आंखों की रोशनी का करें ख्याल.

मोतियाबिंद आम तौर पर बुजुर्गों का रोग माना जाता है ,जो 60 साल की उम्र के बाद शुरू होता है .कहावत है जब बाल पके तो मोतियाबिंद जगे. दरअसल आंखों के लेंस प्रोटीन से बने होते हैं. डायबिटिज, उम्र का प्रभाव, धूम्रपान, चोट व स्टेरायड के इस्तेमाल से इस प्रोटीन को नुकसान पहुंचता है, जिससे लेंस धुंधला पड़ जाता है. धुंधलेपन के कारण नजर कमजोर पड़ने लगती है. इस रोग को सफेद मोतियाबिंद कहा जाता है. पूर्वांचल में इसे माड़ा कहते हैं . आंखों के लेंस प्रोटीन  अपारदर्शी हो जाने के कारण चश्में का नम्बर बढ़ने लगता है. रोगी की निकट दृष्टि (Myopia) कमजोर हो जाती है. रंगों को पहचानने की क्षमता का ह्रास हो जाता है.रात को गाड़ी चलाने में परेशानी होने लगती है. एक चीज दो दिखाई देती है (Double vision) .
मोतियाबिंद का सिर्फ इलाज आप्रेशन है. इसमें खराब प्राकृतिक लेंस को हटाकर एवज में कृत्रिम लेंस लगा दिया जाता है. इस तरह के आप्रेशन 90% कामयाब होते हैं. पहले  12 mm का चीरा लगाया जाता था, जिसमें कई सीवन व टांके लगाए जाते थे. रोगी को हास्पिटल में कई दिन रहना पड़ता था. बाद में तकनीक बदली. 12mm की जगह 5mm का चीरा लगाया जाने लगा. अब 2mm का चीरा लगने लगा है. अल्ट्रासाउण्ड के जरिए गंदे लेंस को टुकड़ा टुकड़ा कर बाहर निकाल दिया जाता है. कृत्रिम लेंस को फिट कर दिया जाता है. इस कृत्रिम लेंस को IOL (intra ocular lens) कहा जाता है. इस आप्रेशन को Photo emulsification कहा जाता है.
न कोई रक्त स्राव , न कोई टांका ,
न कोई सीवन और न कोई पीड़ा.
कई बार नवजात शिशुओं और किशोरों को भी यह बीमारी हो जाती है. कई बार जन्मजात कारण तो कई बार मानसिक आघात इसके कारण होते हैं. ज्यादातर मामलों में मोतियाबिंद का पता ही नहीं चलता. जब लोग चश्में का नम्बर बढ़ने की शिकायत लेकर डाक्टर के पास पहुंचते हैं तो पता चलता है. लोग सोचते हैं कि उनके पढ़ने की नजर ठीक हो गई है, लेकिन वास्तविकता यह होती है कि आखों की लेंस में आई सूजन के कारण ऐसा होता है. मोतियाबिंद दोनों आंखों को नुकसान पहुंचाता है, लेकिन कई बार एक में यह ज्यादा और दूसरे में कम होता है. यदि आपको आंखों में दर्द है और नजर कमजोर हो रही है तो Eye specialist से जरूर मिलें. आपको सफेद या काला मोतियाबिंद या कोई अन्य आंख की बीमारी हो सकती है.
शुरूआती दौर में चश्मे का नजर बढ़ा कर सफेद मोतियाबिन्द को नियंत्रित करने की कोशिश की जाती है, पर स्थाई इलाज इसका आप्रेशन हीं है. सर्जरी के बाद आंखों से कई दिन कम नजर आता है. बाद में आंखें सामान्य हो जाती हैं. फिर भी कोई समस्या आती है तो डाक्टर से मिलें .बाहर निकलते समय डार्क चश्मा जरूर पहनें. डाक्टर द्वारा बताई गई आंख की दवाई आंख में डालते रहें.
दुनियां भर में 50% से  ज्यादे अंधत्व के मामलों में सफेद मोतियाबिंद है. जब कि इसका पुरअसर इलाज है. लोग नादानी की वजह से इस रोग को वहां पहुंचा देते हैं, जहां इलाज असहाय हो जाता है. मोतियाबिंद का पता चलते हीं उसके पकने का इंतजार न करें. तुरन्त डाक्टर की सलाह माने. आप्रेशन कराएं. यदि घर के किसी बुजुर्ग को सफेद मोतियाबिंद है तो आप्रेशन के बाद आप उनकी देख रेख यथोचित करें.बुजुर्गों की आंख की रोशनी आपके जीवन में भी खुशियां भर देगी. अन्यथा -
घर के बुजुर्ग लोगों की आंखें क्या बुझ गईं,
अब रोशनी के नाम पर कुछ भी नहीं रहा.
No photo description available.

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

आजानुबाहु

औरत मार्च

बेचारे पेट का सवाल है