तुम न जाने किस जहां में खो गये.

एशिया का पहला और विश्व का दुसरा रेडियो स्टेशन रेडियो सीलोन था, जो कभी पूरे दक्षिण एशिया व मध्य एशिया तक के क्षेत्र को अपने मनोरंजन से आप्लावित करता था. इस रेडियो स्टेशन के पास गुजरे जमाने के तकरीबन साढ़े तीन लाख रिकार्ड्स हैं. पंडित नेहरू, सुभाष चन्द्र वसु के राष्ट्र के नाम दिए गये संदेश की दुर्लभ रिकार्डस इसी रेडियो स्टेशन पर आपको मिलेंगें तो रवीन्द्रनाथ टैगोर की गाई हुई कविता भी . महान गायक कुन्दन लाल सहगल और हरदिल अजीज मोहम्मद रफी की संयुक्त युगलबंदी इसी रेडियो स्टेशन के भंडारण से आपको मिलेगी. बुधवार को प्रसारित होने वाले विनाका गीतमाला की लोकप्रियता इतनी हुई कि इस कार्यक्रम को आधे घंटे से बढ़ाकर एक घंटे का करना पड़ा था. कभी रामायण और महाभारत धारावाहिकों को जो मान सम्मान मिला था, ठीक उसी तरह का दर्जा उस दौर में वीनाका गीत माला को मिली थी.
बीनाका गीतमाला, एच एम बी के सितारे, एस कुमार का फिल्मी मुकदमा, साज और आवाज, अनोखे बोल, नृत्य गीत और सरगम आदि प्रमुख कार्यक्रम थे, जो रेडियो सीलोन के उस समय के कालजयी कार्यक्रम हुआ करते थे. अमीन सायानी, मनोहर महाजन, पंडित गोपाल शर्मा, रिपुसूदन इलाहाबादी और विजय लक्ष्मी आदि उदघोषकों को उस समय स्टार का स्टेटस प्राप्त था. रेडियो सीलोन से महीने की पहली तारीख को किशोर कुमार का गाया गाना, " खुश है जमाना आज पहली तारीख है, " पहले भी बजता था और आज भी बजता है.
आज विछुड़ों को मिलाने का जो अहम रोल फेसबुक कर रहा है, वही रोल कभी रेडियो सीलोन करता था. देश के बंटवारे के समय जो परिवार विछड़कर भारत ,पाकिस्तान, बंगला देश चले गये थे, उनके मिलने का आधार रेडियो सीलोन करता था. जो लोग रोजगार के लिए मध्य एशिया में चले गये थे, उनके घरवालों की खोज खबर रेडियो सीलोन ने अपने जिम्मे लिया. बोरों में भरकर हर रोज डाक आती, जिसे उदघोषक बड़ी मुस्तैदी से पढ़ते. कई बार पढ़ते समय उदघोषक बड़े जज्बाती हो जाये करते थे.
आज एफ एम रेडियो का जमाना है, जो अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर फूहड़पन परोस रहा है. एफ एम वाले अपने बचाव में यह कहते हैं कि उनका कार्यक्रम नई पीढ़ी के लिए है. जो बातें पुरानी पीढ़ी के लिए आशोभनीय हैं, वह नयी पीढ़ी के लिए एकदम सामान्य. लेकिन मेरा इससे बिल्कुल इतर मत है. बुरी बातें हर देश ,काल ,परिस्थिति के लिए बुरी होती हैं .नई पीढ़ी और पुरानी पीढ़ी का परिवेश जब एक हो तो जेनरेसन गैप मायने नहीं रखता.  वैसे भी आज की भाग दौड भरी़ जिन्दगी में नई पीढ़ी को एफ एम सुनने की फुरसत कहां है ? यदि जेनरेसन वाली बात मान भी ली जाय तो यह बात रेडियो सीलोन के दौर में क्यों नहीं लागू थी ? उस दौर में तो बूढ़े, बच्चे और जवान सभी रेडियो सीलोन के मुरीद थे. कहीं भी फूहड़ता का नामोनिशान नहीं था. मेरे ख्याल से एफ एम वालों पर मिर्जा गालिब का यह शेर परिस्थिति के अनुरुप ठीक बैठता है -
हमें मालूम है जन्नत की हकीकत लेकिन,
दिल को खुश रखने को गालिब ये ख्याल अच्छा है.
आज भी रेडियो सीलोन से यह उदघोषणा होती है - ये श्रीलंका ब्राडकास्टिंग कार्पोरेसन की विदेशी सेवा है,परन्तु 11घंटे के सारे कार्यक्रम अब सिकुड़कर मात्र 1 घंटे के रह गये हैं. आर्थिक चुनौती का सामना करता यह रेडियो सीलोन अब अपनी अंतिम सांसें गिन रहा है. क्या कोई हनुमान संजीवनी बूटी लाएंगे? या हम यह कहते रह जाएंगें -
तुम न जाने किस जहां में खो गये  ?
हम भरी दुनियां में तन्हा रह गये.
No photo description available.

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

आजानुबाहु

औरत मार्च

बेचारे पेट का सवाल है