बलबीर सिंह "रंग "

अब मुझे प्यार से डर लगता है.
उसके इजहार से डर लगता है.
वक्त का क्या है गुजर जाएगा,
उसकी रफ्तार से डर लगता है.
अपनी तोबा पर एतबार मुझे,
चश्म -ए-इसरार से डर लगता है.
जो पिए दुसरे की हिस्से की,
ऐसे मय ख्वार से डर लगता है.
रंग " को इस कदर हुए धोखे,
हर समझदार से डर लगता है.
                 - बलबीर सिंह "रंग "
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