मेरे रूप रंग का राज -लक्स.

सोफिया लारेन इसी बात को इस कदर कहती थीं -First step of my beauty is lux. बाजार में कई रंगों में मौजूद लक्स दुनियां का इकलौता ब्रांड है, जिसने महिलाओं को सेलेब्रेटी बनाया. एलिजा बेथ टेलर, सोफिया लारेन, मर्लिन मुनरों , डेमी मूर , जूडी गारलैण्ड अादि हालीवुड अभिनेत्रियों के  अतिरिक्त बालीवुड की मधुबाला, माला सिन्हा, हेमा मालिनी, श्री देवी, माधुरी दीक्षित, जूही चावला, करिश्मा कपूर, रानी मुखर्जी, अमिषा पटेल, करीना कपूर, तब्बू आदि सभी इसकी ब्रांड एम्बेस्डर रह चुकी हैं.इस सबुन की प्रथम ब्रांड एम्बेस्डर वालीवुड की महान अदाकारा लीला चिटनीस थीं. यहां तक कि किंग खान शाहरूख भी इसके ब्रांड एम्बेस्डर बनने के लोभ को संवरण नहीं कर पाए. उन्हें लक्स के प्रथम पुरूष ब्रांड एम्बेस्डर का दर्जा प्राप्त हुआ. अब अभिषेक बच्चन भी इस कड़ी में शामिल हो गये हैं.
लक्स से पहले इसका नाम सन लाइट था, जो कि कपड़े धोने का साबुन था. सनलाइट इतना माइल्ड व साफ्ट था कि महिलाएँ इस साबुन से नहाने भी लगीं. इसमें कास्टिक सोडा नाम मात्र हीं था, इसलिए इससे नहाने वाली महिलाओं की चमड़ी को जरा भी नुकसान नहीं हुआ. जब सन लाइट बनाने वाले लीवर ब्रदर्स को इस बात का पता चला तो उन लोगों ने महिलाओं के लिए टायलेट साबुन बनाने की सोची. ग्लिसरीन व पाम आयल के मिश्रण का इस सन लाइट साबुन में और इजाफा कर दिया गया .इस झागदार व खुश्बूदार साबून का नाम रखा गया लक्स. लक्स का लैटिन भाषा में अर्थ होता है रोशनी. रोशनी का ख्याल तो सन लाइट भी पूरा करता था, पर लक्स से लक्जरी का भी एहसास होता था.
इंगलैंड, अमेरिका के बाद लक्स आर्जेन्टीना, थाईलैण्ड होता हुआ भारत पहुंचा. यहां एक अलग कम्पनी लांच की गई -लीवर ब्रदर्स इंडिया लिमिटेड. लक्स ने अपने 130 साल के लम्बे ऐतिहासिक सफर में न सिर्फ इसका फार्मूला बदला, बल्कि इसके विज्ञापन शैली में बदलाव भी किया .आज लक्स उस मुकाम पर पहुंच गया है ,जहां तक पहुंचने की अन्य कम्पनियां सोच भी नहीं सकती थीं . सन् 1885 में विलियम लीवर और जेम्स डार्सी लीवर ने इंग्लैण्ड में लीवर ब्रदर्स के नाम से एक कुटीर उद्दोग स्थापित किया था, जिसका बाद में नाम यूनी लीवर रखा गया . अब इस कम्पनी का उत्पाद लक्स दुनियां के तकरीबन 100 देशों में पहुंच गया है, जो तकरीबन तीन हजार अरब का कारोबार कर रहा है. लक्स ने दुनियां की उन तमाम महिलाओं को सेलेब्रेटी बनाया, जो इससे जुड़ीं.
लक्स से जुड़ने के लिए दुनियां भर की तमाम महिलाएं लालायित रहतीं थीं और उनमें एक होड़ सी लगी रहती थी. लक्स को उन महिलाओं ने नहीं बनाया, बल्कि उन महिलाओं को लक्स ने बनाया. उन्हें सफलता के मुकाम तक पहुंचाया. कुछ इसी तरह का ख्याल कवि उपाध्याय सिंह हरिऔध भी महाकवि तुलसी दास के प्रति रखते हैं-
कविता करके तुलसी न लसे,
कविता लसी पा तुलसी की कला.
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