तक पास नहीं हुआ और निकट भविष्य में पास होने की कोई सम्भावना भी नजर नहीं आती.
मार्ग्रेट थैचर ने एक बार कहा था -
                       "यदि आप अपनी बात आगे बढ़ाना चाहते हैं तो पुरुष से कहिए और आपकी इच्छा है कि वह काम पूरा हो तो महिला से कहिए. "
महिलाएं जीवन के हर क्षेत्र में आगे बढ़ रहीं हैं, जिसे पुरुष समाज ईर्ष्या और द्वेष से देख रहा है. ,पुरुष आज भी चाह रहा है कि नारी को एक सांचे में ढाल कर रखा जाय ,जिसमें श्रद्धा ,सद्भावना हो , पर पुरुषों से बराबरी न हो. वह आज भी नारी को पुरुष के निमित्त हीं मानता है .
आज जयशंकर प्रसाद की यह कविता पुरुषों के लिए मात्र आदर्श रह गया है -
नारी तुम केवल श्रद्धा हो,
विश्वास रजत नग पग तल में.
पीयूष श्रोत सी बहा करो, जीवन के सुंदर समतल में.

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