कोऊ नृप होंहि हमे का हानी..
गांधार और ब्यास नदी के बीच का प्रदेश आज पंजाब कहलाता है. इसी पंजाब के एक जनपद के राजा थे -कैकेय. इन्हीं कैकेय राजा की बेटी कैकेयी का ब्याह अयोध्या के राजा दशरथ से हुआ था. राजा कैकेय के और दो भाई थे -अश्वपति और वृहदश्व. वृहदश्व की एक विशाल नयन वाली बेटी थी, जिसका नाम रेखा था. रेखा अपनी चचेरी बहन कैकेयी से भी बहुत सुन्दर थी. रेखा को एक अज्ञात बीमारी लग गई थी. उसे गर्मी बहुत लगती थी. अचानक शरीर तर -ब -तर हो जाता. भंयकर प्यास लगती. एक दिन उसने प्यास से आकुल हो त्रिदोष युक्त शरबत पी लिया, जिससे उसके शरीर के सभी अंगों ने काम करना बन्द कर दिया. प्रसिद्ध चिकित्सकों के वर्ग ने दिन रात मेहनत कर उसे बचा लिया. उसके शरीर के सभी अंगों ने काम करना शुरू कर दिया, पर रीढ़ की हड्डी झुकी हीं रही. कंधे व गरदन भी झुके रहे. अब वह एक सुदर्शना राजकुमारी न हो एक कुरुप राजकुमारी में परिवर्तित हो गई थी.
इसी कुरूपता की वजह से उसकी शादी नहीं हुई. वह झुकी हुई होने के कारण मंथर गति से चलती थी. इसलिए उसे सभी मंथरा कहने लगे. अब रेखा मंथरा बन गई. मंथरा पर दया कर कैकेई उसे अपने साथ अयोध्या ले आई. राज महल में कैकेई ने मंथरा का परिचय अपनी बहन के रूप में शर्म के कारण नहीं करा पाई. स्वाभाविक था कि लोग उसे कैकेई की दासी समझने लगे थे. मंथरा ने भी आगत को स्वीकार किया. वह एक दासी के रूप में हीं रहने लगी. मंथरा चूंकि कैकेयी की बहन थी, इसलिए वह अक्सर उसी के पास रहती थी. दोनों बहनें एक दुजे के सुख दुःख की भागी बनीं रहती थीं .
राम के राज्याभिषेक की तैयारी चल रही थी. भरत अपने ननिहाल में थे. इतने बड़े भव्य आयोजन में भरत को न बुलाया जाना मंथरा को चुभ गयी. यही बात उसने कैकेई को बताई. पहले तो कैकैई ने इस बात पर गौर नहीं किया और राज्याभिषेक की तैयारियों में लगी रही. परन्तु ऐसे में नकारात्मक विचार हावी होने लगते हैं. उसे शक होने लगा. भरत को ननिहाल से इसलिए नहीं बुलाया गया कि कहीं वह राम के राज्याभिषेक में विघ्न न पैदा कर दे. कैकैयी यह सोचकर हैरान थी कि कोई भरत जैसे पुत्र पर कैसे सन्देह कर सकता है ?मैथिली शरण गुप्त ने भी कैकेयी के इस अंतर्द्वंद को अपने खण्ड काव्य "साकेत " में बखूबी उभारा है -
भरत से सुत पर भी संदेह.
बुलाया तक न उसे जो गेह.
यदि गम्भीरता से सोचा जाय तो ऐसे मौके पर भरत को ननिहाल भेजना और भेजने के बाद न बुलाना एक षड़यंत्र की तरफ इशारा करता है. राजा दशरथ को सही तरीके से पता था कि राम उनके बड़े पुत्र हैं और कायदे से राज्याभिषेक उन्हीं का होना था, पर दशरथ को अपने दिए गये बचन याद आ रहे थे ,जो उन्होंनें कैकेयी को दिए थे. उस समय तो कैकेयी ने कहा था कि वह किसी वांछित दिन इन वचनों को मांगेगी. राजा को डर था कि वह वांछित दिन राज्याभिषेक वाला दिन हो सकता है. कहीं कैकेयी राम के बदले भरत का राज्याभिषेक न मांग ले,जिसे वचन वद्ध होने के कारण राजा दशरथ मना नहीं कर सकते थे. इसलिए एहतियात के तौर पर भरत को ननिहाल भेज दिया गया था. साथ में सुमित्रा के पुत्र शत्रुघ्न को भी भेज दिया गया ताकि इस षड़यंत्र का किसी को शक न हो. गौरतलब है कि हमारी भारतीय संस्कृति में ऐसे आयोजनों में दूर दूर से हित मीत को बुलाया जाता है. भरत तो अपने भाई थे. उन्हें ऐसे आयोजन से दूर रखने का औचित्य सिवा षड़यंत्र के और क्या हो सकता था ?
कहते हैं कि आवश्यकत्ता से अधिक सावधानी दुर्घटना का कारण बनती है. दुर्घटना हुई. राम को 14 साल का वनवास मिला. राजा दशरथ का देहांत हो गया. इन सभी दुर्घटनाओं के लिए मंथरा को दोषी ठहराना कहां का न्याय है? मंथरा ने वही किया, जो उस समय की देश, काल, परिस्थिति कह रही थी. मंथरा पर कैकेयी का जो एहसान था, वह कैकेई को छोड़ किसी और का हित उसे कैसे सोचने देता? मंथरा एक अपाहिज थी .उसका हित वही था जो कैकेई का था .वह कैकेई से इतर कैसे सोच सकती थी ? इसलिए उसने केवल और केवल कैकेई का हीं हित सोचा .
मंथरा एक दासी थी, जो किसी के भी राजा बनने पर दासी हीं रहती. पर उसकी प्रतिबद्धता अपनी छोटी बहन कैकेयी के प्रति थी और आजीवन बनी रही. तुलसी दास ने भी मंथरा से यह बात बेबाक और दो टूक शब्दों में कहलवाया है -
कोऊ नृप होहिं हमे का हानी ?
चेरि छाड़ि न होउब रानी.
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