न दर, न ठिकाना.
जंगली कुत्तों की दुनियाँ पालतू कुत्तों से अलग होती है. पालतू, गली ,मोहल्ले में रहने वाले कुत्तों की एक अपनी दुनियाँ होती है, जिसमें एक निश्चित दायरे की हदबन्दी होती है,किन्तु जंगली कुत्तों की कोई हदबन्दी नहीं होती. वे शिकार की खोज में मीलों यात्रा करते हैं. ये समूह में रहते हैं. यह समूह शेर, बाघ जैसे बड़े व खूंखार जानवरों से भी लोहा ले लेता है.
नर और मादा दोनों मिलकर बच्चों की परवरिश करते हैं. रास्ते में समूह को कोई अनाथ कुत्ते का बच्चा मिल जाता है तो वे उसकी परिवरिश की भी जिम्मेदारी अपने ऊपर ले लेते हैं. वह बच्चा भी उस समूह का अंग बन जाता है . जंगली कुत्तों की चार अंगुलियां हीं होती हैं. ये अफ्रीका और अस्ट्रेलिया के घने जंगलों में बहुतायत में पाये जाते हैं. आज इनकी आबादी अवैध शिकार, घटते जंगल की वजह से दिन ब दिन कम होती जा रही है. केवल अफ्रीका में हीं इनकी लाखों की तादाद घटकर अब तकरीबन 60 हजार रह गई है.
जंगली कुत्ते चीतल, हिरण आदि का शिकार करते हैं. ये पहले शिकार को खूब दौड़ाते हैं . जब वह अत्यंत थक जाता है तो एक कुत्ता सामने से आकर शिकार की आंखें फोड़ देता है .दुसरे कुत्ते शिकार की पीठ पर चिपक उसका काम तमाम कर देते हैं. कई बार ये जंगली भैंसे ,भालू , पैंथर आदि का शिकार भी आसानी से कर लेते हैं.
वैसे जंगली कुत्तों की एक और प्रजाति दक्षिण व दक्षिण पूर्व एशिया में पाई जाती है, जिन्हें ढोल कहा जाता है. अब यह अंतराष्ट्रीय संस्था द्वारा विलुप्त प्राणी की श्रेणी में रखा गया है. घटता जंगल, बढ़ता अवैध शिकार, छोटे जीवों का अभाव, कस्बाई कुत्तों का प्रभाव ,जिससे ये ससा बिमारी से ग्रसित हो जाते हैं आदि अनेकानेक कारण हैं, जो कि इनको विलुप्तता की कोटि में रख रहा है. ढोल अफ्रीकी और आस्ट्रेलियाई कुत्तों से इतर अपने बच्चों को पहले खिलाते हैं. बच्चों को खिलाने के बाद हीं ये स्वयं खाते हैं.
जंगली कुत्तों का कोई निश्चित ठौर ठिकाना नहीं होता. इनके लिए जहां सांझ, वहीं बिहान.ये शिकार के लिए उत्तरोत्तर आगे बढ़ते जाते हैं. एक अनचीन्हें, अनजाने मंजिल की तरफ ये मुसाफिर बढ़ते चले जाते हैं -
दिन ने हाथ थामकर जिधर बिठा लिया,
रात ने इशारे से जिधर बुला लिया,
सुबह से ,शाम से इनका दोस्ताना.
इन्हें चलते जाना ,
बस चलते जाना,
न दर, न ठिकाना.
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