सिंहासन बत्तीसी की कहानियाँ राजा भोज ने सुनी.

मुनि क्षेमेन्द्र द्वारा रचित सिंहासन बत्तीसी की लोकप्रियता ठीक वैसी है जैसी की बैताल पच्चीसी की है. बैताल पच्चीसी में पच्चीस कहानियां हैं तो सिंहासन बत्तीसी में बत्तीस. सिंहासन बत्तीसी की कहानी यूं शुरू होती है.
राजा भोज के राज में चन्द्रभान नाम का एक लड़का रहता था, जो कि कुम्हारों की गाएं चराकर अपना भरण पोषण करता था. एक दिन वह अन्य चरवाहों के साथ खेल रहा था. खेल खेल में वह एक टीले पर चढ़ गया. टीले पर बैठते हीं उसे यह आत्म ज्ञान प्राप्त हुआ कि वह न्याय करने में सक्षम है. आरम्भ में तो उसने उस टीले पर बैठ चरवाहों के छोटे मोटे झगड़ों का निपटारा किया . बाद में गाँव वालों के झगड़ों का निपटारा करने लगा. चन्द्र भान की ख्याति दूर दूर तक फैल गयी. दूर दूर से लोग उस टीले पर आने लगे -अपने अपने झगड़ों को निपटारा कराने के लिए. चन्द्रभान का निर्णय नीर क्षीर विवेकी होता. लोग सन्तुष्ट हो अपने घरों को जाते. उसने कई पेचीदा मामलों को सुलझाया. चन्द्रभान की चर्चा राजा भोज तक भी पहुंची.
राजा भोज वेश बदलकर उस चमत्कारी टीले पर पहुंचे, जहां चन्द्रभान फैसले करता था. राजा चन्द्रभान के निर्णय लेने की क्षमता से काफी प्रभावित हुए. राजा ने देखा कि टीले से उतरने के बाद चन्द्रभान एक सामान्य बालक बन जाता था. राजा भोज को लगा कि असली विशेषता इस टीले में है. उन्होंने टीले की खुदाई करवाई. खुदाई से एक बहुत सुन्दर रत्नजटित सिंहासन मिला. इस सिंहासन से बत्तीस परियां जुड़ी हुई थीं. राजा ने इस सिंहासन पर बैठने के लिए पंडितों से मुहुर्त निकलवाया .
नियत मुहुर्त को राजा इस सिंहासन पर बैठने के लिए नहा धो कर अच्छे बल्कल वस्त्र पहन पहुंचे तो सिंहासन से एक परी निकली और कहा, राजन् यह सिंहासन महान् प्रतापी राजा विक्रमादित्य का है. उनमें 32 गुण थे.  यही 32 गुण उस चरवाहे लड़के चन्द्रभान में थे. इसीलिए वह नीर क्षीर विवेकी निर्णय करता था. हम बत्तीस परियां यह चाहती हैं कि जो भी इस सिंहासन पर बैठे, वह उतनी हीं योग्यता वाला हो. इसलिए हम आपको विक्रमादित्य से सम्बंधित उनके गुणों की कहानी प्रतिदिन सुनाएंगी. यदि आपको लगता है कि आप में भी ऐसी प्रतिभा है तो आप स्वेच्छा से इस सिंहासन पर आरूढ़ हों. इस तरह से बत्तीसों परियों ने लगातार बत्तीस दिन राजा भोज को एक एक कहानी सुनाती रहीं और राजा हर दिन अपने को विक्रमादित्य के समकक्ष पाने में असमर्थ पाते . हर दिन एक परी कहानी सुनाने के बाद उड़कर इन्द्र लोक चली जाती. अंत मे अंतिम परी भी कहानी सुनाने के बाद उड़ गई. सिस्टर निवेदिता (स्वामी विवेकानन्द की शिष्या)  के अनुसार अंतिम परी सिंहासन लेकर हीं उड़ गई ,क्योंकि उसे विश्वास हो गया था कि राजा भोज इस सिंहासन के सुपात्र नहीं हैं.
जनश्रुतियों के अनुसार अंतिम परी सिंहासन छोड़ कर हीं उड़ी थी. बाद में राजा भोज ने उस सिंहासन को उसी टीले में फिर दबवा दिया था. राजा भोज जैसा योग्य, पराक्रमी ,दानबीर व विवेकशील राजा भी विक्रमादित्य की बराबरी नहीं कर सके और उन्हें मजबूर होकर उस सिंहासन का परित्याग करना पड़ा,लेकिन परियों द्वारा कही गयीं वे बत्तीस कहानियां विश्व की धरोहर हो गईं. सिंहासन बत्तीसी की इन कहानियों में मुनि क्षेमेन्द्र से परे बहुत रदोबदल किया जा चुका है, पर ये रद्दोबदल उन कहानियों के सौन्दर्य को और बढ़ाती हैं.
आज का न्याय बहुत लम्बा, पेचीदा और तारीखों के अम्बार में दब गया है. न्याय को तुरत फुरत दिलाने के लिए फिर से इस धरती पर विक्रमादित्य और चंद्रभान को जन्म लेना होगा. आज फिर से गड़े हुए सिंहासन को निकाल फिर बत्तीस परियों का आह्वान् करना होगा.
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