विष्णु पुराण - मानव हित का पुराण.
पराशर ऋषि द्वारा रचित विष्णु पुराण में कुल सात हजार श्लोक हैं. हांलाकि यह 18 पुराणों में सबसे छोटा पुराण है, पर यह साहित्य की दृष्टि से बहुत उम्दा पुराण है.इसमें काव्यात्मक भाव प्रवणता के साथ साथ भाषा में प्रवाह व प्रांजलता है.इसमें भौगोलिक, ऐतिहासिक, सामाजिक व राजनीतिक परिस्थितियों का मर्म समझाया गया है.छोटा होते हुए भी यह "गागर में सागर" का आभास दिलाता है. हम इसकी तुलना विहारी कवि के सतसई से कर सकते हैं , जिनके बारे में स्वंय विहारी कवि ने लिखा है -
सतसैया के दोहरे, जस नाविक के तीर.
देखन को छोटन लगे घाव करे गम्भीर.
विष्णु पुराण में राम व कृष्ण को विष्णु का अवतार माना गया है. बाद के दिनों में राम और कृष्ण भक्तों में वर्चस्व की लडा़ई होने लगी. भक्त आपस में इस बात पर भिड़ने लगे कि राम और कृष्ण में कौन बड़ा है ? कहते हैं कि कृष्ण भक्त सूरदास और राम भक्त तुलसी दास में इस बात पर काफी शास्त्रार्थ भी हुआ था ,पर बात बेनतीजा निकली. अंत में तुलसी ने यह कहकर इस चर्चा को विराम दिया था -
तुलसी मस्तक तब नवे, धनुष बान लो हाथ.
विष्णु पुराण में शूद्रों को सर्व श्रेष्ठ माना गया है. जो शूद्र निष्ठा पुर्वक अपना कर्म करता है ,उसे ब्राह्मणों द्वारा किए गए जप तप के बराबर फल मिलता है. विष्णु पुराण में स्पष्ट तौर पर लिखा गया है कि जो स्त्री पूरी तरह से अपने पति व परिवार को समर्पित है, उसकी सद्गति हो जाएगी .उसे किसी प्रकार के पूजा अर्चना की आवश्यक्ता नहीं है.
शूद्रों द्विजशुश्रुषातत्परै द्विजासत्तामाः ।
तथा दिभ्स्त्री भिरनायासात्पति सुश्रुयैव हि ।।
विष्णु पुराण का शूद्रों और स्त्रियों के बारे में कहा गया यह आशिर्वचन तुलसी दास के काल तक आते आते विकृत हो गया और उसका रुप यह हो गया -
ढोल, गंवार ,शूद्र, पशु अरु नारी,
सकल ताड़ना के अधिकारी.
विष्णु पुराण में मनुष्य योनि सर्व श्रेष्ठ मानी गयी है. मनुष्य योनि में पैदा होने के लिए देवताओं को भी लालायित दिखाया गया है.विष्णु पुराण में लिखा है कि मनुष्य को मोक्ष प्राप्ति के लिए वन जाने की कोई जरुरत नहीं है. सत्कर्म करता हुआ वह गार्हस्थ जीवन में भी मोक्ष प्राप्त कर सकता है. कपड़े को जोगिया रंग देने की बजाय मन को जोगिया रंग दिया जाय तो बेहतर होगा.
भारत की भौगोलिक हदबन्दी पहली बार विष्णु पुराण में मिलता है. सागर के उत्तर हिमालय और हिमालय के दक्षिण सागर के मध्य का पवित्र क्षेत्र भारत कहलाता है और इस देश की संतति को भारतीय कहा जाता है.
उत्तरं यत्समुद्रस्य हिमाद्रेश्चैव दक्षिणम् ।
वर्ष तद्भारतं नाम भारती संतति ॥
इसके अतिरिक्त विष्णु पुराण में कृषि करने के तरीके, अनेकानेक पूजा पद्धतियों के बावत बताया गया है. राजा का अपनी प्रजा के प्रति कैसा व्यवहार होना चाहिए ? इसका विशद् विवेचन विष्णु पुराण में किया गया है. सदाचार से हीं प्रजा का दिल जीता जा सकता है. राजा का धर्म प्रजा का पालन करना हैं. राजा को प्रजा के साथ मित्रवत् व्यवहार होना चाहिए.आदि आदि ...
यदि आज के दौर में यह कहा जाय कि विष्णु पुराण हीं आज के प्रजातांत्रिक प्रणाली का आधार है तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी. जय जय.
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें