उदयन व वासवदत्ता-इतिहास की प्रथम प्रेम कहानी .
ईशा से छठी शताब्दी पूर्व महाराज शतनीक का वत्स राज्य पर राज था , जिसकी राजधानी कौसाम्बी थी . कौसाम्बी आज के इलाहाबाद के पश्चिम में 50 km दूर स्थित थी , जहां आज भी कोसमा गॉंव में कौसाम्बी के खण्डहर मौजूद हैं . वत्स राज्य पर गरुण बंशी कुमार ने आक्रमण कर राजा शतनीक को हरा दिया और उनकी गर्भवती पत्नी का अपहरण कर लिया , जिसका उद्धार एक ऋषि कुमार ने किया.शतनीक ने पत्नी के वियोग में जंगल में जा सन्यास धारण कर लिया . कुछ दिनों बाद बन में शतनीक की मृत्यु हो गई . शतनीक की पत्नी ने समय पर एक तेजस्वी बालक को जन्म दिया , जिसका नाम उदयन रखा गया . राज कुमार उदयन बहुत हीं सुदर्शन युवक हुए .
ऋषि कुमार ने राजकुमार उदयन को अस्त्र शस्त्र , संगीत , राजनीति व प्रशासन की अच्छी शिक्षा दी .राजकुमार वीणा वादन में अत्यंत निपुड़ थे . वे वीणा वादन के माध्यम से बड़े से बड़े जंगली जानवर को वश में कर लेते थे . बड़े होने पर राजकुमार उदयन ने कोल भीलों की एक बड़ी सेना सुगठित कर द्रुत गति से गरुणवंशियों पर आक्रमण किया और विजयी रहे .
राजकुमार के पराक्रम व वीणा वादन की सूचना अवन्ति नरेश तक भी पहुँची . अवन्ति की राजधानी उज्जैन थी . अवन्ति नरेश चंड प्रद्योत के पास एक विशाल सेना थी , जिससे उनको महासेन की उपाधि मिली थी . अवन्ती नरेश चंड प्रद्योत वत्स पर आक्रमण कर उसे अपने राज्य में मिलाना चाहते थे , पर वे राजा उदयन के पराक्रम से भयभीत थे . अतः अवन्ति नरेश ने एक षड्यंत्र रचा . वत्स राज्य के सीमा पर एक लकड़ी का हाथी रखा गया , जिसके पेट में सैनिक छुपाकर वैठाए गए थे . अफवाह फैला दी गई कि यह हाथी पागल हो गया है , जिसको वश में मात्र बीणा प्रवीण महाराज उदयन हीं कर सकते हैं .महात्म्य यौगन्धरायण को इसमें षड्यंत्र की बू आई और उसने महाराज उदयन को इस सम्बन्ध में आगाह भी किया , पर महाराज नहीं माने .
महाराज उदयन अपने अंगरक्षकों के साथ वहाँ पहुँचे . हाथी से दूर रह वीणा वादन करने लगे.तभी हाथी के पेट से निकल कर अवन्ति देश के सैनिक महाराज व उनके अंगरक्षकों पर टूट पड़े . महाराज व अंगरक्षकों को सम्भलने का मौका हीं नहीं मिला . फिर भी महाराज उदयन वीरता पुर्वक लड़े , पर अवन्ति के सैनिक ज्यादा थे और अंगरक्षक थोड़े से थे . अंततः महाराज उदयन बन्दी बना लिए गए . अवन्ति नरेश ने महाराज उदयन को जेल में न रख एक महल में रखा और अपनी पुत्री वासवदत्ता को वीणा वादन की शिक्षा हेतु निर्देश दिया . उन्होंने उदयन से यह कहा कि उनकी पुत्री कुब्जा (कुबड़ी ) व कानी है - इसलिए आपके सामने नहीं आएगी . और वासव दत्ता से यह कहा गया कि उदयन एक कोढ़ी है . इसलिए उससे दूर हीं रहना . महल के अंदर पर्दे की दीवार लगा दी गई .
वीणा वादन की शिक्षा शुरू हुई . एक दिन वासवदत्ता कोई सुर पकड़ नहीं पाई . उदयन ने नाराज होकर कहा -
"अरे कुब्जी ! तेरी बुद्धि तो जड़ हो गई है ."
राजकुमारी वासवदत्ता भी क्रोधित हो कर कहा -
" अरे कोढ़ी ! तुझे एक राजकुमारी को कुब्जा कहते हुए शर्म नहीं आई ? "
क्रोधित महाराज उदयन ने बीच का पर्दा हटा दिया तो दोनों की आँखें फटी की फटी रह गईं . आमने सामने एक सुदर्शन राजकुमार व एक अनिंद सुंदरी थे और उनका पहली नज़र में प्यार हो गया .
अवन्ति में ख़ुशी का माहौल था तो कौसाम्बी में ग़म का . महात्म्य यौगन्धरायण ने अपने जासूसों के साथ अवन्ति में डेरा डाल दिया . वह किसी प्रकार से महाराज उदयन से सम्पर्क साधने में सफल हो गया और फिर शुरू हुआ षड्यंत्र का जवाब षड्यंत्र . रात के अँधेरे में महाराज उदयन और राजकुमारी वासवदत्ता भद्रावती हाथी पर चढ़कर भागे . पीछे से नीलगिरि हाथी पर महात्म्य यौगनन्धरायण महाराज उदयन के अंगरक्षकों के साथ नीलगिरि हाथी पर बैठ कर उनको सुरक्षा कवच देते हुए चलने लगा . जब अवन्ति के राजकुमार को पता चला तो उसने अपनी बहन की रक्षा व महाराज उदयन को पकड़ने के लिए सेना लेके आगे बढ़ा . महात्म्य यौगन्धरायण ने स्वर्ण मुद्राओं की बारिश कर दी , जिसे लूटने में शत्रु सैनिक व्यस्त हो गए . महाराज उदयन को मौका मिल गया और वे सकुशल वासवदत्ता के साथ वत्स राज्य में पहुँच गए .
ईशा पूर्व छठी शताब्दी की यह प्रेम गाथा इतनी लोक प्रिय हुई कि
1- एक हज़ार वर्ष बाद भी कालिदास ने इसका वर्णन मेघदूत में की है .
2- ईशा के बाद छठी सदी में वाणभट्ट ने हर्ष चरित में इसका वर्णन किया है .
3- ग्यारवहीं सदी में आचार्य हेमचन्द सूरी ने इसे अपनी रचना का विषय बनाया .
4- इसका उल्लेख विष्णु पुराण , ललित विस्तार , कथा सरित्सागर , बृहत्कथा मञ्जरी आदि ग्रन्थों में इनका दृष्टान्त मिलता है .
आज भी भारत की हरेक भाषाओं में इसके बारे में उपन्यास , कहानी व नाटक लिखे गये हैं .
नागार्जुन की एक गुफा में एक कलाकार ने महाराज उदयन व वासवदत्ता के पलायन का चित्र उकेर कर इस प्रेम कहानी को अमर कर दिया है .
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