घरे बनी जब लिट्टी चोखा.
लिट्टी चोखा एक सम्पूर्ण आहार है. यह पूर्वी उत्तर प्रदेश ,बिहार, झारखण्ड व नेपाल के मधेशी इलाके का सुस्वादु व्यंजन है. हमने गुवाहाटी के एक होटल में लिट्टी चोखा का मीनू देख इसके लिए आर्डर दिया था, पर स्वाद, सुगंध की तो बात हीं छोड़िए शक्ल से भी वह कहीं से लिट्टी चोखा नहीं था. खाने के बाद बरबस मुंह से निकल पड़ा -
खाया बड़ा धोखा, न थी वो लिट्टी न था वो चोखा.
आटे का गोल गोल लोई बनाकर उसमें सत्तू के तैयार मिश्रण को स्टफ कर दिया जाता है.फिर इसे गोबर के उपले पर पकाया जाता है. अब तो इसे तलने का सिस्टम हो गया है या ओवन में पकाने की प्रथा चल पड़ी है, पर जो मजा उपले पर पकाए लिट्टी का है, वह मजा अन्य किसी सिस्टम से पकाए लिट्टी में नहीं मिलेगा आपको. उसी तरह से चोखा का अलग अस्तित्व है. यह आलू या बैंगन को पका कर कच्चे सरसों के तेल से नमक व अन्य मसालों के मेल से बनता है. कई बार तो आलू व बैगन का मिश्रित चोखा बनता है. दो अलग स्वाद वाले व्यंजन लिट्टी और चोखा जब एक साथ खाए जाते हैं तो अजब गजब स्वाद की सृष्टि करते हैं, जिसे खाने वाला हीं बता सकता है. आपको पता नहीं चलेगा. आप तो हाल फिलहाल इस शेर से काम चलाइए -
खूब गुजरेगी, जब मिल बैंठेंगे दीवाने दो.
लिट्टी चोखा मारीशस, त्रिनीदाद, फिजी में भी खाया जाता है. अमेरिका, इंगलैण्ड में भी यह एक सुस्वादु व्यंजन के रूप में जाना जाता है.पूरे भारत में इसे हर जगह पकाया खाया जाता है. भारत सरकार को लिट्टी चोखा को पेटेंट करने के बावत गम्भीरता से सोचना चाहिए,अन्यथा हल्दी, नीम ,कढ़ी की तरह अमेरिका इस पर भी अपना दावा ठोंक सकता है.
लिट्टी के भराव में मुख्यतया सत्तू का प्रयोग होता है,परन्तु "सितारों से आगे जहां और भी है "के तर्ज पर इसमें नमक,नीबू का रस ,प्याज, लहसन, अदरक, मंगरईल (कलौंजी) आदि भी मिलाया जाता है. बलिया में लिट्टी को फुटेहरी कहा जाता है. भूतपूर्व प्रधान मंत्री श्री चन्द्रशेखर जब कभी बलिया जाते थे, तो उनकी गार्ड में शामिल आई टी बी पी के जवान रेलवे स्टेशन स्थित दूकानों से लिट्टी/फुटेहरी खाना नहीं भूलते थे. बालीवुड के फिल्मी सितारे आमिर खान व अमिताभ बच्चन की जिह्वा पर इसका स्वाद सिर चढ़कर बोलता है. पाकिस्तान के करांची शहर में लिट्टी चोखा की अलग आन बान शान है. ज्ञातब्य हो कि करांची शहर में उत्तर प्रदेश, बिहार से गए बहुत से मुहाजिर हैं. अभी हाल में बीते बिहार के विधान सभा चुनाव में एक नारा जोर शोर से उछला था -
लिट्टी चोखा खाएंगे,
बिहार को आगे बढ़ाएंगे.
कांग्रेस के उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने नई दिल्ली में पटरी रेहड़ी वालों के साथ लिट्टी चोखा खाया तो उन्हें मजबूर होकर ट्वीटियाना पड़ा और लिट्टी चोखा का गुन गाना पड़ा. कभी नितीश कुमार को राज्यपाल ने पहले लिट्टी चोखा की दावत दी .पहुंचने पर उन्हें मुख्यमंत्री पद की शपथ दिला दी. " अर्थात् लिट्टी खाने वाले मुख्यमंत्री भी बन जाते हैं. कुछ दिन पहले तक स्वर्णकार इक्साइज के खिलाफ धरना प्रदर्शन कर रहे थे. समस्तीपुर के स्वर्ण कारों ने विरोध प्रदर्शन का अनोखा तरीका निकाला . गांधीगिरी करते हुए उन्होंने मुफ्त लिट्टी चोखा के स्टाल लगाए.
कुछ लोग इसे राजस्थानी दाल बाटी से जोड़ते हैं. दाल बाटी एक अलग व्यंजन है. जैसे कूमाऊं का डुबका भात. स्वाद सबका अलग, अस्तित्व सबका अलग. प्रथम राष्ट्रपति डा. राजेन्द्र प्रसाद ने इस लिट्टी चोखा को राष्ट्रपति भवन के रसोई घर तक पहुंचा दिया था. लिट्टी चोखा का स्वाद देशी घी के साथ लाजबाब होता है.
आज न हम चूकब मौका,
घरे बनी जब लिट्टी चोखा.
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